( मनोज कुमार द्विवेदी, अनूपपुर- मप्र )
किसी भी व्यक्ति के सफल जीवन के लिये पुरुषार्थ जरुरी है। पुरुषार्थ के बिना जीवन व्यर्थ है। पुरुषार्थ का मतलब मानव जीवन के लक्ष्य ,उसके उद्देश्य से है। वेदों में धर्म, अर्थ, काम ,मोक्ष को चार प्रकार का पुरुषार्थ कहा गया है। इसके बिना किसी भी काल में सफल जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। आज के आपाधापी वाले इन्टरनेट युग में हमारे आसपास कुछ ऐसे दीर्घजीवी , सफल ,संतुष्ट लोग उपस्थित हैं ,जिनका जीवन लोगों के लिये आदर्श हो सकता है या कहें कि है। ऊंगलियों में गिन सकें, इतनी संख्या वाले ऐसे बुजुर्गों के पास बैठ कर ,उनके जीवन सूत्र, उनके अनुभवों को आशीर्वचन के रुप में सहेजने की बड़ी आवश्यकता है। अलग – अलग विधाओं के , अलग – अलग कार्यक्षेत्र में लंबे समय तक अपनी पहचान बनाए रखने वाले कुछ ऐसी ही हस्तियों के साथ बैठ कर उनकी बातों, उनकी यादों , उनके आदर्शों, जीवन सूत्र को शब्दों के माध्यम से सहेजने की छोटी सी कोशिश के तहत चालीस साल पहले अनूपपुर के एक मात्र गणेश टाकीज की स्थापना करने वाले जिले के सफल वरिष्ठ व्यवसायी श्री हीरालाल गुप्ता से मुलाकात की। लगभग ढाई घंटे उनके साथ बैठ कर सीधे वार्ता करने पर अनूपपुर से जुड़ी बहुत सी दशकों पुरानी बातें जानने को मिलीं। सहज ,सरल तरीके से 90 वर्षीय हीरालाल बाबूजी ने जितनी बातें मुझे बतलाईं , वह उनके इस बड़ी उम्र में स्वस्थ ,सफल, संतुष्ट जीवन को प्रदर्शित करते हैं। चार भाई और चार बहनों के बीच पले पढे हीरालाल जी का जन्म 90 वर्ष पूर्व तब के शहडोल जिला अंतर्गत वेंकटनगर गाँव में हुआ था, जो आज अनूपपुर जिले का छत्तीसगढ़ से लगा सीमावर्ती हिस्सा है। इनके बाबा शिवनारायण गुप्ता एवं पिता पूरनचन्द गुप्ता कर्वी, राजापुर, उप्र के रहने वाले थे। छ: बेटों और चार बेटियों के साथ नाती – पोतों से भरे पूरे परिवार के मुखिया के रुप में वे स्वस्थ एवं संतुष्ट जीवन जी रहे हैं।
क्षेत्र में 60 साल में आया बड़ा परिवर्तन
अनौपचारिक वार्ता के दौरान गुप्ता जी ने बतलाया कि 1965 से पहले इस क्षेत्र का जीवन बहुत सरल था। संसाधन कम थे, सड़कें, पुल, पुलिया, बिजली आदि कुछ भी नहीं थे। सामतपुर पंचायत ( आज का अनूपपुर ) से शहडोल, अमरकंटक, राजेन्द्रग्राम, कोतमा जाने का कोई पक्का रास्ता नहीं था। अमरकंटक, राजेन्द्रग्राम चारों ओर से बन्द टापू जैसा, दुर्गम , घने वनों से युक्त, खतरनाक जीव जन्तुओं से भरपूर क्षेत्र था। रीवा महाराजा गुलाब सिंह पुष्पराजगढ के गढी दादर में गढ़ी बनवाना चाहते थे। इसके लिये पत्थर ,मुरुम से राजेन्द्रग्राम और बाद में अमरकंटक तक मार्ग बनाया गया। यद्यपि गढी का निर्माण फिर नहीं किया गया। घोड़े, खच्चरों से नमक, मसाले ,उपयोग की वस्तुएँ ढोई जाती थीं। कबीर होकर छत्तीसगढ़ से अमरकंटक पहुंचना अधिक सरल था। राजस्व से जुड़े सभी कार्य शहडोल से होते थे।
रोचक है पत्ता गोदाम से गणेश टाकीज का सफर
शंकर प्रसाद शर्मा, मंजूर हसन, प्रेमकुमार त्रिपाठी, रामसिया द्विवेदी, रामसिंह ,भाईलाल पटेल से नजदीकियों की खट्टी – मीठी यादों को वे आज भी खूब याद करते हैं। तब की कांग्रेसी राजनीति में शंकरबाबू, भाईलाल, प्रेमकुमार की तिकड़ी की तूती बोलती थी। किस तरह से रेलवे फाटक के सामने वाली जमीन पर पार्टनरशिप में तेंदू पत्ता गोदाम बनाया गया और फिर किस तरह से 1980 में रिकार्ड एक साल में श्रीगणेश टाकीज की स्थापना हुई ,यह सब हीरालाल जी से सुनना अद्भुत रहा । म प्र शासन के तब के मंत्री कृष्णपाल सिंह के प्रतिनिधि के रुप मे शहडोल कांग्रेस के बड़े नेता प्रेमजी निगम के हाथों टाकीज का शुभारंभ हुआ। वे बड़ी बेबाकी से बतलाते हैं कि केवई नाका का ठेका तब उन्होंने पन्द्रह हजार में लिया था और उसी समय वहाँ कालरी खुलने से दिन भर कोयले के सैकड़ों ट्रक निकलने के कारण उन्होंने मोटी कमाई की। राजनीति में दलवीर सिंह और बिसाहूलाल सिंह का उत्थान, कृष्णपाल सिंह का मंत्रित्वकाल भी उन्हे बखूबी याद है। वो कहते हैं कि अपने समय में कांग्रेस ने देश में बहुत काम किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यों की वे खूब सराहना करते हैं। लेकिन कांग्रेस को नष्ट करने का नारा उन्हे पसंद नहीं आता।
फुटकर सब्जी विक्रेताओं को मिले स्थान
रेलवे ओव्हर ब्रिज से जुड़े तमाम भूमि संबधी विवादों की उन्हे तथ्यात्मक जानकारी है। ब्रिज जल्दी बने, रेलवे फाटक की समस्या शीघ्र दूर हो ,यह उनकी बड़ी इच्छा है। पिछले कुछ वर्षों में अनूपपुर में तेजी से हुए बदलाव को वे स्वीकार करते हैं।
कलेक्टर सुश्री सोनिया मीणा की कार्य शैली से वो बहुत खुश हैं । वो यह चाहते हैं कि सब्जी मंडी में सड़क किनारे, घरों – दुकानों के सामने काबिज फुटकर सब्जी विक्रेताओं को खाली करवाए गये थोक विक्रेताओं की रिक्त जगह पर दुकान लगाने दिया जाए। इससे सड़कें यातायात के लिये सुलभ होगीं, अभी यहाँ से गुजरना मुश्किल होता है।
ईमानदारी, कड़ी मेहनत का विकल्प नहीं
हीरालाल बाबू जी के सभी पुत्र सुरेश , गणेश, राजेश, राकेश, रिंकू कुशल व्यवसायी है। जिले में इनके अच्छे व्यवहार, आदर्श जीवन , उच्च सफल व्यावसायिक जीवन की अच्छी साख है। इसका राज पूछने पर मृदु मुस्कान के साथ वो कहते हैं कि मैने कभी ईमानदारी छोड़ी नहीं और कड़ी मेहनत से भागा नहीं । ईमानदार कार्य व्यवहार और कड़ी मेहनत मेरा मूल मंत्र है। कभी भी बेईमानी नहीं करना चाहिए । वो एक दोहा गुनगुनाते हुए कहते हैं —
बुरे काम का बुरा नतीजा
किया ना हो तो कर देखो
जिन्होंने किया है…
उनका जा कर घर देखो।
अनूपपुर जैसे छोटे से गाँव में वे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने 1960 में टाटा 312 माडल का डंडा मर्सिडीज लिया था। 34 हज़ार रुपये कीमत की मर्सिडीज का नम्बर 2712 आज भी उन्हे और उनके बच्चों को याद है।
90 वर्षीय हीरालाल जी आज भी बिल्कुल स्वस्थ हैं, मजबूत हैं और सौ साल से ऊपर होने तक अपना दैनिक कर्म स्वत: करते रह सकते हैं। वे आज भी सुबह 6 बजे बिस्तर छोड़ देते हैं। सुबह उठते ही बिस्तर पर तीन गिलास पानी पीना, शौचालय से आने के बाद नारियल तेल से हाथ, पैर ,शरीर पर मालिश करना नहीं भूलते। नित्य पूजा करते हैं , गाय, पवित्र वृक्षों, नदियों ,देवी देवताओं और अपने परमपूज्य श्री गुरुजी 1008 श्री रामहर्षण दास जी महाराज को याद करना नहीं भूलते। गायों की सेवा करते हैं । घर पर जो भी स्वल्पाहार, भोजन बनता है, बड़े प्रेम से ग्रहण करते हैं। सभी छ: बेटे ,चार बेटियाँ अपने परिवारों में खुश हैं । यह सब उनकी खुशी, संतुष्टि का बड़ा कारण है। नई पीढी के युवाओं के लिये हीरालाल बाबूजी का स्वस्थ, सुखी, संतुष्ट जीवन प्रेरणादायक है।
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