बिलासपुर (अमित मिश्रा वायरलेस न्यूज) छत्तीसगढ़ सरकार बाघ रिकवरी प्लान पर 183.77 करोड़ रु. फूंक दिया मगर बाघ की जनसंख्या में वृद्धि नही दिखाई दे रहा है वन अफसर बिना कोई ठोस कदम उठाए बिना केवल मात्र कागजों में रूपरेखा तैयार कर करोड़ रू.फूंक दिए !
क्या है पूरा मामला?

सदन में विधायक अरुण वोरा ने पूछा कि प्रदेश में कुल कितने टाइगर रिजर्व हैं ? इन टाइगर रिजर्व का क्षेत्रफल कितने वर्ग किलोमीटर में है ? पिछले 3 सालों में प्रदेश में बाघों के संरक्षण के लिए कुल कितनी राशि खर्च की गई ? प्रदेश में अखिल भारतीय बाघ गणना 2018 में कुल कितने बाघों की संख्या थी। साल 2020 से दिसंबर 2022 तक कुल कितने बाघों की मौत हुई है ?
सरकार का जवाब

छत्तीसगढ़ में वन्य जीव बाघ के सरंक्षण में हुए खर्च को लेकर अब राजनीति तेज होते जा रही है । इस मामले पर भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व वन मंत्री महेश गागड़ा ने इस बात पर आश्चर्य व्यक्त किया है कि प्रदेश सरकार ने पिछले 2019 से 2022 (तीन वर्षों) में राज्य भर के कुल 19 बाघों पर 183.77 करोड़ खर्च कर दिए जबकि विशेषज्ञों व वन्यजीव संरक्षण के अभियान के लिए काम करने वालों का मानना है कि रिजर्व फॉरेस्ट के बाघों के खान-पान पर कोई खर्च ही नहीं किया जाता।

पूर्व वन मंत्री एवं भाजपा नेता महेश गागड़ा ने कहा कि प्रदेश सरकार क्या अब वन्य प्राणियों के लिए तयशुदा बजट राशि में भी भ्रष्टाचार का कोई नया अध्याय लिख रही है? महेश गागड़ा ने कहा कि 2019 से 2022 के वर्षों में खर्च की गई इतनी बड़ी रकम के बारे में प्रदेश सरकार स्थिति स्पष्ट करे। हर क्षेत्र में कमीशनखोरी, भ्रष्टाचार और घोटाले करके छत्तीसगढ़ को कांग्रेस पार्टी का एटीएम बनाने वाली मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के नेतृत्व वाली प्रदेश सरकार नित नए घोटालों की इबारत लिख रही है और अब तो वन्य प्राणियों की बजट की राशि को लेकर सामने आए तथ्य इस सरकार के भ्रष्टत्तम राजनीतिक चरित्र की गवाही दे रहे है। श्री गागड़ा ने कहा कि रिजर्व फॉरेस्ट में पेट्रोलिंग को छोड़कर बाघों पर कोई खर्च नहीं होता और न ही वहां कोई बड़ा निर्माण कार्य हो सकता है। यह जंगल है और बाघों को वहां नितांत प्राकृतिक वातावरण में रखना होता है, तब यह रकम कहां खर्च की गई?
भाजपा नेता व पूर्व मंत्री महेश गागड़ा ने कहा कि प्रदेश सरकार वन्य जीव संरक्षण और संवर्धन के नाम पर भी कोरी लफ्फाजी कर रही है। इस सरकार में न केवल वन्य प्राणियों की मौत, शिकार और तस्करी के मामले बढ़े हैं, अपितु जंगली इलाकों में बसे गांव में वन्य प्राणियों के मामलों में ग्रामीणों को अपनी जान गंवानी पड़ रही है। अब बाघों पर 183.77 करोड़ रुपए के खर्च का यह सच इस सरकार को कठघरे में लाने के लिए पर्याप्त है।
म. प्र. से सिखाना चाहिए की की वहां क्यों लगातार बाघों की संख्या बढ़ रही है ,सरकार उन्हें भेजती है मगर केवल घूमकर चले आते है। उदंती सीतानदी टाईगर रिजर्व और एटीआर टाईगर रिजर्व में पर्यटकों को बाघ दिखाई ही नहीं देता फिर भी इस पर 183.77 करोड़ खर्च हो गए ? सरकार को चाहिए कि पूर्व प्लान करने वाले रिटायर्ड वन अधिकारियों पर जांच हो टाईगर तो नही बढ़ा सके लेकिन वे लोग अपनी संपत्ति को जरूर बढ़ा लिए।
वैसे सरकार के पास कुछ गंभीर युवा अधिकारी है जो इस पर कार्य करना चाहते हैं, और वे परिणाम देने में सक्षम भी है।
पूर्व रिटा .तथाकथित वन अधिकारी जो बारनवापारा में एनटीसीए से बाघ मांग कर बसाए जाने की प्रोजेक्ट तैयार किया था जिसे इस आधार पर एनटीसीए ने ठुकरा दिया था की यह गलत प्रोजेक्ट तैयार किया गया है क्योंकि यह कम क्षेत्र है, चारों ओर से घनी आबादी वाला क्षेत्र है अतः बाघ की वापसी उचित नहीं ?

Author Profile

Amit Mishra - Editor in Chief
Amit Mishra - Editor in Chief
Latest entries