(वरिष्ठ पत्रकार निरंजन शर्मा सतना म.प्र.)
साइकिल के कैरियर में वकालत की किताबें और फाइलें दबाकर घर से कोर्ट आने-जाने वाले एक साधारण वकील से सर्वोच्च न्यायालय के 27वें चीफ जस्टिस बनने तक का सफर पूरा करने वाले स्व. जगदीश शरण वर्मा की सतना स्थित आखिरी निशानी रीवा रोड स्थित उनका घर भी अब काल-कवलित हो रहा है ! लगभग एक एकड़ की चहारदीवारी के अंदर बने इस भवन को खरीदने वाले स्व. सेठ राधेश्याम अग्रवाल के वंशजों ने कल से यहां तोड़फोड़ कर मलबा उठाना शुरू कर दिया है ! जे.एस. वर्मा के नाम से देश में जाने गए चीफ जस्टिस का बचपन यहीं बीता था और 18 जनवरी सन 1933 को यहीं उनका जन्म हुआ था !
इस भवन में रहते थे अंग्रेजों के जमाने की रेलवे के एक अधिकारी रामसेवक वर्मा जो काफी जमीनी संघर्ष करते हुए इतनी बड़ी स्थिति पर पहुंचे थे कि उनके लिए रेलवे ने एक विशेष सैलून दी हुई थी जो उस पर सफर कर विभाग के विभिन्न कार्यों का निरीक्षण और सुपरवीजन करने निकलते थे ! जस्टिस वर्मा की माता जानकी देवी एक आदर्श गृहणी थी ! जस्टिस वर्मा की प्राथमिक पढ़ाई शहर के वेंकट हाई स्कूल में हुई ! दसवीं के बाद वे लखनऊ और तदुपरांत महाविद्यालय पढ़ाई के लिए इलाहाबाद विश्वविद्यालय आ गए और यहां से बीएससी तथा एलएलबी की डिग्री हासिल की ! सन 1955 में उन्हें वकालत करने की सनद मिली और वे वकील के रूप में नामांकित हो गए ! वकील बनने के बाद उन्होंने रीवा के तत्कालीन प्रसिद्ध वकील श्री गुरुप्रसन्न सिंह (जी.पी.सिंह) को अपना गुरु बनाया और उनके साथ वकालत की शुरुआत रीवा से ही की और चार-पांच साल उनके साथ रहकर सतना आ गए ! सतना की कचहरी में जल्दी ही उनकी वकालत की पताका फहराने लगी ! मेहनती और अध्यनशील तो वे थे ही समय के बड़े पाबंद भी थे !
वरिष्ठ अधिवक्ता श्री संतोष खरे बताते हैं कि वे समय के इतने पाबंद थे कि किसी क्लाइंट को अगर सुबह 10 बजे बुलाया है और वह सवा दस बजे पहुंचा तो बिना किसी मुलाहिजे के उसको मुलाकात की दूसरी तारीख या समय दे देते ! कोई केस लेते तो उसे बड़े अध्ययन के बाद सान पर चढ़ाते ! अपनी बोलने की क्षमता बढ़ाने के लिए उन्होंने शहर के लॉ कॉलेज में पढ़ाना भी शुरू कर दिया ! कामयाबी उनके कदम चूमने लगी ! उस समय की मशहूर स्थानीय कंपनी सुतना स्टोन एंड लाइम कंपनी और सतना सीमेंट ने उन्हें अपना अधिकृत वकील बना लिया ! सतना में लगभग 10-12 साल के बाद वे सन 1966 में जबलपुर हाईकोर्ट पहुंचे तब तक रीवा के उनके सीनियर वकील श्री जी. पी. सिंह भी वहां पहुंच चुके थे ! बाद में श्री सिंह हाईकोर्ट के जस्टिस बने ! वास्तव में पहले रीवा और बाद में जबलपुर में श्री जी.पी. सिंह का साथ और उनका निर्देशन श्री वर्मा के जीवन लक्ष्य की उड़ान में पर्याप्त सहायक बना !
सतना छोड़ने के बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा ! उनकी ऊंची पूरी देहयष्टि, तथ्यपूर्ण वक्तृत्व और सतत अध्ययनशील मानसिकता सदैव उनके काम आई ! अंततः 12 सितंबर 1972 को वे मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय में अतिरिक्त जज के रूप में नियुक्त किए गए ! अगले ही साल में उच्चतम न्यायालय के स्थाई जज बन गए ! यहां से न्याय-क्षेत्र में वकालत के बाद जज के रूप में उनकी दूसरी यात्रा शुरू हुई जो मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय के कार्यकारी चीफ जस्टिस, राजस्थान उच्च न्यायालय के चीफ जस्टिस पद पर से होती हुई सर्वोच्च न्यायालय के जस्टिस और “चीफ जस्टिस ऑफ़ इंडिया” पद तक पहुंची ! राजस्थान के अपने कार्यकाल के दौरान वे वहां के कार्यकारी राज्यपाल भी रहे !
जस्टिस वर्मा के विवाह के 13 साल बाद उनके दो जुड़वां पुत्रियां शुभ्रा और रश्मि पैदा हुई जो विवाह के बाद अपने-अपने घर चली गईं ! श्री वर्मा चार भाई थे जिनमें से दो जॉब के लिए विदेश चले गए ! एक भाई यहीं सतना में पशु चिकित्सा संचालक थे ! एक अरसे पूर्व उनका भी देहांत हो गया है ! श्री वर्मा सर्वोच्च न्यायालय से सेवानिवृत्ति के बाद नोएडा में निजी निवास में रहने लगे थे ! 22 अप्रैल सन 2013 को अस्सी वर्ष की अवस्था में गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में उनका देहावसान हो गया !
सतना के सम्मान समारोह में भावुक हो उठे थे !
सन 1997 में जस्टिस वर्मा के सर्वोच्च न्यायालय के चीफ जस्टिस रहते सतना में जिला अधिवक्ता संघ ने उनका सम्मान समारोह किया ! उस समारोह में अपने भाषण के दौरान श्री वर्मा कई बार भावुक हो उठे ! उन्होंने व्यंकट स्कूल के अपने अध्ययनकाल और रेलवे कॉलोनी के हॉकी ग्राउंड में हॉकी खेलने का एक दृष्टांत सुनाया ! उन्होंने कहा- “रेलवे मैदान में हम लोगों के साथ बिना जूता पहने और अपने पजामा के निचले हिस्से को सुतली से बांधकर शाहिद नामक एक सहपाठी खेला करता था ! बड़ी तेज हॉकी खेलता ! बाद में ऐतिहासिक विभाजन के दौरान उसके परिवार के पाकिस्तान चले जाने की बात सुनी ! हम उसे भूल गए लेकिन कुछ साल बाद हमने सुना कि सतना का वह हमारा बालसखा पाकिस्तान की ओलंपिक हॉकी टीम में शामिल होकर उसका कप्तान बन गया है ! हम तो सुनकर ही रोमांचित हो उठे !”
संभवतः शाहिद भी उधर पाकिस्तान में अपने साथ बचपन में हॉकी खेलने वाले जगदीश के “चीफ जस्टिस ऑफ़ इण्डिया” बनने की बात सुनकर पुलकित हो उठा रहा होगा !
न्यायिक सक्रियता को धार देने याद किये जायेंगे
25 मार्च 97 से 17 जनवरी 98 तक सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश रहे श्री जे.एस. वर्मा ने न्यायिक सक्रियता को नई धार देने के लिए सदैव याद किये जायेंगे ! उनका सबसे महत्वपूर्ण कार्य दुष्कर्म काण्ड के बाद महिलाओं की सुरक्षा के लिए कानूनों में बदलाव की आधारशिला रखने वाली 600 पन्नों की अहम् रिपोर्ट थी जो उन्होंने तीस दिनों के भीतर तैयार कर सरकार को सौंप दी थी ! सरकार ने उनके अधिकांश सुझावों को क़ानून का अमली जामा भी पहनाया !
सार्वजनिक जनहित याचिका की कल्पना और उसके प्रारूप को तैयार करने का कार्य भी जस्टिस वर्मा का ही माना जाता है हालांकि उसका श्रेय तत्कालीन चीफ जस्टिस होने की वजह से पी.एन.भगवती को मिला !
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