लालगलियारा बनने की वजह
बताता है ‘रेड फ़ायर’: रिपु
🍙पहली बार नक्सलवाद
केंद्रित कहानियों का संग्रह

रायपुर(अमित मिश्रा संपादक वायरलेस न्यूज़) हिंदी साहित्य में पहली बार नक्सलवाद को केंद्र पर रखकर लिखी गई कहानी संग्रह ” रेड फायर’शीर्षक से प्रलेक प्रकाशन मुंबई ने प्रकाशित किया है। इस संग्रह का संपादन वरिष्ठ पत्रकार रमेश कुमार”रिपु” ने किया है। उन्होंने बताया कि रेड फायर के अफसाने में ख़ौफ़ की तिजारत करने वालों की वह परछाइयां है,जिनकी वजह से बनता है लाल गलियारा।
नक्सलवाद को लेकर कहानियां बहुत कम लिखी गई है। देश के 85 लेखकों से बात करने के बाद बड़ी मुश्किल से 15 कहानियां मिली है। संग्रह की कहानियों में माओवाद के हर पक्ष को लेखकों ने लिखा है।
सवाल आज भी कायम है कि जंगल की देह पर किसने लिख दिया, अब यहांँ से शुरू होता है ‘लाल गलियारा’! अब अबूझमाड़ में जिधर देखो ‘रेड फ़ायर’ के निशांँ हैं। ‘रेड फायर’ के अफ़साने में खौफ़ की तिजारत करने वालों की वो परछाइयांँ हैं,जिनकी वजह से बनता है ‘लाल गलियारा’।

आदिम संस्कृति की छाती पर सेंध लगाया और जंगल के अंधेरे का लिबास पहनकर माओवादियों ने बंदूकें उठा लीं। नक्सलबाड़ी से उठा नक्सलवाद का धुआँ देश के गोशे-गोशे में फैल गया है। गोली एक बार इंसानियत पर और दूसरी बार प्राणों पर चली। यह कह कर, कि हम जंल,जंगल और जमीन के रखवाले हैं। जंगल में एक चीख निकलती है…और अठमासा बच्चे की तरह मर जाती है ज़िन्दगी..।
सी.आर.पी.एफ. के जवान शहीद होते हैं, तो ‘तिरंगे’ का सीना चौड़ा हो जाता है या कोई माओवादी मरता है, तो ‘लाल झंडा’ सलाम कहकर झुक जाता है..! किस जमीन के टुकड़े के लिए बारूद बिछाने का खेल देश के अंदर हो रहा है? न जवानों के सीने में डायनामाइट होता है और न माओवादियों के सीने में, फिर ‘रेड फ़ायर’ के निशांँ बनने से किसके ख़्वाब मुकम्मल होंगे?

“रेड फ़ायर” की कहानियाँ हिंसा, उग्रवाद, नक्सलवाद और दर्दो की बानगी मात्र नहीं हैं,बल्कि एक जीवंत एहसास हैं। ये सच से सामना कराती हैं। जंगल में एक नई संस्कृति अट्टहास कर रही है। कदम-कदम पर मार्क्सवाद का जंगलीपन है, वहीं पुलिस, पुलिस भी नहीं है।
नक्सलवाद को केन्द्र में रख कर लिखी गई कहानियों का अनूठा संग्रह है “रेड फ़ायर”। नक्सलवाद से मिले दर्द को कलमकारों ने जब कागज़ पर उतारा, तो हर अक्षर की आँखें गीली हो गईं।
‘रेड फ़ायर’ को किताब की शक्ल देने में छत्तीसगढ़ ,मध्य प्रदेश ,झारखंड ,बिहार, पश्चिम बंगाल और यूपी के कलमकारों का महत्वपूर्ण योगदान रहा।
संजीव, सुरेश कांटक, मधु कांकरिया, परदेसी राम वर्मा, गिरीश पंकज, लोकबाबू, रमेश कुमार “रिपु”, कौशलेश तिवारी, श्रद्धा थवाईत, अवधेश प्रीत, राकेश कुमार सिंह, पंकज मित्र, तरूण भटनागर, ओमप्रकाश मिश्र और रश्मि गौड़ किले की कहानियां संग्रह में है।
किताब अमेजन पर उपलब्ध है। सुधि पाठक सीधे प्रकाशक से भी इसकी प्रति मंगा सकते हैं।
प्रलेक प्रकाशन: 91-7021263557
अमेजन का लिंक नीचे है। https://www.amazon.in/dp/9390916976/ref=cm_sw_r_awdo_navT_g_G0E8G1KW3ACZJD0BJDQP

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Amit Mishra - Editor in Chief
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