अब फिल्मों में गाने के पैसे नहीं लूंगा/ 23 गाने निशुल्क गाए और आगे भी गाने के पैसे नहीं लूंगा :सुखविंदर सिंह
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तकरीबन तीन दशक संगीत को दे चुके जाने-माने गायक सुखविंदर सिंह ने जय हो जैसे ऑस्कर विनिंग गाने को गाकर देश का नाम विश्व पटल पर ऊंचा किया है। हाल ही में लापता लेडीज और गबरू गैंग में रोमांटिक गाने के कारण चर्चा में रहे सुखविंदर ने फिल्मों में निशुल्क गाने का फैसला किया है। उनसे एक खास बातचीत।
एक अरसे से मोटिवेशनल गानों के बाद अब आपने रोमांटिक गानों की ओर रुख किया है, कोई खास कारण?
-असल में आज से 4-5 साल मैंने देखा कि लोगों को किसी न किसी कारण डिप्रेशन सता रहा है, तो मैं मोटिवेशनल गानों की ओर आकर्षित हुआ। 6 साल तक मैंने सुलतान, सिंघम, दबंग, दबंग 2, सिंघम 2, टाइगर जिंदा है, टाइगर, संजू, जैसी फिल्मों में जम कर मोटिवेशनल गाने गाए, मगर कुछ समय पहले से मुझे लगने लगा कि अब रोमांटिक और पेपी सॉन्ग गाने चाहिए। नए दौर के संगीतकार और गीतकारों मेरी तरफ आ ही नहीं रहे हैं, क्योंकि मेरे बारे में ये फैलाया गया कि सुखविंदर का जितना बजट है, उसे वे अफोर्ड ही नहीं कर सकते। तब मैंने सभी को फोन और मेल पर सूचित किया कि मैंने अपना बजट जीरो कर दिया है। चाहे वो करण जौहर जैसा बड़ा निर्माता हो या कोई नया फिल्मकार, तो करण जौहर की ए वतन मेरे वतन, लापता लेडीज का डाउटवा, जैसे 23 गाने मैंने बिना पारिश्रमिक के किए। अब मैं अपने गानों के लिए चार्ज नहीं करने वाला। मेरा गुजारा शोज और ऐड फिल्मों से हो जाता है। इसके पीछे मेरा कोई एजेंडा नहीं है, बस मैं नए लोगों के साथ काम करना चाहता हूं। हाल ही में गबरू गैंग का रोमांटिक गाना गाकर बहुत मजा आया।
हाल ही में राम गोपाल वर्मा ने बयान दिया कि जय हो का गाना रहमान ने नहीं सुखविंदर ने कंपोज किया था? हालांकि इस पर आपका खंडन भी आया था, मगर क्या इस तरह की बातों का आपके और रहमान के रिश्तों पर कोई प्रभाव पड़ा?
-बिलकुल भी नहीं, उस खबर के दो दिन बाद हम मिले और हमने उस बारे में बात तक नहीं की। हम लोगों ने चमकीला साथ में देखी। हमारे साथ निर्देशक इम्तियाज अली भी थे। मैंने चमकीला देख कर रहमान को पप्पी भी की। सच तो ये है कि राम गोपाल वर्मा का जय हो गाने से कुछ भी लेना-देना नहीं था।
आपका और रहमान का धनुष की फिल्म रयान का गाना भी आया है, जय हो से तो आप लोगों ने इतिहास रचा ही है, मगर बीते सालों में आप लोगों का रिश्ता किस तरह से पुख्ता हुआ?
-मैंने ही रहमान से इस गाने की पेशकश की थी। मैंने एक दिन उनसे कहा, मैं आपके तमिल के गाने सुन रहा था और बीच में तमिल, तेलुगू और मलयालम की फिल्मों के गाने हिंदी में भी काफी सुपरहिट रहे हैं, जैसे बाहुबली, पुष्पा, कांतारा, केजीएफ आदि। मैंने उनसे कहा कि उनकी लैंग्वेज के गाने बहुत चमकते हैं, मगर हिंदी के उतने नहीं चमकते। उन्होंने कहा, क्यों तो मैंने उन्हें जवाब दिया कि उन गानों को उतनी शिद्दत से लिखा नहीं जाता। तब मैंने सामने से उनसे तमिल का हिंदी वाला स्लॉट मांगा।अगले दिन उन्होंने मुझे सुबह-सबेरे फोन करके बुलाया और गाना रिकॉर्ड किया, धनुष भी साथ थे। उसे झटपट रिलीज भी कर दिया। रहमान का अपना एक अंदाज है। मेरी और रहमान की खूब मुलाकातें होती हैं। आपको एक दिलचस्प बात बताऊं, जब मेरा संघर्ष ज्यादा बढ़ गया, तो एक दिन रंगीला के गाने सुनने के बाद मैंने संगीतकार बृज भूषण (मधुबाला की बहन मधुरा के पति) जी से रिक्वेस्ट कर रहमान से मुलाकात की। रहमान ने मुझे तुरंत बुला लिया और फिर तो छैंया छैंया के बाद सिलसिला चल निकला।
म्यूजिक बेस्ड रियलिटी शोज कल्चर में प्रतिभागियों पर जीत के दबाव को लेकर आपकी क्या सोच है? हालांकि अतीत में हमें सोनू निगम, श्रेया घोषाल और अरिजीत जैसे गायक इन शोज से ही मिले हैं?
-म्यूजिक रिएलिटी शोज में जब बच्चों को भेजा जाता है, तो उस वक्त उनके जो मेंटॉर्स और माता-पिता हैं, उन्हें उनके जीवन में संगीत और पढ़ाई -लिखाई का बैलेंस करना होगा। आपने जिन गायकों का नाम लिया, वे 15-20 साल पहले के गायक हैं। आजकल के बच्चों में मैं काफी आक्रामकता देखता हूं। उस जमाने के रियलिटी शोज में पैशन हुआ करता था, भय नहीं था। आज कल के प्रतियोगियों में डर ज्यादा है कि कहीं हार न जाएं। मुझे लगता है कि बीते कई सालों से म्यूजिकल रियलिटी शोज के विजेता और कहीं क्यों नहीं दिखाई देते? क्योंकि उनके एक ही पक्ष पर ध्यान दिया जाता है।
आपके संगीतमय सफर का सबसे कठिन दौर कौन-सा था?
-सबसे कठिन दौर वो था, जब किराया देने के पैसे नहीं होते थे। हालांकि उस वक्त इस गम ने कभी नहीं सताया कि हमारा क्या होगा? उन दिनों मैं जुहू में रहता था और उस वक्त भी मेरे साथ तीन सेवादार तो साथ चलते ही थे। हालांकि मुसीबत के समय में एक शो के दस-पंद्रह हजार मिल जाते और आखिरी वक्त में काम तो निकल जाता ही था। उन दिनों मैं खूब पैदल चलता था। कई बार मैं टाउन से पैदल चलते हुए जुहू तक भी आया हूं। भूखे रहने की नौबत नहीं आई, क्योंकि हम उस कौम के लोग हैं, जहां लंगर लगते हैं और ये गुरुद्वारे में ही नहीं बल्कि घरों में भी लगते हैं। वैसे भी मैं बचपन से ही लंगरों में पला हूं। जब मैं छोटा था, तब श्री दरबार साहिब (गोल्डन टेंपल) को समर्पित था। मेरा नाम वहां सितारा रखा गया था। आगे चलकर में वहां गुरुबानी गाया करते था, जो संगीत की दुनिया में आने के बाद मैंने हल्ला बोल में गाई भी। उन दिनों केले खाकर और घर की छत पर दंड बैठक लगाकर रियाज में मस्त रहता था।
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