पुष्पेन्द्र श्रीवास वायरलेस न्यूज़ कोरबा । वन विभाग द्वारा अपने मैदानी अमले को हाथियों से निपटने के लिए वर्तमान में कुछ संसाधन उपलब्ध नहीं कराया जा रहा है फिर भी मैदानी अमला अपने जान को जोखिम में डालकर हाथियों को खदेडऩे की कवायद में जुटा हुआ है। समय-समय पर हाथियों द्वारा ग्रामीणों को घेर लिया जाता है तब वन्यप्राणियों से घिरे ग्रामीणों को सुरक्षित बाहर निकालना उनके लिए चुनौती से कम नहीं रहता। इस चुनौती को स्वीकार करते हुए अमला ग्रामीणों को हाथियों के घेरे से बाहर निकालते हैं और उनके जीवन की रक्षा करते हैं। बावजूद इसके मैदानी अमले को ग्रामीणों के आक्रोश का सामना भी करना पड़ रहा है जिससे वे हतोत्साहित हैं।

जानकारी के अनुसार जिले के कटघोरा वनमंडल के पसान और केंदई रेंज को हाथियों ने अपना ठिकाना बना लिया है। यहां लगभग 43 हाथियों की मौजूदगी लंबे अरसे से बनी हुई है जो कभी केंदई रेंज में पहुंचकर उत्पात मचा रहे हैं तो कभी पसान रेंज में ग्रामीणों के मकानों व फसलों को मटियामेट कर देते हैं। जिससे ग्रामीण काफी आक्रोशित हैं। वन विभाग की चिंता भी बनी हुई है। वर्तमान में हाथियों का यह दल पसान रेंज के बरदापखना के आसपास विचरणरत है। यह दल मंगलवार को बरदापखना से पंडोपारा केंदई गांव होते हुए बीजाडांड एवं सूखाबहरा पहुंच गए और रात 10 बजे यहां पहुंचकर उत्पात मचाना शुरू कर दिए। हाथियों के दल ने सूनसान इलाके में स्थित एक ग्रामीण के घर को निशाना बनाते हुए बुरी तरह तोड़ दिया। जबकि झुंड के ही तीन हाथी अलग होकर रामसिंह गोंड़ उम्र 52 वर्ष नामक ग्रामीण के आंगन में पहुंच गए तथा उसके मकान को घेरने के साथ ही तोडफ़ोड़ शुरू कर दिया। जब इसकी जानकारी गश्त पर निकले वन विभाग के मैदानी अमले जिसमें डिप्टी रेंजर अरुण पांडेय, शारदा शर्मा व ईश्वर दास मानिकपुरी शामिल थे को हुई तो वे अपनी जान की परवाह किये बगैर तत्काल मौके पर पहुंच गए और उत्पात मचा रहे हाथियों को मशाल व पटाखे के सहारे खदेड़कर मकान में घिरे ग्रामीण रामसिंह को रेस्क्यू कर बाहर निकालने के साथ सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया।

क्षेत्र में मौजूद हाथियों के उत्पात को रोकने तथा ग्रामीणों के जानमाल की सुरक्षा के लिए वन विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों की तैनाती रेंजों में की गई है। विभाग द्वारा इन कर्मियों को किसी भी प्रकार के संसाधन उपलब्ध नहीं कराया जा रहा है ना तो उन्हें मशाल जलाने के लिए शासन द्वारा केरोसीन दिया जा रहा है ना ही मिर्च पाउडर व पटाखे दिए जा रहे हैं। गजराज वाहन भी कभी कभार मिलता है। मुनादी के लिए जो माइक लेकर गांव में जाते हैं तथा रोशनी के लिए साथ टॉर्च रखते हैं वह भी वनकर्मियों द्वारा स्वयं के पैसे से खरीदा हुआ होता है। बिना संसाधन के मैदानी अमले को हाथियों से निपटने में परेशानी हो रही है। कई बार उनकी जान को भी खतरा होता है।

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Amit Mishra - Editor in Chief
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