बिलासपुर अमित मिश्रा संपादक वायरलेस न्यूज़)
हाथी और मानव के बीच आखिर द्वंद कब रुकेगी इसका जवाब न तो सरकार सोच रही और न ही जनता ? आखिर बेजुबांन हाथियों की ‘कब्रगाह’ बन चुके धरमजयगढ़ वन मंडल में मौत का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। कभी हाथी इंसान को पटककर मार रहा है तो कभी इंसान अपनी फसल और जान बचाने हाथी को परलोक पहुंचा रहा है। जो भी हो धरमजयगढ़ वन मंडल क्षेत्र में किसी न किसी तरह से हाथी और इंसान की मौत हो ही रही है। लेकिन इस विसंगति को रोकने में सबके सब ‘फेल’ होते नजर आ रहे है।इसका अंजाम क्या होगा ये गम्भीर सोच का विषय है ! हाथी सोचता है की मेरे रहवास में इंसानी दखल क्यों लेकिन समझदार होकर नासमझ इंसान यह क्यों नही समझने की कोशिश करता है कि वाकई इंसान हाथियों का हक मार रहा है ? जंगल उजाड़ खदान प्रारम्भ किए जा रहे है तो आखिर हाथी कहां जाए, खदान खुलने से इंसान का पुनर्वास तो हो जाता है लेकिन हाथियों का पुनर्वास …. ?
सरकार और वन विभाग का प्रोजेक्ट धरातल पर होने की बजाय कागजों पर की जा रही है जो कतई उचित नहीं है। और तो और वाइल्डलाइफ बोर्ड ने हाथियों की समस्या पर कभी नहीं सोचता है, बल्कि बे सिर पैर का एक गलत निर्णय सरकार ने ले लिया है कि “डब्लू डब्लू आई” देहरादून को सरकार ने हाथियों की समस्या से निजात दिलाने 3 करोड़ रु.का अनुबंध कर रखा है इससे धरातल में कुछ भी उपलब्धि दिखाई नही दे रहा ? जो एक्सपर्ट सरगुजा में बैठे है वो क्या कर रहे ? केरल का आदमी छत्तीसगढ़ की न तो भाषा जानते हैं और न ही बोल पाते आखिर इस तरह के गैरजिम्मेदाराना निर्णय क्यों लेती है सरकार।
वहीं छत्तीसगढ़ में एक कनाडा से अर्थ लाभ ले रही एनजीओ संस्था डब्लू डब्लू एफ(वर्ल्ड वाइड फंड)पिछले 10 सालों से जमीं हुई है जिसकी छत्तीसगढ़ में कोई भी उपलब्धि नहीं है इनकी भी भूमिका बहुत ही संदिग्ध है ? शानदार पॉश इलाके में चमचमाती ऑफिस संचालित कर रखें है जिसका लाभ छत्तीसगढ़ को मिलता नही दिख रहा है आखिर वे क्या करें है और मोटी तन्खा ले ऐशगाह बना हुआ है। इनका कार्य फील्ड में कभी नही दिखता है बल्कि शहरों में सेमिनार बेवीनार आयोजित कर किसको जागृत कर रहें समझ से परे है, जबकि जंगल मे रह रहे लोगों को जागरूक करने की ज्यादा जरूरत है। और सरकार से मदद भी ले रहे है।
इनसे तो अच्छा बिना सरकारी मदद के हाथी और मानव द्वंद कैसे रुके इस पर स्वंयम के खर्च पर पाम्पलेट छापकर गांव गांव जाकर मंसूर खान (वन्यजीव के जानकार) निशुल्क जागृत करने का काम करते है, वहीं सरगुजा के प्रभात दुबे जंगल मे जाकर गांव गांव जागरूक कर रहें है। वहीं हाथियों की मौत हो या फिर अन्य वन्यजीवों को लेकर हमेशा चिंतित रहने वाले रायपुर निवासी नितीन सिंघवी (वन्यजीव प्रेमी) , जैसे लोग उंगलियों में गिने जा सकते है जो इनकी सोचता है ? और किसी की जिम्मेदारी नहीं जो इनके लिए आवाज उठाए ?
सबसे चौकाने वाली बात तो यहां सामने आई है कि धरमजयगढ़ के डीएफओ मणिवासनगन तो बहुत ही गैरजिम्मेदाराना बयान देते हुए कहते हैं कि *”इनकी मौत कैसे रुकेगी, यह शासन ज्यादा बेहतर बता सकती है,मेरे लेवल का नहीं हैं !*
खैर , जो भी हो धरमजयगढ़ क्षेत्र में हाथियों के लिए ‘कब्रगाह’की स्थिति बनती जा रही हैं। और हाथियों के कारण आए दिन इंसान की भी मौत हो रही है, इसपर भी जिम्मेदार लोगों का बयान भी कम चौकाने वाला नहीं ?
धरमजयगढ़ के विधायक लालजीत सिंह राठिया से हुई बात भी कुछ कम नहीं , वे कहते है हाथी जंगल का शेर है , महासमुंद-आरंग तक पहुंच गए है हाथी , *सीएम हाउस को घेरने वाला है हाथी* , सभी तरफ मर रहे हैं हाथी यहीं (धरमजयगढ़)थोड़े मर रहें हैं ? ये तो एक दुर्घटना है, कलयुग में तो हम जी रहे है। रास्ते में जा रहे हो हाथी मिल जाएगा तो क्या कर सकते है। हाथी को आप कहाँ बाँधोगे ? हम मनुष्य क्या कर सकते है। बचकर हमें चलना है ,यह दुर्घटना हैं, इसमें कुछ नही किया जा सकता।
वहीं एक और आदिवासी नेता और राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के पूर्व अध्यक्ष नन्द कुमार साय ने अंचल में में बारम्बार हाथियों से हो रही घटना को गम्भीरता से लेते हुए कहा कि हिंसक हाथियों के हमले से बेकसूर लोगों की जा रही है जान, पर अधिकारियों को कोई ठोस और जमीनी स्तर पर कदम उठाने को कहा है। अन्यथा हाथियों का आतंक बर्दाश्त से बाहर हो गया है ? बयान से मतलब साफ है की वन अधिकारी जनता को हाथियों से मुक्ति करावे अन्यथा इंसान हाथियों को मुक्त कर देंगे ! जो कि बहुत ही गम्भीर इशारा है ?
हाथी प्रभावित वन विभाग के जिम्मेदार अफसर भी उनके परिसीमन में जैसे ही हाथी घुसते है वो तत्काल उन्हें खदेड़ने में जुट जाते है और यही सिलसिला अन्य डीएफओ भी दोहराते है जिससे हाथी गुस्से में जनहानि करते है।
वहीं एक और चौकाने वाली बात है कि जंगल में आदिवासी अपने घरों में महुवा से शराब बनाने के काम मे ज्यादातर ब्यस्त होते है उन्हें रोकने आबकारी विभाग का दायित्व है, उसे यही हाथी रोकने जैसा कार्य करते है क्योंकि जिन आदिवासियों के घरों में महुवा शराब होते है वहीं हाथी तोड़फोड़ ज्यादा करते है एक प्रकार से उन्हें रोकने का काम आबकारी विभाग न कर हाथी कर रहे है, डर से शराब नही रखते। यही कार्य आबकारी करते तो हाथी तोड़फोड़ नही करते।
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