29 जुलाई ‘अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस

( वायरलेस न्यूज़)
जब दूसरे भी संकट में हैं तो सिर्फ बाघ ही क्यों?
पदम् श्री, पदम् भूषण, रसकिन बांड की कहानी “टाइगर टाइगर बर्निंग ब्राइट” में दादा पोते से कहता है “बाघ भारत की आत्मा है और जब आखिरी बाघ चला जाएगा तो हमारे देश की आत्मा भी चली जाएगी।“ बाघ हमारे देश का राष्ट्रीय पशु है। हर साल 29 जुलाई को हम अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस गर्व और उत्साह से मनाते हैं। वन्यजीव प्रेमियों, सरकारें और मीडिया, सभी का ध्यान बाघ पर केंद्रित रहता है।

बाघ एक सर्वोच्च शिकारी है, जो शिकार-शिकारी संतुलन बनाए रखता है और जंगल के पारिस्थितिकी तंत्र को संतुलित करता है। निस्संदेह, बाघ एक छत्र प्रजाति (अम्ब्रेला स्पीशीज़) है जो कि संकटग्रस्त है।

पर क्या सिर्फ बाघ ही संकट में है? क्या बाकी वन्य जीव, जैसे भेड़िये, जंगली कुत्ते (ढोल), हाथी, तेंदुए, भालू, पैंगोलिन इत्यादि संकट में नहीं हैं? क्या बाघ के संरक्षण को प्राथमिकता देने के चक्कर में हम इन्हें भूल गए है? क्या ये हमारी चिंता के लायक नहीं हैं? हाथी भी अम्ब्रेला स्पीशीज़ है, संकटग्रस्त भी है। क्या हाथी का योगदान पर्यावरण में बाघ से कम है? क्या भेड़िया, जो बाघ के बराबर संकटग्रस्त है, हमारी चिंता के लायक नहीं है? भेड़िया जो झुंड में शिकार करता है अब कई बार एक-दो की संख्या में कई जगह दूसरों का बचा-कुचा मांस खाते देखा जा सकता है। क्या जंगली कुत्ते (ढोल), जो भारतीय जंगलों में बाघ की तरह ही शीर्ष शिकारी हैं, कोई महत्व नहीं रखते? परन्तु खेद! सिर्फ बाघ केन्द्रित होने के कारण हम इनको भूल गए हैं। हमने तो पैंगोलिन जैसे शर्मीले जीव को भी पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया है, जबकि वह आज दुनिया का सबसे ज़्यादा तस्करी किया जाने वाला संकटग्रस्त जानवर है। यह जीव पर्यावरण के लिए बेहद जरूरी है, क्योंकि यह कीटों को नियंत्रित करता है। पर इसकी शल्क और मांस के लालच में इसे बेरहमी से मारा जा रहा है, और इसके लिए कुछ किया जा रहा है सुनने में नहीं आता।
आज बाघ को “आइकॉनिक प्रजाति” मानकर हर जगह विशेष संरक्षण दिया जाता है। जब कोई बाघ किसी राज्य की सीमा पार कर दूसरे राज्य में जाता है तो दूसरे राज्य में उसकी निगरानी, सुरक्षा, मीडिया कवरेज, सब कुछ बाघ के लिए अविलम्ब होता है। लेकिन दूसरी तरफ, जब एक हाथी छत्तीसगढ़ से मध्यप्रदेश की सीमा में घुसता है, तो उसे खदेड़ा जाता है, पटाखों से डराया जाता है, आवाजें करके भगाया जाता है। उसे “अवांछित” करार दिया जाता है। एक दुखद घटना में मध्यप्रदेश में, एक हाथी को इसलिए पकड़ा गया क्योंकि वह “बार-बार” मध्यप्रदेश में प्रवेश कर रहा था। उसे एक तंग से क्रॉल में महीनों तक बंद रखा गया, जहां वह बैठ भी नहीं सकता था। उसे प्रशिक्षित करने के नाम पर महीनों तक शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित किया गया। आज वह हाथी आजीवन कैद में है।
तेंदुआ हमारे जंगलों का सबसे सुंदर और आकर्षक स्तनधारी है। उसकी चाल, चित्तीदार शरीर और गहरी, चमकदार, रहस्यमयी आँखें मन मोह लेती हैं। वह जंगल, पहाड़, खेत और शहरों तक में खुद को ढाल लेता है। फिर भी विडंबना है कि संरक्षण में उसकी उपेक्षा होती है। गांव या शहर के पास दिखते ही उसे पकड़कर दूर के जंगलों या चिड़ियाघर भेज दिया जाता है, जबकि उसका अपने ठिकाने से गहरा जुड़ाव रहता है, अनजान जगह पर पहुचने पर उसे गहरा मानसिक आघात लगता है। मध्य प्रदेश में जब कूनो अभ्यारण से गांधी सागर अभ्यारण में अफ्रीकी चीतों को बसाने की योजना बनी, तो वहां के 22 निर्दोष तेंदुओं को उनके घर से 300 किलोमीटर दूर भेज दिया गया, सिर्फ इसलिए कि चीतों के लिए सुरक्षित जंगल चाहिए था। जबकि नियम कहते हैं कि तेंदुए को 10 किमी के दायरे में ही पुनःस्थापित करना चाहिए। कुछ की मृत्यु हो गई और बाकी आज भी अनजाने जंगलों में संघर्ष कर रहे होंगे।
आज जब दुनिया जैव विविधता के संकट से जूझ रही है और लाखों प्रजातियाँ विलुप्ति के कगार पर हैं, तब सिर्फ बाघ पर केंद्रित रहना हमारी सबसे बड़ी भूल होगी। जंगल एक जटिल पारिस्थितिकी तंत्र है, जहाँ हर जीव, चाहे वह भेड़िया हो, हाथी हो, भालू हो, पैंगोलिन हो, पक्षी हो, सांप हो, पेड़ हो या कोई और, सब अपनी विशेष भूमिका निभाते हैं। हमें यह समझना होगा कि अगर हम केवल प्रतीक प्रजातियों को ही बचाते रहेंगे और बाकी को अनदेखा करते रहेंगे, तो अंततः पूरा पारिस्थितिकी तंत्र ढह जाएगा। इस बाघ दिवस पर हमें यह संकल्प लेना चाहिए कि हम हर संकटग्रस्त प्रजाति के संरक्षण के लिए समान आवाज़ उठाएँगे, क्योंकि जब बाकी सब खो जाएंगे और अकेला बाघ बचेगा तो जंगल अधूरा रह जाएगा।
नितिन सिंघवी