बिलासपुर (अमित मिश्रा वायरलेस न्यूज़) सावन शिवार्चन महोत्सव
भूतभावन भगवान महादेव के उपासना के पावन श्रावण-मास में
सदानीरा शिवनाथ की ईशान कोण प्रशस्त धारा के मध्य स्थित श्री हरिहर क्षेत्र केदार मदकू द्वीप में श्री रामरूप दास महात्यागी महराज के सानिध्य में दिनांक -14 जुलाई से 11 अगस्त 22तक


समय प्रात: 9 से 12 मास-पर्यंत रूद्राभिषेक का आयोजन किया जा रहा है। उक्त पूजन, रूद्राभिषेक में बड़ी संख्या में श्रद्धालु सम्मिलित हो रहे हैं।
श्री रामरूप दास महात्यागी महराज के द्वारा बताया गया कि जो भी श्रद्धालु रूद्राभिषेक पूजन में सम्मिलित होना चाहते हैं,वे मोबाइल नंबर 9479790967 में संपर्क कर अपना पंजीयन करा सकते हैं।

रामरूपदास महात्यागी महराज श्री हरिहर क्षेत्र केदार द्वीप मदकू में विगत चार वर्षों से धूनी रमाए हुए हैं।
पुरे वर्ष भर इनके द्वारा हरेक मास पूर्णिमा को कन्या पूजन, द्वीप क्षेत्र में वृक्षारोपण, अखण्ड रामायण पाठ विभिन्न धार्मिक आयोजन किया जाता है। जिससे द्वीप क्षेत्र एवं आसपास के गांवो में एक आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार हो रहा है।

द्वीप क्षेत्र में वर्षों से कार्य कर भगवती प्रसाद मिश्र ने बताया कि
श्री हरिहर क्षेत्र केदार मदकू द्वीप वास्तु की दृष्टि से पवित्र स्थल स्थल है
मदकूद्वीप चारों तरफ़ शिवनाथ नदी से घिरा हुआ है और यही पर आकर शिवनाथ नदी दक्षिण से आकर उत्तर-पूर्व की ओर कोण बनाते हुए ईशान कोण में बहने लगती है।
हिन्दु धर्म में एवं हमारे प्राचीन वास्तु शास्त्र के हिसाब से जिस जगह में कोई नदी ईशान कोण में बहती है उसे पवित्र माना जाता है। हिन्दु धर्म में ऐसे ही स्थान पर मन्दिरो, बड़े नगरों एवं राजधानियों की स्थापना की जाती रही है। 21डिग्री को सबसे ज्यादा पवित्र माना जाता है , अयोध्या में सरयू 22 डिग्री पर है, प्रयाग मे 23डिग्री है | यहाॅं माण्डूक्य द्वीप में यह 22डिग्री पर है | यही कारण है कि पुरातन काल से ही इस स्थल का सनातन धर्म मानने वालों के लिये सदा से विशेष आध्यात्मिक महत्व का क्षेत्र रहा है | धार्मिक स्थल होने के कारण यहा पूजा पाठ एवं विशाल यज्ञ होते थे।श्री हरिहर क्षेत्र केदार मदकू द्वीप के बारे में कुछ जानकारियाँ

ऋषि मांडूक्य

विशेषताएं

. छत्तीसगढ का पवित्रतम क्षेत्र – जागृत स्थल
. पुरातन स्थान .. सदियों पुराने साक्ष्य मिले हैं |
. उत्खनन में प्राप्त 10-11वीं सदी के मंदिर
. स्मार्तलिंग .. भारत में एकमात्र
. अष्टभुजी नृत्य गणेश की कलचुरी कालीन दक्षिणावर्त प्रतिमा
. मण्डूक्य ऋषि की तप:स्थली
. भगवान राम का आगमन
. अन्य मंदिर
. वर्ष भर होने वाले विभिन्न कार्यक्रम

भौगोलिक परिस्थिति

मदकू द्वीप शिवनाथ नदी की धारा के दो भागों में विभक्त होने से द्वीप के रुप में विद्यमान प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर अत्यंत प्राचीन रमणीय स्थल है ।इसे मडकू, मदकू या मनकू द्वीप के नाम से भी जाना जाता है ।
रायपुर – बिलासपुर राजमार्ग पर 76 कि.मी. या बिलासपुर–रायपुर मार्ग पर 37 कि.मी. पर बैतलपुर स्थित है । बैतलपुर से लगभग 4 कि.मी. दूर शिवनाथ नदी के तट पर स्थित द्वीप पर एनीकट से जाया जा सकता है । इसके अलावा निपानिया से 9 किलोमीटर दूर या भाटापारा से 14 किलोमीटर दूर कड़ार-परसवानी मार्ग से इस द्वीप पर सड़क से जा सकते हैं ।

पवित्र स्थान

मदकूद्वीप चारों तरफ़ शिवनाथ नदी से घिरा हुआ है और यही पर आकर शिवनाथ नदी दक्षिण से आकर उत्तर-पूर्व की ओर कोण बनाते हुए ईशान कोण में बहने लगती है।
हिन्दु धर्म में एवं हमारे प्राचीन वास्तु शास्त्र के हिसाब से जिस जगह में कोई नदी ईशान कोण में बहती है उसे पवित्र माना जाता है। हिन्दु धर्म में ऐसे ही स्थान पर मन्दिरो, बड़े नगरों एवं राजधानियों की स्थापना की जाती रही है। 21 डिग्री को सबसे ज्यादा पवित्र माना जाता है , अयोध्या में सरयू 22डिग्री पर है, प्रयाग मे 23 डिग्री है | यहा़ँ माण्डूक्य द्वीप में यह 22 डिग्री पर है | यही कारण है कि पुरातन काल से ही इस स्थल का सनातन धर्म मानने वालों के लिये सदा से विशेष आध्यात्मिक महत्व का क्षेत्र रहा है | धार्मिक स्थल होने के कारण यहा पूजा पाठ एवं विशाल यज्ञ होते थे।

शायद इसीलिये इस नदी का नामकरण शिवनाथ, जिसके स्वयँ शिव नाथ हों, किया गया |
भारत में मदकू द्वीप एकमात्र जगह है जहाँ नदी की तीन धार-द्वीप-ईशान कोण की धार एक साथ हो |

शिव की धूमेश्वर नाम से ऐतिहासिकता इस अंचल में विभिन्न अंचल के प्राचीन मंदिरों के गर्भगृह में स्थापित शिवलिंगों से होती है अर्थात पुरातात्विक दृष्टि से दसवीं शताब्दी ईंसवी सन में यह लोकमान्य शैव क्षेत्र था। दसवीं शताब्दी से स्थापित तीर्थ क्षेत्र के रुप में इसकी सत्ता यथावत बनी हुई है। पुरा- उत्खनन से प्राप्त 10-11 वीं शताब्दी के कलचुरी कालीन मंदिरों की श्रृंखला से यह मान्यता बनती है कि मण्डूक ॠषि ने यहीं पर आकर अपना आश्रम बनाया था और मंडूकोपनिषद की रचना की थी।

पुरातत्व महत्व

वर्ष 1959-60 के इंडियन एपिग्राफी प्रतिवेदन की प्रविष्टियों में मदकू घाट (द्वीप) से प्राप्त दो प्राचीन शिलालेखों का उल्लेख है । प्रथम शिलालेख लगभग तीसरी सदी ईसवी का ब्राह्मी शिलालेख है, जिसमें किसी अक्षयनिधी का उल्लेख है । यह शिलालेख घिस गया है । दूसरा शिलालेख शंखलिपि के अक्षरों से सुसज्जित है । दोनों शिलालेख तत्कालीन साऊथ ईस्टर्न आर्कियोलॉजिकल मंडल के कार्यालय विशाखापट्टनम में रखे गये हैं । इस द्वीप से प्रागैतिहासिक काल के लघु पाषाण उपकरण भी उपलब्ध हैं । इससे यह प्रमाणित होता है कि अति प्राचीनकाल से इस द्वीप खंड पर मानव का निवास एवं संचरण होता आया है ।

10-11 वीं सदी के 18 मंदिरों का समूह

सन् 2011में हुए पुरा-उत्खनन से प्राप्त 18 मंदिरों के समूह में 17 पूर्वाभिमूख एवं 1 मंदिर का द्वार पश्चिम दिशा की ओर है। एक छोटे से द्वीप में एक ही स्थान पर एक ही पंक्ति में स्थापित 13 स्मार्त लिंग का मिलना इस स्थान के पुरा-महत्व को रेखांकित करता है। यहाँ गणेश जी, लक्ष्मीनारायण, राजपुरुषों एवं एक उमामहेश्वर की मूर्ति भी मिली हैं। जिन-जिन राजाओं ने यहां मंदिर बनवाए उन्होने अपनी-अपनी मूर्ति भी यहाँ लगा दी है। ये मुर्तियाँ लाल बलुवा पत्थर की बनी हैं जो शिवनाथ नदी में ही मिलते हैं। इन पत्थरों पर सुन्दर बेल बूटे एवं मुर्तियां उत्कीर्ण की गयी है।
यह सम्पुर्ण संरचना छोटे से क्षेत्र में पहले ही प्रयास में जमीन से मात्र डेढ मीटर गहराई पर ही प्राप्त हो गयी। पुरातत्विदों का कहना है कि अगर और खुदाई की जाय तो यहाँ और भी पुराने मंदिर मिलने की प्रबल संभावना है |

स्मार्त लिंग

हिन्दुओं में मुख्यत: पाँच संप्रदाय माने जाते हैं
१. वैष्णव,
२. शैव,
३. शाक्त,
४. गाणपत्य ,
५. सौर
वैष्णव विष्णु को , शैव शिव को , शाक्त देवी को ,गाणपत्य गणेश को तथा सौर सूर्य को परमेश्वर मानते हैं

चंद्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य (३७५ ई – लगभग ४१४ ई.) की पुत्री थी प्रभावती गुप्त |इनका विवाह नागपुर की वाकाटक शाक नरेश रुद्रसेन द्वितीय के साथ संभवत: ३८० ई में सम्पन्न हुआ था| रुद्रसेन द्वितीय शैव धर्म जबकि प्रभावती वैष्णव धर्म को मानने वाली थी। ३९० ई. में रुद्रसेन द्वितीय की मृत्यु हो गई और १३ वर्ष तक प्रभावती ने अपने अल्प वयस्क पुत्रों की संरक्षिका के रूप में शासन किया। उसका ज्येष्ठ पुत्र दिवाकर सेन इस समय ५ वर्ष, तथा दामोदर सेन २ वर्ष के नाबालिग थे। प्रभावती ने अपने पितृगोत्र को ही धारण किया तथा अपने अभिलेखों में पति की वंशावली न देकर पिता की वंशावली दी।

प्रभावती ने विभिन्न संप्रदायों को एक करने का प्रयास किया था पर इन्हें पूर्ण सफलता नहीं मिली | इसके बाद आदि शंकराचार्य ( ई. सन् 788 से ई.सन् 820) ने पंचायतन मंदिर की प्रथा प्रारंभ की। उन्होने पांचो सम्प्रदायों के उपासक देवताओं को एक ही पीठ पर स्थापित कर स्मार्तलिंग की स्थापना की |
इसका उल्लेख तो मिलता था पर प्रत्यक्ष पहली और एकमात्र बार मदकू द्वीप में ही मिला है | वो भी एक दो नहीं तेरह | अगर और खुदाई की जाये तो निश्चित रुप से और भी स्मार्तलिंग मिलने की प्रबल संभावना है |
इस प्रकार हम देखते हैं कि पुराने समय से ही मदकूद्वीप सामाजिक सद्भाव के लिये जाना जाता था।
इसीलिये प्रतिवर्ष महाशिवरात्री के अवसर पर विभिन्न हिन्दु समाज के लोग एक साथ सामाजिक सद्भाव बढाने हेतु पूर्ण वैदिक विधि से यज्ञ करते हैं , यह यज्ञ सामाजिक सद्भाव महायज्ञ के रुप में पूरे देश में प्रसिद्ध हो चुका है तथा अब अन्य जगहों पर भी इस प्रकार के यज्ञ शुरु हो गये हैं |

अष्टभुजी नृत्य गणेश की कलचुरी कालीन प्रतिमा

यहाँ इस विलक्षण दक्षिणावर्त प्रतिमा का पाया जाना, इस अंचल को एक प्राचीन शैव क्षेत्र मानने की अवधारणा को पुष्ट करता है । स्थापत्य की दृष्टि से यह स्थापत्य 10 वीं 11 वीं शताब्दी की कलचुरी कालीन कला का एक सुंदर अनुपम उदाहरण है । मूर्तिकला विज्ञान की दृष्टि से इस गणेश प्रतिमा को हम छत्तीसगढ़ के इतिहास में एक मील का पत्थर मान सकते हैं । इस प्रतिमा को देख कर यह भी ज्ञात होता है कि यह स्थल पहले शक्ति साधना का केंद्र रहा होगा | यह प्रतिमा लगभग 60-70 वर्ष पूर्व स्थानीय लोगों को द्वीप क्षेत्र में प्राप्त हुई थी, जिसे बाद में एक छोटा सा चौरा बनाकर स्थापित कर दिया था | समिति के द्वारा ( विक्रम संवत 2074, सन 2017 से प्रारंभ कर) श्री अष्टभुजी गणेश जी का लाल बलुआ पत्थर से मंदिर का पुनर्निर्माण किया गया।जिसकी प्राण प्रतिष्ठा महाशिवरात्रि 2021 में किया गया।

मांडूक्य ऋषि की तपोस्थली

वर्तमान प्रचलित नाम मदकू संस्कृत के मण्डुक्य से मिश्रित अपभ्रंश नाम है। शिवनाथ की धाराओं से आवृत्त इस स्थान की सुरम्यता और रमणीयता मांडुक्य ॠषि को बांधे रखने में समर्थ सिद्ध हुई और इसी तपश्चर्या स्थली में निवास करते हुए मंडुक्योपनिषद जैसे धार्मिक ग्रंथ की रचना हुई।

भगवान राम का आगमन हुआ था

ऐसा माना जाता है कि अपने वनवास काल के समय भगवान राम माँ सीता तथा श्री लक्ष्मण के साथ रतनपुर से शिवरीनारायण मदकूद्वीप होते हुये गये थे | शिवनाथ नदी यहीं से आगे जाकर शिवरीनाराण के पास महानदी में मिलती है | हो सकता है कि वे नदी के किनारे-किनारे शिवरीनारायन गये हों उसके बाद महानदी के साथ तुरतुरिया होते हुये राजिम की गये थे | मदकूद्वीप की महत्ता को देखते हुये यह असंभव ही है कि भगवान राम इस क्षेत्र से जायें और इस पावन द्वीप में ना आयें |

युगल मंदिर

यहाँ दो युगल मंदिर भी मिले हैं। पहला मंदिर स्थानीय नागरिकों को मिला था जिसे बना दिया गया और दुसरा मंदिर अभी की खुदाई में मिला है। एक ही प्लेटफ़ार्म पर जब दो मंदिर होते हैं उन्हे युगल मंदिर कहते हैं। ये दोनो मंदिर शिव जी के हैं योनी पीठ वाले।

जैव विविधता

यह द्वीप विशिष्ट जैव विविधता समेटे हुए है।पुरे द्वीप क्षेत्र में विभिन्न प्रजाति के जैसे अकोल, सिरहुट, वरूण, केंवटी-जड़ी, ओखत, पुत्र-जीवक, कुटुज, कारी, धनबहेर, पाश, कोरिया , विष्णु-जीरा आदि औषधि एवं दुर्लभ प्रजाति के पेड़-पौधे है। उक्त पेड़ पौधे द्वीप क्षेत्र के भीतर तो पाए जाते है किन्तु द्वीप क्षेत्र के बाहर ये पेड़-पौधें नही मिलते है।द्वीप क्षेत्र में बबूल, पलाश आदि स्थानीय पेड़-पौधे नही पाए जाते। द्वीप की यह एक वानस्पतिक विशिष्टता है,जिसे संरक्षित एवं विकसित करने की आवश्यकता है।

राधा कृष्ण मंदिर

लगभग 70 वर्ष पूर्व निकटस्थ ग्राम कोटमी की बाल विधवा वृंदा बाई के द्वारा राधाकृष्ण मंदिर का निर्माण कराया गया है। मंदिर परिसर में निषाद समाज एवं अन्य समाजों के भी मंदिर स्थित है जो इस द्वीप समूह की ऐतिहासिकता एवं धार्मिक प्रासंगिकता का संकेत देते हैं। द्वीप क्षेत्र एक अत्यंत प्राचीन एवं नवीन देव संकुल क्षेत्र रहा होगा, ऐसा हमारा पूर्ण विश्वास है ।

विभिन्न आयोजन

श्री हरिहर क्षेत्र केदार मदकुद्वीप सेवा समिति के माध्यम से वर्ष भर विभिन्न कार्यक्रम किये जाते हैं , जो इस प्रकार है
१. हनुमान जयंती
२ सावन सोमवार पर रुद्र अभिषेक
३. गणेश जयंती
४. सर्वपितृ मोक्ष तर्पण अमावस्या
५. कार्तिक पूर्णिमा (दीपदान)
६. गणतंत्र दिवस
७. वसंत पंचमी
८. महाशिवरात्री पर यज्ञ
९. होली महोत्सव
१०. अन्य विशेष पर्व

जो कि इस द्वीप की प्राचीन पवित्र स्थान के वैभव को पुन:स्थापित करने के लिये प्रयास है । समिति इन कार्यक्रमों में सहभागिता देने वाले सभी आत्मजनों का धन्यवाद करती है |