5 जून विश्व पर्यावरण दिवस
प्लास्टिक प्रदूषण: जीवन के हर अंग में ज़हर
( वायरलेस न्यूज़ नेटवर्क)
52 सालों से हर साल 5 जून को हम विश्व पर्यावरण दिवस मनाते हैं, लेकिन 2025 का यह दिन हमें एक गहरी चेतावनी के रूप में देखना चाहिए, इस वर्ष का विश्व पर्यावरण दिवस का विषय “प्लास्टिक प्रदूषण को हराना” है जो हमें इस वैश्विक संकट पर ध्यान केंद्रित करने के लिए प्रेरित करता है।
प्लास्टिक प्रदूषण अब मानवता के लिए सबसे बड़ा खतरा बन चुका है। आज प्लास्टिक हर जगह है—हवा में, पानी में, हमारी मिट्टी में और अब हमारे शरीर में भी। वैज्ञानिक शोध बताते हैं कि माइक्रोप्लास्टिक अब मानव शरीर के हर अंग में पाया जा रहा है। ये बेहद सूक्ष्म कण हमारे फेफड़े, किडनी, खून और यहां तक कि गर्भस्थ शिशु तक में पहुंच चुके हैं। माइक्रोप्लास्टिक डीएनए को क्षति पहुँचा सकता है। इससे मानव और अन्य जीवों की आनुवंशिक संरचना में बदलाव संभव है, जो बीमारियों या विकृतियों का कारण बन सकता है। समुद्रों में प्लास्टिक की मात्रा इतनी बढ़ गई है कि समुद्री जीव जैसे कि ब्लू व्हेल, डॉल्फिन, सी टर्टल, पेंग्विन और समुद्री पक्षी अल्बाट्रॉस तक इसकी चपेट में हैं। कई जानवर प्लास्टिक को खाना समझ कर या उसमे फेंके गए खाने को निगल जाते हैं, जिससे उनकी मृत्यु हो जाती है, गौ रक्षक इस मुद्दे को नहीं उठाते। माउंट एवरेस्ट से लेकर मरिआना ट्रेंच (समुद्र की सबसे गहराई) तक प्लास्टिक पहुँच चुका है। अब कोई कोना इससे अछूता नहीं बचा, एक अनुमान के अनुसार प्लास्टिक प्रदूषण 2050 तक तिगना हो जाएगा।
भारत प्लास्टिक उपभोग में विश्व में तीसरे स्थान पर और प्लास्टिक प्रदूषण के मामले में पहले स्थान पर है, जो विश्व का 20 प्रतिशत प्रदूषण करता है। यहाँ 92 प्रतिशत से अधिक प्लास्टिक रिसायकल नहीं होता जिसमे से कुछ में आग लगा कर वायु प्रदूषण किया जाता है। कहीं से भी देखिये भारत प्लास्टिक के कूड़े का ढेर लगता है, अगर कचरा बीनने वाले लोग (फ्रेंड्स ऑफ़ इंडिया) न हों तो और बुरी हालत हो जाए। सरकार ने लगभग हर राज्य में सिंगल यूज प्लास्टिक, प्लास्टिक के केटरिंग मटेरियल (जैसे कप, गिलास, चम्मच), प्रतिबंधित मटेरियल से बने पोस्टर बैनर इत्यादि पर प्रतिबंध लगाया है, लेकिन राजनेताओं और अधिकारियों में इच्छाशक्ति की कमी और प्रभावी क्रियान्वयन न होने के कारण यह प्रतिबंध केवल कागजों तक सीमित है।
शहरों में जल निकासी व्यवस्था खराब है और गाँवों में तो यह है ही नहीं। प्लास्टिक कचरे की वजह से नालियाँ जाम हो जाती हैं, जिससे जलभराव होता है और मच्छरों को पनपने का मौका मिल जाता है। जलवायु परिवर्तन के कारण गर्मी और नमी का समय बढ़ गया है, जिससे मच्छरों की आबादी तेजी से बढ़ रही है। इसका सीधा असर डेंगू, मलेरिया, चिकनगुनिया जैसे रोगों की वृद्धि पर हो रहा है।
प्लास्टिक ने जीवन को आसान भी बनाया है। जैसे कि प्लास्टिक की कुर्सियाँ, जो लकड़ी और लोहे का विकल्प बनकर आईं, सस्ती और हल्की हैं। प्लास्टिक अगर रिसायकल किया जाए तो यह उपयोगी सिद्ध हो सकता है लेकिन समस्या यह है कि उपयोग के बाद प्लास्टिक को हम कचरे की तरह फेंक देते हैं। चुकि सिंगल यूज़ प्लास्टिक वजन में हलका होता है जिसकी कीमत नहीं मिलती इसलिए फ्रेंड्स ऑफ़ इंडिया इसे नहीं उठाते और यह धीरे-धीरे पूरे पर्यावरण को विषैला बना रहा है।
प्लास्टिक, पेट्रोलियम उत्पाद है, और यही कारण है कि 2024 में आयोजित वैश्विक सम्मेलन, जिसमें अधिकांश देशों ने प्लास्टिक उत्पादन कम करने की मांग की फिर भी पेट्रोलियम उत्पादक देशों ने सहमति नहीं दी। इनका मानना है कि प्लास्टिक उद्योग उनका आर्थिक आधार है और उत्पादन कम करना उनके व्यापारिक हितों के खिलाफ होगा। इसी कारण सम्मेलन किसी ठोस निर्णय पर नहीं पहुँच पाया।
अगर हम आज नहीं चेते, अधिकारी और राजनेता सोते रहे, प्रतिबंध लागू नहीं किया, तो आने वाले समय में समुद्र में मछलियों से ज्यादा प्लास्टिक होगा। नदियाँ, समुद्र, जानवर और इंसान सब इस आपदा की चपेट में हैं। जलवायु परिवर्तन और जैव विविधता का नुकसान अगर कभी नियंत्रित भी कर लिया जाए, तब भी प्लास्टिक मानवता को समाप्त कर देगा। वर्तमान परिदृश्य में, प्लास्टिक का अंत केवल मानवता के अंत के साथ ही संभव दिखता है।
नितिन सिंघवी
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