०० मस्तुरी के 100 से भी ज्यादा एकड़ जमीन का किया व्यारा-न्यारा, जमीन में हुआ करोडो का खेल

०० सोसायटी की 7 एकड़ जमीन को लेकर एसडीएम न्यायालय पंहुचा मामला, सुनवाई में कई रोचक मोड़

०० जमीन कब्ज़ा का आरोप लगाने वाले पक्षकार को नहीं पता कैसे उसके नाम पर जमीन हुई दर्ज

बिलासपुर- (वायरलेस न्यूज़) मस्तुरी में शासन की करोडो की बेशकीमती जमीन को तत्कालीन तहसीलदार-पटवारी द्वारा दीगर नामो से दर्ज कर करोडो का बंदरबाट किए जाने का मामला सामने आया है, शासन द्वारा सोसायटी को 7 एकड़ जमीन आबंटित किया गया था जिसमे सोसायटी के सदस्य बहुरन कुर्रे के परिवार की गरीब आर्थिक स्थिति को देखते हुए जमीन आबंटित किया गया था इसी जमीन पर रामायण कुर्रे खेती कर अपना जीवन व्यापन कर रहे है थे मगर

गौतम-उत्तम पिता जीववर्धन इस जमीन को अपने नाम पर दर्ज होना बताकर एसडीएम कार्यालय में प्रकरण लगाया गया जिसमे हुई सुनवाई में कई रोचक पेंच सामने आ रहे है|

मस्तुरी तहसील के बस स्टैंड से कर्रा जाने वाले मार्ग में 115.91 एकड़ जमीन छोटे झाड के जंगल के रूप में मिशल में दर्ज है जिसमे से 7 एकड़ जमीन शासन के द्वारा सोसायटी को प्रदान किया गया जो निस्तार पत्रक व अधिकार अभिलेख में दर्ज है, वही बाकी बचे जमीनों को तत्कालीन अधिकारियो, तहसीलदार-पटवारी के द्वारा आपसी मिलीभगत व पक्षकारो से साठगाठ कर तक़रीबन 35 टुकड़ो में विभाजित कर अन्य लोगो के नाम पर दर्ज कर दिया गया है जबकि पक्षकारो का किसी भी राजस्व अभिलेख में किस आधार पर नाम दर्ज है का उल्लेख नहीं है बिना आधार उनके नाम पर दर्ज कर दिया गया है| मामले के अनुसार सोसायटी द्वारा रामायण कुर्रे के पिता बहुरन कुर्रे जो सोसायटी में सदस्य के रूप में शामिल थे उन्हें उनके आर्थिक पक्ष को देखते हुए जीवन-व्यापन करने प्रदान किया गया था जिसको लेकर एसडीएम न्यायालय में प्रकरण लगाया गया है जिसमे दुसरे पक्षकार के रूप में गौतम-उत्तम पिता जीववर्धन जाती मेहरा है जिनके द्वारा अपने नाम पर जमीन दर्ज होना व फसल लगाने की बात कहते हुए मस्तुरी थाने में शिकायत दर्ज कराते हुए रामायण कुर्रे पर जमीन कब्ज़ा का आरोप लगाया गया था इस मामलें में मस्तुरी पुलिस द्वारा 145 जप्ती का प्रकरण बनाया गया वही 45 बोरा फसल को पुलिस द्वारा घर से जप्ती कर लिया गया| इस मामले को लेकर एसडीएम कार्यालय में 145 जप्ती का प्रकरण की सुनवाई लंबित है, जमीन कब्जे को लेकर हो रही इस सुनवाई में कई पहलु सामने आए है जिसमे रामायण कुर्रे पिता बहुरन कुर्रे के अधिवक्ता द्वारा दुसरे पक्षकार के रूप में गौतम-उत्तम पिता जीववर्धन जाती मेहरा से जमीन में नाम दर्ज होने का आधार को लेकर सवाल किए गए जिसमे पक्षकार गौतम-उत्तम द्वारा यह स्वीकार किया गया कि जमीन उनके नाम पर कैसे दर्ज है उन्हें ज्ञात नहीं है जबकि रामायण कुर्रे पिता बहुरन कुर्रे को यह जमीन सोसायटी द्वारा आबंटित किया गया है जो निस्तार पत्रक व अधिकार अभिलेख में दर्ज है| इस मामले की सुनवाई के बाद यह साफ़ हो गया है कि जमीन में नाम दर्ज किए जाने को लेकर फर्जीवाड़ा को अंजाम दिया गया है|