(अमित मिश्रा संपादक वायरलेस न्यूज) भाजपा के कद्दावर आदिवासी नेता पार्टी से नाराज होकर प्रदेश के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का हाथ थाम लिया है, और उन्होंने कांग्रेस प्रवेश के साथ श्री साय ने कहा कि कचरे से खाद बना लो यह कितनी अच्छी बात है, रसायनिक खाद तो बंद कर देना चाहिए ये बीमारी फैलाती हैं …?
तीन बार विधायक, तीन बार लोकसभा , दो बार राज्यसभा सदस्य ,दो बार भाजपा पार्टी के अध्यक्ष अविभाजित मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के और केंद्र में राष्ट्रीय अनूसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष पद पर रहे इतना सब प्राप्ति के बावजूद आखिर साय के लिए ऐसी कौन सी परिस्थितियां बदल गई की उन्हें कांग्रेस का दामन थामने मजबूर होना पड़ा ! हालांकि भाजपा उनके बदले दूसरे आदिवासी नेता को मौका देने के फेर में था। शायद उन्हें इसका अहसास हो गया था,
श्री साय के बारे में जग जाहिर था की वे नमक नही खाते थे तो क्या हम ये माने की वे किसी के साथ नमक अदायदगी नही करगें..?
क्या नंद कुमार साय का हश्र स्व.विद्याचरण शुक्ल की तरह तो नही हो जायेगा जो भाजपा में शामिल हुए और तत्वोजो नहीं मिलने पर पुनः कांग्रेस में जाने मजबूर हुए थे। या कहीं ऐसा तो नहीं की छत्तीसगढ़ की कद्दावर भाजपा सांसद रहीं स्व. श्रीमती करुणा शुक्ला की तरह तो नहीं हो जायेगा ? उन्हें कांग्रेस ने कभी अच्छा पद नही दिया।
वैसे श्री साय को कांग्रेस में जाना ही था तो ये समय का चयन उचित नहीं कहा जा सकता है ? उन्हें कुछ और रुक कर कांग्रेस में जाना चाहिए था जिससे कांग्रेस को लाभ मिल सकता और कांग्रेस को भी इतनी जल्दी क्या था की उन्हें शामिल करना पड़ा ,हां तात्कालिक लाभ तो कांग्रेस जरूर उठा पायेगा , थोड़ा रुककर किए होते तो इसका लाभ उन्हें जरूर मिलता। हालांकि श्री साय ने सोशल मीडिया स्टेटस में लिखा है कि ‘ उम्र नहीं है, बाधा मेरी रक्त में अब भी ताप है ‘
अब तो आने वाला समय ही बताएगा कि साय के कांग्रेस में शामिल होने का लाभ कांग्रेस चुनाव में उठा पाते है।
वैसे अभी श्री साय के भाजपा छोड़ने का भाजपा को ज्यादा नुकसान तो नही होने वाला जान पड़ता है ?
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