चार गए और तीन अभी बाकी हैं, यह कांग्रेस पार्टी (Congress Party) का पिछले कुछ वर्षों का लेखा-जोखा है. जितिन प्रसाद (Jitin Prasada) द्वारा कांग्रेस पार्टी को अलविदा कहते ही सवाल खड़ा हो गया है कि बाकी के तीन विकेट क्या कांग्रेस पार्टी बचा पाएगी? हम यहां बात कर रहे हैं सचिन पायलट (Sachin Pilot), मिलिंद देवड़ा (Milind Deora) और नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) की. शुरुआत करते हैं मिलिंद देवड़ा से. उनका एक ट्वीट कांग्रेस पार्टी के लिए खतरे के घंटी से कम नहीं है. यह अलग बात है कि कांग्रेस पार्टी को गांधी परिवार के आगे ना तो कुछ दिखता है ना ही सुनाई देता है.

देवड़ा मुंबई दक्षिण संसदीय क्षेत्र का दो बार प्रतिनिधित्व कर चुके हैं और कई अन्य नेताओं की तरह, जिसमे जितिन प्रसाद भी शामिल हैं, नरेन्द्र मोदी के उदय के साथ ही उनके हारने का सिलसिला शुरू हो गया.

देवड़ा ने कल गुजरात सरकार की जम कर तारीफ की है. गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी ने कोरोना महामारी के मद्देनजर होटल, रेस्टोरेंट, रिजॉर्ट और वाटर पार्क का, जिन्हें कोरोना के कारण काफी आर्थिक नुकसान झेलना पड़ा है, एक साल के लिए प्रॉपर्टी टैक्स और बिजली बिल माफ़ करने का निर्णय लिया है. देवड़ा ने ना सिर्फ इसकी तारीफ की बल्कि दूसरे राज्यों को इसका अनुसरण करने की सलाह तक दे डाली. कांग्रेस पार्टी के किसी नेता से कृषि कानूनों या फिर कोरोना नीति पर बीजेपी की आलोचना की उम्मीद की जाती है, ठीक उसी तरह जैसे पार्टी के शीर्ष नेता सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी करते हैं. पर देवड़ा ने बीजेपी के एक मुख्यमंत्री की तारीफ कर दी. कयास लगाया जा रहा है कि वह इन दिनों बीजेपी में जाने की तैयारी में लगे हैं.

सचिन पायलट भी तैयार हैं?

सचिन पायलट पिछले एक साल से इस उम्मीद में बैठे थे कि कांग्रेस पार्टी कभी ना कभी अपना वादा तो निभाएगी ही. ज्योतिरादित्य सिंधिया की तरह सचिन पायलट भी पिछले साल बगावत के मूड में थे. राजस्थान में अशोक गहलोत की सरकार डोल रही थी. तब उन्हें यह कह कर मना लिया गया था कि उन्हें और उनके सहयोगियों को राज्य सरकार और पार्टी में पद दिया जाएगा. वादा करने वाले थे प्रियंका गांधी और अहमद पटेल. अहमद पटेल अब इस दुनिया में रहे नहीं और गांधी परिवार के बच्चों में इतनी हिम्मत नहीं कि वह गहलोत जैसे वरिष्ठ नेता को आदेश दे सकें. पायलट के खेमे में इन दिनों लगातार सुगबुगाहट बढ़ रही है. सभी की निगाहें अब 11 जून को राजस्थान के दौसा में आयोजित एक सभा पर रहेगी. 11 जून को हर साल दौसा में सचिन पायलट के पिता राजेश पायलट की पुण्यतिथि पर इस सभा का आयोजन किया जाता है.

राजेश पायलट दौसा से ही सांसद होते थे. इस बार अंतर सिर्फ इतना है कि यह सभा सचिन पायलट गुट में गहलोत के खिलाफ बढ़ते रोष के बीच हो रहा है. आयोजकों ने लोगों से अपील की है कि कोरोना के कारण वह बड़ी तादात में ना आएं और अपने घर, गांव या शहर में रह कर ही राजेश पायलट को श्रद्धांजलि दें. पर उम्मीद की जा रही है कि दौसा की सभा इस बार सचिन पायलट की शक्ति प्रदर्शन सभा बन सकती है. सचिन पायलट क्या कांग्रेस पार्टी में रहेंगे और रहेंगे तो कब तक, बहुत कुछ दौसा की सभा के बाद ही पता चलेगा, क्योंकि उन्हें या उनके समर्थकों की गहलोत लगातार अवहेलना ही कर रहे हैं.

क्या सिद्धू बीजेपी में जाएंगे?

इस कड़ी में तीसरे नेता हैं पूर्व भारतीय क्रिकेटर और पंजाब के पूर्व मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू. सिद्धू ने पिछले दो सालों से पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है. अमरिंदर सिंह के खिलाफ कांग्रेस पार्टी में माहौल बनता ही जा रहा है, वह भी तब जब प्रदेश में विधानसभा चुनाव अगले वर्ष के शुरुआती महीनों में होने वाला है. कांग्रेस आलाकमान ने तीन सदस्यों की एक कमिटी बनायीं थी जिसने सभी को दिल्ली तलब किया और सबकी बात सुनी, सिद्धू और अमरिंदर सिंह की भी. अभी तक कमिटी ने अपना रिपोर्ट पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी को सौंपा नहीं है. क्या सिद्धू, पूर्व भारतीय हॉकी टीम के कप्तान परगट सिंह तथा कुछ और अन्य असंतुष्ट विधायक पार्टी में बने रहेंगे. यह इस बात पर निर्भर करेगा कि पार्टी बागियों की सुध लेती है या नहीं और क्या अमरिंदर सिंह का थोड़ा सा ही सही पर क्या उनका पर कतरा जाएगा. वरना चुनाव के पहले कांग्रेस पार्टी को पंजाब में झटका लगना तय माना जा रहा है.

ये युवा नेता भी छोड़ चुके हैं कांग्रेस

इस लेख की शुरुआत में हमने चार युवा नेताओं द्वारा कांग्रेस पार्टी को छोड़ने की चर्चा की थी. जितिन प्रसाद और ज्योतिरादित्य सिंधिया के अलावा दो अन्य नेता हैं असम के नव नियुक्त मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा और आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री जगनमोहन रेड्डी. सरमा की कांग्रेस पार्टी में सुनवाई नहीं हो रही थी. तंग आकर 2015 में बीजेपी में शामिल हो गए और उनके बाद कांग्रेस पार्टी का कभी गढ़ माने जानेवाले असम में बीजेपी लगातार दो बार चुनाव जीत चुकी है, जिसमे बहुत बड़ा श्रेय सरमा का रहा. बीजेपी ने इसे स्वीकार भी किया और उन्हें पिछले महीने मुख्यमंत्री पद सौंप दिया.

लगभग यही किस्सा जगनमोहन रेड्डी का भी था. पिता वाई.एस. राजशेखर रेड्डी की 2009 में मृत्यु के बाद जगनमोहन रेड्डी मुख्यमंत्री पद पर दावा कर रहे थे. कांग्रेस पार्टी ने उनकी अनदेखी की और बाद में उन्होंने पार्टी छोड़ कर खुद की पार्टी का गठन किया. 10 साल के बाद 2019 में उनकी पार्टी की एकतरफा जीत हुई, जगनमोहन मुख्यमंत्री बने और साबित कर दिया की कांग्रेस पार्टी द्वारा उनकी अनदेखी करना एक गलत कदम था.

कांग्रेस के इन चार युवा नेताओं में से दो अब मुख्यमंत्री हैं, सिंधिया ने मध्य प्रदेश में कमलनाथ सरकार को गिरा दिया, बीजेपी में शामिल हो गए और अब जब भी मोदी सरकार में फेर बदल होगा, उनका केन्द्रीय मंत्री बनना लगभग तय है. जितिन प्रसाद कांग्रेस की सरकार नहीं गिरा पायेंगे, क्योंकि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस पार्टी रसातल पर है. प्रदेश के 80 लोकसभा क्षेत्रों में से कांग्रेस पार्टी से सिर्फ सोनिया गांधी ही 2019 के लोकसभा चुनाव में राय बरेली से जीत पायी थीं और 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी के खाते में 403 सदस्यीय विधानसभा में मात्र सिर्फ साथ विधायकों का चुने गए थे. पर इतना तय है कि जितिन प्रसाद के कांग्रेस छोड़ने से पार्टी का और भी नुक्सान होगा और बीजेपी का फायदा.