*पं दीनदयाल उपाध्याय जी की जयंती 25 सितंबर पर विशेष*

( मनोज कुमार द्विवेदी, अनूपपुर- मप्र )

21 वीं के उत्तरार्ध में कोरोना वायरस के संक्रमण काल के बाद जब विश्व के तमाम देश आपसी युद्ध और आर्थिक संकटकाल से गुजर रहे हैं , तो जनसंख्या के मामले में सबसे बड़े देश भारत के सामने स्वयं को मजबूती से खड़ा रखना एक बड़ी चुनौती है। रुस – यूक्रेन, इजरायल – फिलीस्तीन – लेबनान – ईरान का युद्ध , अजरबैजान – अरमेनिया की झड़प , चीन – अमेरिका के बीच तनाव के बीच भारत तेजी से विश्व परिदृश्य में एक सर्व स्वीकार्य नेतृत्व के रुप में उभर कर आगे आया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए सरकार की विदेश नीति की सफलता ही है कि अब भारत गुट निरपेक्षता की राजनीति छोड़ कर विश्व सापेक्ष राजनीति की ओर सफलता से अग्रसर है।वैश्विक परिप्रेक्ष्य में 21 सदी के मजबूत और सशक्त भारत के निर्माण में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विख्यात चिंतक, विचारक और संगठनकर्ता पण्डित दीनदयाल उपाध्याय के एकात्म मानववाद का महत्वपूर्ण योगदान है‌ ।
पण्डित जी ने भारत की आध्यात्मिक सनातनी विचारधारा और विश्व बंधुत्व की भावना के अनुकूल एकात्म मानववाद का जो सिद्धांत प्रस्तुत किया , राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी ने भारत निर्माण के लिये इसे ही मूल मंत्र मानकर योजनाएं बनाईं और उसका सफल क्रियान्वयन किया। उनका मानना था कि एकात्म मानववाद की समावेशी विचारधारा पर चल कर ही मजबूत और सशक्त भारत का निर्माण किया जा सकता है। भारत के अन्दर और वैश्विक झंझावातों के बावजूद भारत का मजबूती से टिके रह कर आर्थिक, रणनीतिक, राजनैतिक रुप से सतत आगे बढना यह साबित करता है कि भारतीय जनता पार्टी और देश के लिये एकात्म मानववाद का सिद्धांत मूल मंत्र साबित हुआ है।
पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी का जन्म 25 सितंबर 1916 को जयपुर ( राजस्थान ) के पास धनकिया नामक स्थान पर हुआ। माता राम प्यारी और पिता भगवती प्रसाद उपाध्याय धार्मिक ,आध्यात्मिक व्यक्ति थे। दीनदयाल जी जब तीन साल के थे तो उनके पिता की मृत्यु हो गयी और उसके कुछ वर्ष बाद 1924 में उनकी माता जी भी गुजर गयीं। कठिन जीवन काल में उनकी शिक्षा कानपुर और आगरा में पूरी हुई। कानपुर में शिक्षा के दौरान ही वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डा हेडगेवार के संपर्क में आए। संघ का प्रशिक्षण प्राप्त करके वे आजीवन संघ के प्रचारक हो गये।
इसके कुछ ही वर्ष बाद दीनदयाल उपाध्याय संघ के माध्यम से भारतीय राजनीति में आए ।
1951 में डा श्यामा प्रसाद मुखर्जी के नेतृत्व में भारतीय जनसंघ की स्थापना हुई‌ और 1952 के कानपुर अधिवेशन में पंडित जी को जनसंघ का महामंत्री बनाया गया। इसी अधिवेशन में दीनदयाल जी प्रतिभा से प्रभावित होकर डा मुखर्जी ने कहा था कि मुझे दो दीनदयाल और मिल जाएं तो मैं भारतीय राजनीति का नक्शा बदल दूंगा । 1967 के कालीकट अधिवेशन में वे जनसंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए गये। दुर्भाग्य से इसके 43 दिन बाद मुगलसराय स्टेशन में उनकी हत्या कर दी गयी।
पंडित दीनदयाल उपाध्याय राजनेता के साथ – साथ चिंतक, विचारक , लेखक थे। वो हिन्दुत्व की विचारधारा युक्त भारतीय राजनीति के प्रणेता थे।
*भारतीय सनातन संस्कृति के अनुयायी पं दीनदयाल जी यह मानते थे कि भारत में रहने वाले और इसके प्रति ममत्व का भाव रखने वाले मानव समूह एक जैसे लोग हैं । उनकी जीवन पद्धति, कला , साहित्य, दर्शन सबकुछ भारतीय है। इसलिए भारतीय राष्ट्रवाद का आधार यह संस्कृति है। इस संस्कृति में निष्ठा रहे ,तभी भारत एकात्म रहेगा।*
वर्तमान में देश के अन्दर और बाहर कुछ विदेशी ताकतों के अनुयायी पंडित जी की इस सनातनी राष्ट्रवादी विचारधारा के विपरीत कार्य कर रहे हैं। देश को भाषा, जाति, धर्म, प्रांत ,पूजा पद्धति के आधार पर विभाजित करने की खतरनाक योजना पर कार्य किया जा रहा है। देवी, देवताओं, साधू – संतों, महापुरुषों तक को जाति, पंथ के नाम पर बांटा जा रहा है। जनजातीय समाज के भीतर ऐसी षड्यंत्रकारी ताकतें कार्य कर रही हैं , जो उनके मध्य हिन्दू , गैर – हिन्दू तथा वनवासी – मूलनिवासी का छद्म भेद पैदा कर रहे हैं। उनकी सरलता, सहजता को उनके ही विरुद्ध खडा किया जा रहा है‌ ।
ऐसे कठिन समय में देश अंत्योदय के सुस्पष्ट विचारधारा के साथ मजबूती से आगे बढ रहा है। दीनदयाल उपाध्याय का अंत्योदयवाद, समाज के सबसे अंतिम पंक्ति में खड़े व्यक्ति के विकास, उत्थान और आत्मनिर्भरता की बात करता है। केन्द्र और विभिन्न राज्यों की भारतीय जनता पार्टी की सरकारें पंडित जी के इसी अंत्योदयवाद को आधार बना कर जनकल्याणकारी योजनाओं पर कार्य कर रही हैं। वे कहते थे कि कोई भी देश अपनी जड़ों से कट कर विकास नहीं कर सकता। इसके लिये हमें भारतीय राष्ट्रवाद , हिन्दू राष्ट्रवाद और भारतीय संस्कृति को समझना होगा।
2024 के भारत में केन्द्र और विभिन्न राज्यों मे मजबूती से कार्य कर रहे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और सरकार चला रही भारतीय जनता पार्टी की सरकारों और एक – एक कार्यकर्ता/ स्वयंसेवक को आने वाले 50 साल की योजना पर कार्य करने के लिये पं दीनदयाल उपाध्याय जैसे मूर्धन्य विचारक, संगठनकर्ता , रणनीतिकार राजनेता को बार – बार ध्यान से पढना, गुनना और उसे अपने आचरण में उतारना होगा। तभी देश और अधिक एकजुट, मजबूत, सशक्त होकर विकसित भारत के रुप में स्थापित होगा।
सादर नमन् …..विनम्र श्रद्धांजलि 💐🙏

Author Profile

Amit Mishra - Editor in Chief
Amit Mishra - Editor in Chief