छत्तीसगढ़ का एक महत्वपूर्ण फल तेंदू का वजूद खतरे में है यह फल जंगलो से गायब होने लगा है क्योकि इसके पेड़ अब कम हो रहे है अवैध कटाई और वन विभाग के लापरवाही के चलते आगामी कुछ वर्षो में यह अनूठा फल धीरे धीरे खत्म हो रहे हैं।
ज्ञात हो कि वनो में पाया जाने वाला इस स्वादिष्ट फल को काफी गुणकारी माना जाता है मध्यम ऊंचाई करीब 20 से 50 फीट तक ऊंचे एवं घना छायादार होता है भर्री, टीकरा, मेड़, खेत, बंजर पथरीली मुरमी भूमि सहित छोटी पर्वती श्रंखलाओं से मिलकर पड़े पर्वतो के अलावा घने जंगलो में यह निरंतर बढ़ता है इस पेड़ के नुकिलाकार पत्तो के बीच फल लगते है,
गर्मी के दिनो मे इस फल की बहार आ जाती है यह फल पकने के बाद सुनहरे रंग तथा चिकना एवं खुबसूरत दिखता है वहीं पके हुए तेंदूफल की मादक महक न केवल लोगो को बल्कि जंगल के जंगली जानवरो को भी बरबस अपनी ओर खींच लाती है भालू का तो यह प्रिय भोजन है तथा तेंदूफल पकने के समय इस वृक्ष के नीचे भालू डेरा जमाये रहता है जैसे ही पका हुआ फल झाड़ से टपकता है भालू झपट पड़ता है ग्रामीण ऐसा बताते है कि भालू के पाचनतंत्र से होकर गुजरने के बाद ही तेंदूफल के बीज का अंकुरण संभव होता है और तेंदूफल को लेकर कई अनुसंधान हो चुका है ,तेंदू फल का वृक्ष तेजी से घट रहा है जो चिंता का विषय है, बताया जाता है तेंदू बीजो से तेल और फलो के सत्व में औषधीय गुणो का प्रचुरता कब्ज दूर करता है इसके आलावा खून साफ करने के साथ उच्च रक्तचाप को नियंत्रण में रखता है
वात रोगो की अक्सीर दवा के अलावा भीषण गर्मी में इसके सेवन से लू से न केवल बचाता है बल्कि शरीर में प्रतिरोधक क्षमता भी विकसित करता है फिलहाल सरकार वनो में औषधीय और फलदार वन विभाग के माध्यम से पौधे उगाये जाते है और बारिश के दिनो जगह -जगह पौधा रोपण किया जाता है उसी तर्ज पर तेंदू पौधा का रोपण किया जाये तेंदू बीजो को अंकुरित योग्य बनाकर वन क्षेत्रो पहाड़ खाली जंगलो में जगह -जगह लगाया जाये जिससे वन क्षेत्रो में फलदार वृक्ष बड़ सके और वन्यप्राणी पशु पक्षी को भी आहार मिल सके लेकिन अब तक गुणो व औषधीय से भरा तेंदूफल को बचाने के लिए किसी ठोस नीति पर प्रयास करते नहीं दिख रहा है जाहिर है जंगल में बची यह प्रजाती कुदरती तौर पर किसी तरह अपना अस्तित्व बनाये हुए है चुकि अब छत्तीसगढ़ का अपना वन अनुसंधान केन्द्र है इसलिए तेंदू पौधा रोपण के लिए अनुसंधान एवं कारगार उपाय किया जाना चाहिए।
पर्यावरण के लिए तेन्दु पेड काफी उपयोगी
तेंदू का एक और बहुमूल्य पक्ष है तेंदूपत्ता को हरा सोना के नाम से जाना जाता है शासन के माध्यम से तेंदूपत्ता की खरीदी की जाती है और इस पत्ते से बीड़ी बनाई जाती है इससे लगभग करोड़ो रूपये के व्यापार होता है साथ ही लाभांश की 80प्रतिशत राशि सीधे संग्रहक मजदूरो को दी जाती है, पाली के पोड़ी और रानीबछाली क्षेत्र के वरिष्ठ ग्रामीण जागेश्वर नेताम, बनसिंह सोरी, पिलेश्वर सोरी, छबीलाल दिवान, पे्रमसाय जगत, रायसिंह ध्रुव, खेलन नेताम, चमरू राम, नकछेडा धु्रवा, नाथूराम धु्रवा बताते है पर्यावरण के लीहाज से तेंदू पेड़ काफी उपयोगी है इसके नीचे खूब उगने वाली घास चारा देने के अलावा भू संरक्षण का काम भी करती है गर्मी के मौसम में जब अन्य फलो की कमी होती है तो रेसेदार मिठास से भरा तेंदू का फल राहत पहुंुचाता है लेकिन तेंदूपत्ता का दुखद पहलु यह है कि भर्री, टीकरा, आबादी एवं कृषि क्षेत्र में बहुत अधिक संख्या में पाये जाने वाला बड़े -बड़े वृक्ष कम होते जा रहे है, ग्रामीण बताते तेंदू का फल भालू, बंदर, लोमड़ी व अन्य वन्यप्राणियो को काफी पसंद है लेकिन तेंदू की घटती जंगल से अब बंदर भी वनो से निकलकर गांवो की तरफ रूख कर रहे है खेतो के फसल को नष्ट कर रहे है, ग्रामीणो ने शासन प्रशासन से मांग किया है कि घटती तेंदू की जंगल का विकास किया जाये।
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