(बिलासपुर वायरलेस न्यूज) हिंदी साहित्य के इतिहास में गीत विधा का उल्लेख नहीं कर आचार्य रामचंद्र शुक्ल अन्याय किया है।गीत अत्यंत प्राचीन विधा है।कविता से पहले गीत है।
उक्त विचार छंदशाला एवं हिंदी साहित्य भारती के संयुक्त तत्वावधान में साईं आनन्दम वैष्णवी विहार उस्लापुर में 29 अक्टूबर की शाम आयोजित शहर के युवा रचनाकार मयंक मणि दुबे के संग्रह ”पुष्पक’ पर “समीक्षात्मक परिचर्चा एवं सम्मान समारोह” में छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के पूर्व अध्यक्ष डॉ.विनय कुमार पाठक जी ने व्यक्त किया।
उल्लेखनीय है कि विगत दिनों मयंक मणि दुबे के सजल संग्रह ‘पुष्पक’ का विमोचन मथुरा में आयोजित “चौथे वार्षिक सजल महोत्सव-2022” में हुआ।पुष्पक’ दो खंडों में है, पहले खंड में सजल के विधान की व्याख्या है एवं दूसरे खंड में 101 सजल हैं।
डॉ. पाठक ने आगे कहा-“सजल संग्रह ‘पुष्पक’ में लय, प्रवाह और गेयता के तत्व स्वाभाविक रूप से विद्यमान हैं।उनकी सजलों में मुक्तक का विस्तार है।पहले खण्ड में सजल का विधान प्रकाशित कर सजलकार ने नए रचनाकारों के लिए मार्ग प्रशस्त किया है।”
अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार एवं पत्रकार केशव शुक्ला जी ने कहा-” रचनाकार की भाषा सरल है किंतु अर्थ बड़े गहरे हैं।सजलों में मुहावरों,लोकिक्तियों के चमत्कारिक प्रयोग हैं।पुष्पक सँग्रहणीय है।
मयंक जी के माता-पिता श्रीमती पुष्पा देवी दुबे एवं बांके बिहारी दुबे जी विशिष्ट अतिथि के रूप में मौजूद रहे।
कार्यक्रम का प्रारंभ मां वीणापाणी के प्रतिमा पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्वलित करने के उपरांत कुमारी अमिषा तिवारी ने सरस्वती वंदना की।सजलकार मयंक मणि दुबे का छंदशाला परिवार एवं
हिंदी साहित्य भारती परिवार, सद्भभावना साहित्य परिवार आदि विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं द्वारा सम्मान किया गया।
कार्यक्रम के स्वागत भाषण में वरिष्ठ साहित्यकार विजय कल्याणी तिवारी जी ने कहा-” किसी भी रचनाकार का व्यक्तित्व ही उसके कृतित्व में परिलक्षित होता है। इस कसौटी पर मयंक मणि दुबे अपने सृजन की तरह शत-प्रतिशत खरे हैं। रचनाकार ने ‘पुष्पक’ अपने माता-पिता को समर्पित किया है वह रचनाधर्मिता में उनकी निष्ठा को दर्शाती है।
सजलकार मयंक मणि दुबे ने अपने विचार प्रक्रिया एवं सृजन यात्रा पर प्रकाश डाला।उन्होंने सजल के प्रवर्तक डॉ.अनिल गहलोत का विशेष आभार व्यक्त।
कार्यक्रम का स्तरीय संचालन करते हुए डॉ.सुनीता मिश्रा ने ‘पुष्पक’ के विभिन्न सजलों को उद्घृत करते हुए अपनी दृष्टि रखी।कार्यक्रम के दूसरे सत्र का संचालन श्रीमती सुषमा पाठक ने किया तथा आभार प्रदर्शन श्रीमती उषा तिवारी ने किया।
कार्यक्रम में विनोद पांडेय, प्रज्ञा पांडेय,संध्या दुबे,राखी दुबे, मौली दुबे,पारस दुबे,शाश्वत दुबे, शुभदा दुबे एवं सनत तिवारी,बुधराम यादव,राघवेंद्र दुबे,ए.के.यदु, अमृतलाल पाठक,द्वारिकाप्रसाद अग्रवाल,संजय पांडेय,अशरफीलाल सोनी,शैलेन्द्र गुप्ता,कामना पांडेय, रश्मिलता मिश्रा,शोभा त्रिपाठी,वर्षा अवस्थी, पूर्णिमा तिवारी,विपुल तिवारी, रमेशचंद सोनी,सत्येंद्र त्रिपाठी, विजय गुप्ता,हूपसिंह क्षत्रीय, राजेश सोनार,डॉ.मंतराम यादव, अंजनी तिवारी,ओमप्रकाश भट्ट, मनीषा भट्ट,उषा तिवारी,राजेन्द्र तिवारी,राजीव साहू,सुनीता वर्मा, संतोष पांडेय,एम.डी.मानिकपुरी, रेखराम साहू,बसंत पांडेय रितुराज, पी.डी.वैष्णव,सेवकराम साहू, मुक्कु बाबा,प्रवेश भट्ट सहित अनेक साहित्यकार और साहित्यप्रेमी उपस्थित रहे।
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