सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ सरकार को जारी किया नोटिस!


बिलासपुर/नई दिल्ली (वायरलेस न्यूज) 2018 पीएसी के मामले में एक ही प्रवीण सूची में से कुछ अभ्यर्थियों को 2 वर्ष की परीक्षा एवं 100% वेतन पर नियुक्ति प्रदान करना, वही कुछ सफल अभ्यर्थियों को 3 वर्ष की परिवीक्षा 70 80 एवं 90% स्टाइपेंड पर नियुक्ति प्रदान करना एक ही वर्ग को बिना युक्ति युक्त आधार के भिन्न भिन्न रूप से किसी को वेतन व किसी को स्टाइपेंड देना समानता के अधिकार का उल्लंघन होने के आधार पर चुनौती देते हुए याचिकाकरता द्वारा राज्य सरकार के नियम को उच्च न्यायालय छत्तीसगढ़ में चुनौती दी गई थी जिस पर सुनवाई करते हुए उच्च न्यायालय ने याचिका को खारिज कर दिया था। उक्त निर्णय से व्यथित होकर याचिकाकर्ताओं ने माननीय सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका एसएलपी प्रस्तुत की थी, जिस पर उच्चतम न्यायालय की खंडपीठ में माननीय न्यायमूर्ति हिमा कोहली एवं न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हन की बेंच में सुनवाई हुई। सुनवाई उपरांत उक्त विषय पर पूर्व से लंबित पंजाब हरियाणा राज्य एवं अन्य राज्यों की समान रूप से एक ही सेवा के प्रोबेशनरी को भिन्न तरीके से लाभ दिए जाने के संबंधित लंबित याचिका के साथ जोड़ने हेतु निर्देशित किया गया। याचिका कर्ताओं की ओर से अधिवक्ता कौस्तुभ शुक्ला एवं अधिवक्ता रोहित शर्मा ने पैरवी की। याचिकाकरता क॓ अधिवक्ताओं की ओर से माननीय न्यायालय के समक्ष यह तथ्य रखा गया कि याचिका करता 2018 राज्य सेवा परीक्षा के प्रवणता में ऊंचे स्थान पर आए चयनित अभ्यर्थी हैं। वही उक्त चयन 273 पदों पर हुआ था जिसमें से लगभग 240 लोगों को जो की प्रमाणिकता सूची में याचिका कर्ताओं से नीचे थे उन्हें पूर्ण वेतन पर नियुक्ति दी गई। वही याचिका कर्ताओं को उत्तर वादी की ओर से की गई देरी के परिणाम स्वरूप 3 वर्षीय परीक्षा पर रखा गया जिसका आधार कोरोना महामारी से उत्पन्न आर्थिक स्थिति को बतलाया गया था!
ज्ञात हो की वर्तमान में राज्य शासन ने 3 वर्षीय परिवीक्षा के साथ स्टाइपेंड की अनिवार्यता को समाप्त कर दिया है परंतु याचिका कर्ताओं को हुई आर्थिक हानि का कोई युक्ति युक्त निर्णय नहीं दिया है! वह मूलत क्या नियुक्तियां वेतन के स्थान पर स्टाइपेंड दी जाकर की जा सकती है अथवा नहीं उक्त विषय भी माननीय उच्चतम न्यायालय के संज्ञान में लाया गया है!