आषाढ़ मासे प्रथम दिवसे….दो दिवसीय रामगढ़ महोत्सव प्रारम्भ
देश की प्राचीनतम नाट्यशाला इसी छत्तीसगढ़ में

बिलासपुर (अमित मिश्रा संपादक वायरलेस न्यूज़ रामगढ़ से) छत्तीसगढ़ रामगढ़ के सीताबेंगरा की प्राचीन रंग शाला है जो गवाह है कालिदास और रंगमंच के आदि इतिहास की, सीताबेंगरा गुफा रायपुर से 280 क़ि. मी. और बिलासपुर से 170 क़ि. मी. दूर अम्बिकापुर से 35 क़ि. मी. पहले तुर्रापानी बस स्टॉप से 3 क़ि. मी. पैदल रामगढ़ की पहाड़ी है, जिसका आकर दूर से ही सूंड उठाए हुए हाथी की शक्ल का दिखाई पड़ता हैं।इसी पहाड़ी को रामगढ़ कहते है। यह सरगुजा जिले के उदयपुर ब्लाक में है।
प्रत्येक वर्ष छत्तीसगढ़ शासन आषाढ़ मास के पहले दिन ही जहाँ राष्ट्रीय स्तर के नृत्यांगनाओं गायन, और विचार गोष्ठि का आयोजन करती है । जबकि देशभर के प्रमुख हस्तियों का जमावड़ों के साथ ग्रामीण मेलों हाट बाजार की झांकी देखने को मिल जाती है।
: रामगढ़ शैलाश्रय के अंतर्गत सीताबेंगरा गुफा के अंदर लिपिबद्ध अभिलेख साक्ष्य के आधार पर इस प्राचीनतम नाट्यशाला का निर्माण लगभग दूसरी तीसरी सदी की होने की बात इतिहासकारों एवं पुरात्वविदों ने समवेत स्वर स्वीकार की है।
इस गुफा के महत्व इसलिए भी है क्योंकि महान कवि कालिदास की विख्यात रचना ‘मेघदूत’ की रचना भी इसी जगह पर की गई थी ।
मान्यताओं के अनुसार महाकवि कालिदास ने जब राजाभोज से नाराज होकर उज्जयिनी का परित्याग किया तब इसी रामगढ़ की पहाड़ी में उन्होनें शरण लिया था ,तभी उन्होंने ‘मेघदूतम’की रचना की थी।इसलिए ही इस जगह पर आज भी हर साल आज के ही दिन आषाढ़ के महीने की शुरूआत में बादलों की पूजा की जाती है । भारत में सम्भवतः यह अकेला स्थान है जहां की बादलों की पूजा करने की परम्परा है। यहीं पर एक नाट्यशाला जैसा आकर लिए हुए रंगमंच बना हुआ है ,जिसे देखकर आपको यह आभाष होगा कि वाकई में यह प्राचीन नाट्यशाला के तौर पर उपयोग किया जाता होगा।गुफा के प्रवेश स्थल की फर्श पर 2 छेद भी है जोंक उपयोग सम्भवतः पर्दे में लगाइ जाने वाली लकड़ी के डंडों को फंसाने के लिए किया जाता रहा होगा। यहाँ की पृरी ब्यवस्था ही कलात्मक है। रंगमंच के सामने 50-60 दर्शकों के बैठने की अर्धचन्द्राकार में आसन बने हुए है। जहां बैठकर आराम से नाट्य मंचन को देखा जा सकता है।
आप परिकल्पना कर सकते है कि मनुष्य कोलाहल से दूर एकांत रात्रि में नृत्य संगीत की दुनिया में स्वीकार स्वर्गिक आनन्द उठा सकता है। पूरा परिदृश्य रोमन रंगभूमि की याद दिलाता है।
गुफा के बाहर दो फिट चौड़ा गढ्डा भी है , जो सामने से पृरी गुफा को घेरता है, यह भी मान्यता है कि की यह पर एक रेखा है जो कहा जाता है कि यही वो लक्ष्मण रेखा है। इसके बाहर एक पांव का निशान भी है।
इस गुफा के बाहर एक लम्बी सुरंग भी है जिसे हथ फोड़ सुरंग के नाम से लोग पुकारते है। इसी पहाड़ के ऊपर में एक मंदिर भी है जहां राम लक्ष्मण माता सीता और हनुमान जी की 12 वी सदी की प्रतिमा भी है। नवरात्र में यहाँ मेला भी लगता है। यह स्थान भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित किया गया है।
Author Profile

Latest entries
Uncategorized2025.10.15रोड मोबाइल मेडिकल वैन (RMMV) के माध्यम से शहडोल उपमंडलीय चिकित्सालय क्षेत्र में चिकित्सा सेवाओं की शुरुआत*
बिलासपुर2025.10.15रीजन के 5969 उपभोक्ताओं ने पीएम सूर्यघर योजना में अपना रजिस्ट्रेशन कराया 628 उपभोक्ताओं को मिला सब्सिडी का लाभ बिजली के बिल से जीरो बिजली बिल की ओर अग्रसर
छत्तीसगढ़2025.10.14क्वालिटी कॉन्सेप्ट्स के चैप्टर कन्वेंशन में जिंदल स्टील की टीम ने जीता गोल्ड अवार्ड
Uncategorized2025.10.14स्पर्श खंडेलवाल बने स्टेट लेवल ओपन चेस टूर्नामेंट के चैंपियन- जीती ट्रॉफी और 31 हजार रु.,दुर्ग के वी विराट अय्यर बने उपविजेता, तीसरे स्थान पर रहे बिलासपुर के संकल्प कश्यप