बिलासपुर (वायरलेस न्यूज़)

हिंदी में अपनी बात को व्यक्त करना हो और इसके लिए हिंदी सीखने की ललक हो तो मुंशी प्रेमचंद की किताबों का अध्ययन अवश्य करें. इससे न केवल आपकी लेखनी और बातचीत करने की शैली में सुधार होगा, बल्कि आपको हिंदी से सदा के लिए प्रेम हो जाएगा. हिंदी की सुंदरता को निहारना हो तो प्रेमचंद के साहित्य को पढें !दिनांक 31 जुलाई, 2022 को महान कथाकार मुंशी प्रेमचंद की 142 वीं जयंती है ! एक महान साहित्यकार, नाटककार, उपन्यासकार जैसी, बहुमुखी प्रतिभा के धनी को को स्मरण करते हुए उनकी जयंती की पूर्व संध्या पर जोनल रेल कार्यालय के राजभाषा विभाग में उपन्यास सम्राट की कृतियों की प्रदर्शनी लगाई , उनके जीवन वृतांत तथा उनकी कृतियों के लोकप्रिय अंशों का पाठ किया गया ! सभी उपस्थित साहित्य प्रेमियों ने उनकी तस्वीर पर पुष्पार्पित कर उन्हें नमन किया ! उनकी अधिकांश किताबें जोनल रेलवे स्थित ‘रवीद्रनाथ टैगोर’ केंद्रीय पुस्तकालय में उपलब्ध कराई गई हैं जिनमें गोदान,मनोरमा, भारतीय स्वाधीनता आंदोलन की कहानियां, गबन, रंगभूमि , प्रतिज्ञा, सोजे वतन, स्वाधीनता आंदोलन की कहानियां , वरदान, सेवा-सदन, काया-कल्प एवं प्रेम सामंत का मुंशी प्रमुख है !
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि श्री भवानी शंकरनाथ, डीआईजी (आर.पी.एफ. ) ने इस अवसर पर अपनी बात रखते हुए कहा कि यदि भारतीय किसान एवं ग्रामीण परिवेश को समझना हो तो मुंशी प्रेमचंद कृत गोदान को पढ़कर ही यह जाना सकता है . उनकी कृति अपने समय का सांस्कृतिक इतिहास तो है ही किन्तु आने वाली सदियों को प्रतिबिंब को भी चित्रित करता है ! सच में कहा जाए तो जो स्थान अंग्रेजी में शेक्सपियर का और संस्कृत में कालीदास का है, वही स्थान हिंदी में प्रेमचंद जी का है, विशिष्ट अतिथि श्री साकेत रंजन , मुख्य जनंसपर्क अधिकारी ने उपन्यास सम्राट के बारे में अपनी रखते हुए कहा कि उनकी कृति में भारतीय इतिहास और भारतीय साहित्य के आम जनमानस की निकटता को देखा जा सकता है ! उनके साहित्य में समय के साथ परिवर्तन को सहज देखा जा सकता है ! सबसे पहले आदर्शवाद का समावेश था फिर वह आगे आते– आते यर्थावाद में परिवर्तित हो गया !
इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि श्री कुमार निशांत, उप मुख्य सुरक्षा आयुक्त ( रे.सु.ब.) ने जयंती की पूर्व संध्या पर दिनकर जी की कविता से अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि ‘’ तेजस्वी सम्मान खोजते नहीं गोत्र बतला के, पाते हैं जग से प्रशस्ति अपना करतब दिखला के ! मूल जानना बड़ा कठिन है, नदियों का, वीरों का, धनुष छोड़कर और गोत्र क्या होता रणधीरों का ? पाते हैं सम्मान तपोबल से भूतल पर शूर, जाति जाति का शोर मचाते केवल कायर क्रूर..!” . उन्होंने प्रेमचंद जी के बारे में बताया कि उनकी प्रथम कृति ‘असरारे मुआबिद’ थी और फिर स्वतंत्रता आंदोलन की ज्वाला को कम करने की दृष्टि अंग्रेजों ने उनकी किताबों पर प्रतिबंध लगाने लगे तब वे अलग –अलग नामों से किताबों की रचना प्रांरभ की . उनकी रचनाओं में भारतीय संस्कृति के सभी परिवेशों का समावेश मिलता है, जिसे हम आज भी अपने आसपास देख सकते हैं . हिंदी भाषा और मुंशी जी कृतियों की !
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