*उड़न छू*
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सड़कों पर सांडों का दबदबा
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सड़कों पर सांडों का दबदबा बढ़ गया है।ये सांड आए दिन किसी पर हमला कर देते हैं।निगम सरकार क्या- क्या को संभाले।कुत्तों को संभालता है तो गायें उत्पात मचाने लगती हैं।सांड,गाय,कुत्तों को संभालने के लिए निगम विधिवत् विभाग की ही स्थापना कर दे जहाँ कुत्ते,सांड और गायों को पकड़ने में उस्ताद लोगों की नियुक्ति की जाए।
आखिर कब तक बिजली,पानी, प्रकाश ,भवन नाले-नाली विभाग वालों को चारा बनाएंगे।वे बेचारे अनट्रेंड होते हैं और अपने हड्डी-पसली तुड़वा बैठते है।वो लोग भी बाल-बच्चेदार होते हैं, साहब, उनपर रहम कीजिये।
सड़कों पर आवारा पशुओं को पकड़कर गौशाला रवाना कर देते हो तो उन्हें खिलाने-पिलाने का झंझट मत्थे पड़ जाता है।ढिलाई बरतते हो तो हादसों का कारण बन जाते हैं।रात को नेशनल हाइवे पर आराम से बैठी गोमाता जुगाली कर रही होती है तो उन्हें एक मुश्त कुचलकर हाइवा या अन्य कोई अज्ञात वाहन गुजर जाता है और वाहन का पता लगाने में सारी ऊर्जा खत्म हो जाती है।सामूहिक तौर पर मूक प्राणियों की बलि हो जाती है।तब भी परेशानी निगम सरकार की बढ़ती है।
हम तो कहतें हैं कि निगम हमेशा उल्टी राह पकड़ता है यदि सीधी राह पकड़े तो मुसीबतें न आएं और फायदा भी हो।उदाहरण के लिए सड़कों पर आवारा पशुओं की धर-पकड़ की जाती है इसकी बजाय आप उनके आवारा मालिकों को पकड़ो,जरा जमकर जुर्माना ठोंको कल से आवारा पशु सड़क पर दिखना बंद न हो जाएं तो हमारा नाम बदल देना।उन शिव भक्तों की भी खबर ली जाए जो पीठ पर गर्म त्रिशूल से दागकर सांडों को सड़कों पर गुंडागर्दी करने छोड़ देते हैं।उन्हें पकड़ो थोड़ा अंदर की हवा खिलाओ ताकि उनकी शिवभक्ति जाग जाए और उनके वाहन नन्दी की विधिवत् व्यवस्था करें।ऐसी भक्ति किस काम की नन्दी बनाकर छोड़ दिये।क्या उनकी शिवभक्ति नन्दी बनाने तक ही रहती है?
अभी कुछ दिन पूर्व महामाया धाम की ओर जाने वाली सड़क पर एक मुश्त लगभग डेढ़ दर्जन गाएं मर गयीं।उन्हें मरे दो दिन ही हुए है कि दो सड़कों पर सत्ताईस जुलाई को 24 मवेशी मर गये।
इन सबके बावजूद गो पालकों,गो भक्तों को जागरूक करने के लिए कोई अभियान नहीं छेड़ा गया है।जबकि हाईकोर्ट ने खुद संज्ञान लेकर लोगों को जागरूक करने कहा है।गाय पालक भक्त अपनी गायें छोड़ क्यों देते हैं सड़कों पर?इस सवाल का कोई जवाब नहीं है।
निगम सरकार की परेशानी कौन समझ सकता है?गाय पकड़ने हों,कुत्ते पकड़ने हों,सांड पकड़ने हों तो उनके ही कर्मचारी हैं क्या ?लोकनिर्माण वाले,परिवहन विभाग वालों की कोई जिम्मेदारी नहीं बनती ?
निगम सरकार के पास पकड़ अभियान से समय बचे तब तो वे जनता की ओर ध्यान देंगे।जिस तरफ सरकार ध्यान नहीं देती उस तरफ आतंक बढ़ जाता है।इन दिनों नगर में गाय,कुत्ते और सांड पकड़ने का अभियान चलाया जा रहा है।
निगम के कर्मचारियों को लगा दिया गया है कि वे सड़क से ऐसे पशुओं को पकड़े।अब निगम के और सड़क के सांडों के बीच चौक-चौराहों में महासंग्राम छिड़ा हुआ है।दोनों में किसका पक्ष उन्नीस है और किसका पौ बारह कह पाना मुश्किल है।एक चौराहे में एक सांड को रस्सी फेंककर फंसा तो लिया गया किंतु सांड बचने भागा।अब रस्सी डालने वाला भी व्यक्ति जो निगम कर्मी नहीं था,वह रस्सी छोड़ने को तैयार नहीं था तो सांड भी तय कर लिया था कि मजा चखा कर छोडूंगा।फलतः सांड पूरी ताकत से भगा।नतीजतन जवान दूर तक घिसटते रहे।आखिरकार सांड विजेता बना और जवान को हॉस्पिटल में मरहम-पट्टी फ्री कराने का अनुतोष प्राप्त हुआ।हफ्ते भर उनका इलाज चला।जब घर गए तो हाथ पैर में प्लास्टर का गिफ्ट लेकर गये।
हम तो केंद्र सरकार से मांग करेंगे उन्हें सांड रत्न का सर्वोच्च सम्मान का प्रदान किया जाए।सांड ,कुत्ते और गायों का कोई ठिकाना तो रहता नहीं ,अब आदमी को खुद अपने बचाव का रास्ता खोजना चाहिए।कहते हैं बरसात में कुत्तों के दांतों में खुजली होती है और वे अधिक काटा करते हैं।
एक अनुमान के अनुसार शहर में सांडों की संख्या एक हजार से ऊपर है।अब निगम सरकार से कॉलोनियों में भरा बरसाती पानी तो निकलता नहीं,सांड,कुत्तों आवारा गायों को वे क्या खाकर शहर बाहर कर सकेंगे।सांडों के मारे शहरवासी बहुत परेशान है।ऐसा नहीं कि न्यायधानी में ही सांड मजे से पागुर कर रहे हैं वरन् राजधानी में भी जमकर चर रहे हैं।हाथ-पैर तुड़वा रही है तो बेचारी जनता।
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