कानफोडू डी.जे. : इतने सारे कानून, नियम, अधिसूचना का क्या औचित्य जब पूर्ण निवारण का तरीका मिल चुका है? सिंघवी ने पूछा प्रश्न

रायपुर( वायरलेस न्यूज 27 अगस्त) त्यौहार सीजन के चलाते हो रहे ध्वनि प्रदूषण के उत्पात से रायपुर ही नहीं प्रदेश की जनता त्रस्त हो गई है। इस बीच ध्वनि प्रदूषण का मुद्दा सबसे पहले वर्ष 2016 में उठाने वाले रायपुर के नितिन सिंघवी ने प्रश्न किया है कि प्रदेश में इतने सारे कानून, नियम, अधिसूचनाएं हो गई हैं उसके बावजूद भी ध्वनि प्रदूषण पर किसी भी प्रकार का नियंत्रण न होने से इनका क्या औचित्य है? उन्होंने कहा कि जनता अब यह मांग करने लग गई है कि इन सब कानून, नियम, अधिसूचना को वापस ले लेना चाहिए। सिंघवी ने इन सब की जानकारी साझा की है। सिंघवी ने आरोप लगाया कि कानफोडू डी.जे. से पूर्ण निवारण का तरीका विधि विभाग ने सुझा दिया है फिर भी कार्यवाही न करना अधिकारियों की मंशा पर शक पैदा करता है।
1995 का कोलाहन अधिनियम
सबसे पहले वर्ष 1985 में कोलाहल नियंत्रण अधिनियम लाया गया, जिसका नाम अब छत्तीसगढ़ कोलाहल नियंत्रण अधिनियम है। इसके तहत कोलाहल करने पर रुपए 1000 का जुर्माना या 6 माह की सजा या दोनों का प्रावधान है। परंतु आज तक किसी को भी 6 माह की सजा नहीं हुई है। सिर्फ एक हजार का जुरमाना लगता रहा है। इस अधिनियम में ध्वनि का विस्तार किस सीमा तक होगा यह नहीं दिया गया है। वैसे 40 साल पहले आज के जमाने के समान हत्यारे कानफोडू इंस्ट्रूमेंट नहीं होते थे सिर्फ हॉर्न टाइप स्पीकर होते थे और रु. 1000 बहुत महत्त्व रखता था, कई घरो का माह भर का खर्च चल जाता था।
2000 का केंद्र का नियम
2000 में केंद्र सरकार ने नॉइस (रेगुलेशन एंड कण्ट्रोल) नियम लाये। जिसमे बिना अनुमति स्पीकर बजाना प्रतिबंधित किया गया। इसमें औद्योगिक, व्यावसायिक, रहवासी क्षेत्र और साइलेंस जोन में दिन और रात में अधिकतम ध्वनि विस्तार की सीमा निर्धारित की गई। उल्लंघन करने पर 5 साल की सजा और एक लाख तक का जुर्माना प्रावधानित किया गया। छत्तीसगढ़ में आज तक इन नियमो के तहत कोई कार्यवाही नहीं हुई है।
2016 का हाई कोर्ट का आदेश
वर्ष 2016 में छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने आदेशित किया कि कलेक्टर तथा एसपी सुनिश्चित करें कि कोई भी वाहन पर साउंड बॉक्स ना बजे वाहन में साउंड बॉक्स मिलने पर साउंड बॉक्स जप्त कर वाहन का रिकॉर्ड रखा जावे जब्त साउंड बॉक्स को मजिस्ट्रेट (कलेक्टर) के आदेश के बाद ही छोड़ा जाना है।
2019 से ही अनिवार्य है स्पीकर्स में लिमिटर लगाना
छत्तीसगढ़ शासन की अधिसूचना 4 नवम्बर 2019 के अनुसार ध्वनि प्रदूषण के प्रभावी नियंत्रण के लिए ऐसे साउंड सिस्टम जिसमें ध्वनि सीमक अर्थात साउंड लिमिटर ना लगा हो उसका विक्रय, क्रय, प्रदाय, संस्थापन, उपयोग नहीं किया जाएगा और किराए पर नहीं दिया जाना है। उल्लंघन करने पर 5 साल की सजा और एक लाख तक का जुर्माना प्रावधानित किया गया। छत्तीसगढ़ में आज तक इन नियमो के तहत कोई कार्यवाही नहीं हुई है।

2021 का पर्यावरण क्षतिपूर्ति का आदेश, इसमें जब्त सामान छोड़ने का कोई प्रावधान नहीं है
अलग-अलग कानूनों, नियमों में सजा के प्रावधान के अलावा 16 जुलाई 2021 को छत्तीसगढ़ पर्यावरण एवं संरक्षण मंडल ने एक अधिसूचना जारी की जिसके अनुसार पोल्यूटर भुगतान करेगा (Polluter Pays) सिद्धांत के तहत लाउडस्पीकर निर्धारित ध्वनि सीमा से अधिक बजाने पर पर्यावरण क्षतिपूर्ति वसूल की जानी है जिसके तहत प्रत्येक बार रुपए दस हजार की पर्यावरण क्षतिपूर्ति वसूल की जानी है और लाउडस्पीकर इत्यादि जब्त किए जाने हैं। अधिसूचना में जप्त किए सामानों को छोड़े जाने का कोई प्रावधान नहीं है अर्थात यह जप्त ही रहेंगे। गौरतलब है कि क्षतिपूर्ति वसूलने के साथ-साथ कानून के तहत प्रकरण भी दर्ज किए जाने हैं।
2024 का शासन का आदेश
आवास एवं पर्यावरण विभाग ने 11 सितंबर 2024 आदेश जारी किया कि कलेक्टर तथा एसपी सुनिश्चित करें कि कोई भी वाहन पर साउंड बॉक्स ना बजे वाहन में साउंड बॉक्स मिलने पर साउंड बॉक्स जप्त कर वाहन का रिकॉर्ड रखा जावे जब्त साउंड बॉक्स को मजिस्ट्रेट (कलेक्टर) के आदेश के बाद ही छोड़ा जाना है आज तक इस आदेश के तहत कोई भी जब्त सामान कलेक्टर के आदेश के बाद नहीं छोड़ा गया है। सिर्फ ₹1000 की पेनल्टी लगने के बाद छूट गए हैं।
15 लाख की पेनल्टी
नवंबर 2024 से लागू किए गए पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम 1986 के संशोधन के अनुसार ध्वनि प्रदूषण पर रुपए दस हजार से लेकर 15 लाख तक की पेनल्टी लगाई जा सकती है जिसके लिए सचिव आवास एवं पर्यावरण विभाग अधिकृत किए गए हैं।
कैसे हो सकता है पूर्ण निवारण?
छत्तीसगढ़ शासन द्वारा केंद्र के कानून और छत्तीसगढ़ के नियम का अध्ययन करने के लिए और संशोधन प्रस्तावित करने के लिए गठित समिति को वोधी विभाग ने कहा है कि मोटरयान अधिनियम 1988 की धारा 66 (1), 192 (क), 182 क (4), 194 (1क) का परिवहन विभाग द्वारा कढ़ाई पूर्वक पालन सुनिश्चित कराए जाने से वाहनों में डीजे सिस्टम लगाकर ध्वनि प्रदूषण फैलाए जाने का पूर्ण रूप से निवारण हो सकता है।
5000 लोग ज्यादा महत्वपूर्ण है कि करोड़ों लोग
सिंघवी ने कहा कि बहरा अंधा करने वाला, हार्ट अटैक ब्रेन हेमरेज लाने वाला, बी.पी. बढ़ाने वाला, आत्मदाह कराने वाला कानफोडू डीजे किसी की रोजी-रोटी नहीं हो सकता। प्रदेश में अधिकतम 5000 लोग ही कुछ दिन अतिरिक्त कमाई कर पाते हैं परंतु ढाई करोड़ की जनता विशेष रूप से बच्चे बुजुर्ग इससे परेशान रहते है। अब यह सोचने का वक्त है कि 5000 लोग ज्यादा महत्वपूर्ण है कि करोड़ों लोग?
नितिन सिंघवी
9826126200