मनोकामना पूरी होनें पर करमागढ़ में दी जाती है बकरों की बलि
शरद पूर्णिमा में होता है मेले का आयोजन, उमड़ती है भक्तों की भीड़
रायगढ़। (वायरलेस न्यूज) रायगढ़ जिला मुख्यालय से महज 27 किलोमीटर की दूरी पर पहाड़ो और जंगलों से घिरे करमागढ़ गांव में बीते कई सालों से शरद पूर्णिमा के अवसर पर बलि पूजा की परंपरा चली आ रही है। मनोकामना पूर्ण होनें के पश्चात यहां बकरे की बली दी जाती है। इस अवसर पर यहां कई गांव के हजारों की संख्या में लोगों की भीड़ जुटी। इसी क्रम में गुरुवार को भी करमागढ़ में देवी मां को प्रसन्न करने बकरों की बलि चढ़ाई गई।
मिली जानकारी के मुताबिक आदिवासी बाहुल्य तहसील तमनार के पहाड़ो से घिरे करमागढ़ गांव में बीते कई सालों से शरद पूर्णिमा पर माँ मानकेश्वरी देवी मंदिर में बलि पूजा की परंपरा है। लोगों की मनोकामना पूर्ण होने पर यहां दर्जनों बकरे की बलि दी जाती है। वहीं हजारो की संख्या में महिला, पुरूष नारियल पुष्प माँ व बैगा के चरणों मे अर्पित कर मनोकामना मांगी जाती है।
कोरोना के बाद बलि प्रथा मे आई कमी
बताया जाता है कि शरद पूर्णिमा के अवसर पर मां मानकेश्वरी देवी मंदिर में पहले सौ से अधिक बकरों की बलि दी जाती थी परंतु कोरोनाकाल के बाद से बकरो की बलि में यहां कुछ कमी आई है। बुधवार की सुबह से ही यहां मेले का माहौल निर्मित हो गया था और रायगढ़ जिले के कई गांव के अलावा पड़ोसी राज्य ओडिसा से भी हजारों की संख्या में लोग यहां पहुंचे थे।
बैगा को छू लेने से ही मनोकामना होती है पूरी
मान्यता है कि शरद पूर्णिमा के दिन मंदिर के बैगा के शरीर में देवी का आगमन होता है यहां आने वाले श्रद्धालु उनकी आशीर्वाद के लिए आष्टांग प्रणाम करते है। कई लोग उनको छूने के लिए उनके पीछे भागते है जो उसे छू लेता है वह अपने आपको धन्य मानता है। कहा जाता है कि जो बैगा को इस दौरान छू लेगा उसकी मनोकामना पूर्ण होती है। बुधवार को भी हजारों की संख्या में श्रद्धालु यहां पहुंच कर माता व बैगा के चरणो में मत्था टेका और आर्शीवाद लिया।
नजारा देख कर चकित हो गए श्रद्धालु
बुधवार की शाम पूजा अर्चना पश्चात बाद बैगा के शरीर के भीतर जब माता का प्रभाव हुआ, तब भक्तों ने बकरों की बली देना शुरू कर दिया जिसके बाद बैगा बकरों का रक्तपान करने लगे। इस दौरान मौके पर उपस्थित हजारों श्रद्धालु इस नजारे को देख चकित रह गए। ऐसी मान्यता है कि मंदिर में रायगढ़ राजपरिवार की कुलदेवी मां मानकेश्वरी देवी आज भी अपने चैतन्य रूप में विराजित हैं और माता समय-समय पर अपने भक्तों को अपनी शक्ति से अवगत कराती है। शरद पूर्णिमा के अवसर पर हर साल रायगढ़ परिवार के सदस्य यहां पहुंचकर परंपरा अनुसार पूजा अर्चना करते हैं।
क्या है यहां की कहानी
बताया जाता है कि लगभग 600 वर्ष पूर्व जब एक पराजित राजा जो हिमगीर ओडिशा रियासत का था उसे देश निकाला देकर बेडियो से बांधकर जंगल में छोड़ दिया गया। राजा जंगल जंगल भटकता और वह कर्मागढ़ में पहुंच गया तब उन्हें देवी ने दर्शन देकर बंधन मुक्त किया इस तरह एक घटना सन 1780 में तब हुई थी जब ईस्ट इंडिया कंपनी अंग्रेज ने एक तरह से कठोर (लगान) कर के लिए रायगढ़ और हिमगिर पर वसूली के लिए आक्रमण कर दिया। तब यह युद्ध कर्मागढ के जंगली मैदान पर हुआ था इसी दौरान जंगल से मधुमक्खियों जंगली कीटों का मंदिर की ओर से अंग्रेज पर हुआ। इस दौरान अंग्रेज पराजित होकर उन्होंने भविष्य में रायगढ़ स्टेट को स्वतंत्र घोषित कर दिया इस कारण श्रद्धालु यहां दुर दुर से अपनी इच्छा पूर्ति के लिए आते हैं और माता से मनचाहा वरदान अपनी झोली मे आशीर्वाद के रुप में पाकर खुशी खुशी लौट जाते हैं।
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