वन्य जीवों के संरक्षण के लिये भारतीय रेलवे के सराहनीय प्रयास

लेखक तारिक अहमद महानिरीक्षक , सह प्रधान मुख्य सुरक्षा आयुक्त, रेलवे सुरक्षा बल, (पूर्वोत्तर रेलवे)

(वायरलेस न्यूज़ नेटवर्क) वन्यजीव हमारे ग्रह की धड़कन हैं, जो पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखते हैं और अनगिनत तरीकों से हमारे जीवन को समृद्ध करते हैं। इसके महत्व को सम्मान देने के लिए संयुक्त राष्ट्र ने 2013 में 3 मार्च को विश्व वन्यजीव दिवस के रूप में नामित किया, जो 1973 में हस्ताक्षरित CITES (वन्य जीवों और वनस्पतियों की विलुप्तप्राय प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर सम्मेलन) की वर्षगांठ का प्रतीक है। यह वार्षिक आयोजन संकटग्रस्त प्रजातियों की रक्षा करने और प्रकृति व मानवता पर वन्यजीवों के गहरे प्रभाव को पहचानने का एक वैश्विक आह्वान है।
हालांकि वन्यजीव संरक्षण और सुरक्षा के लिए कई प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन इसके प्रति खतरे लगातार बढ़ रहे हैं। 67,000 किलोमीटर से अधिक लंबे रेल नेटवर्क के साथ भारतीय रेलवे, जो राष्ट्रीय कनेक्टिविटी की रीढ़ है, वन्यजीवों के लिए कई अनपेक्षित परिणाम भी लेकर आया है, जैसे कि आवास विखंडन, तस्करी और अवैध व्यापार। यह लेख भारतीय रेलवे और वन्यजीवों के जटिल संबंधों की पड़ताल करता है, जिसमें वन्यजीव तस्करी और अवैध व्यापार पर विशेष ध्यान दिया गया है, साथ ही रेलवे सुरक्षा बल (RPF) द्वारा इस बढ़ते खतरे को रोकने के लिए उठाए जा रहे प्रयासों को भी रेखांकित किया गया है।

भारतीय रेलवे का वन्यजीवों पर प्रभाव —
1. ट्रेन टक्कर का प्रभाव —
रेलवे पटरियों के प्रवासी मार्गों या पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों से गुजरने के कारण वन्यजीवों के लिए ट्रेन टक्कर एक गंभीर खतरा है। विशेष रूप से हाथी और बाघ जैसे बड़े जानवर घने जंगल, घुमावदार ट्रैक और रात्रि यात्रा के कारण आने वाली ट्रेनों से बच नहीं पाते, जिससे उनकी दुखद और रोकी जा सकने वाली मौतें होती हैं। भारत में कई रिपोर्ट वन्यजीव प्रवासी मार्गों और रेलवे गलियारों के टकराव से उत्पन्न खतरों को उजागर करती हैं।
2. आवास विखंडन और विस्थापन —
रेलवे लाइनों के जंगलों, आर्द्रभूमियों और घास के मैदानों से गुजरने के कारण।
रेल के माध्यम से विभिन्न प्रकार की वन्यजीव प्रजातियों की तस्करी की जाती है, जिनमें शामिल हैं —
विदेशी पक्षी — तोते, मैना और अन्य विदेशी पक्षी पालतू व्यापार के लिए तस्करी किए जाते हैं।
सरीसृप — सांप, गिरगिट और कछुए उनके चमड़े, पालतू जानवरों के रूप में या पारंपरिक दवाओं में उपयोग के लिए तस्करी किए जाते हैं।
स्तनधारी –बाघ, तेंदुए और अन्य बड़े बिल्लियों को उनकी खाल और हड्डियों के लिए तस्करी किया जाता है, जबकि पैंगोलिन जैसे छोटे स्तनधारी उनके शल्क और मांस के लिए तस्करी किए जाते हैं।
समुद्री जीव – समुद्री घोड़े, स्टारफिश और अन्य समुद्री प्रजातियां पारंपरिक औषधियों और सजावटी वस्तुओं के लिए तस्करी की जाती हैं।
वन्यजीव तस्करी के खतरे को कम करने और भारतीय रेलवे को पर्यावरण-अनुकूल बनाने के लिए निगरानी और कानून प्रवर्तन को मजबूत करना आवश्यक है।

वन्यजीव संरक्षण के लिए भारतीय रेलवे के प्रयास –भारतीय रेलवे ने वन्यजीवों की सुरक्षा और तस्करी रोकने के लिए कई उपाय लागू किए हैं। राजाजी राष्ट्रीय उद्यानऔरअसम के हाथी गलियारोंजैसे क्षेत्रों में वन्यजीव गलियारे, ओवरपास और अंडरपास बनाए गए हैं, जिससे ट्रेन-जानवर टकराव की घटनाएं कम हुई हैं। उत्तर बंगाल और ओडिशा में गति प्रतिबंध लागू कर दुर्घटनाओं को कम करने का प्रयास किया जा रहा है। बांदीपुर राष्ट्रीय उद्यान में थर्मल कैमरों जैसी प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियां लोको पायलट और स्टेशन मास्टर को पशु गतिविधि की जानकारी देती हैं। इसके अलावा, रेलवे पटरियों के पासवनीकरण एवं आर्द्रभूमि संरक्षणजैसी पर्यावरण बहाली परियोजनाएं भी लागू की जा रही हैं ताकि पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखा जा सके।

रेलवे सुरक्षा बल द्वारा वन्यजीव संरक्षण हेतु उठाए गए कदम —रेलवे सुरक्षा बल (RPF) भारत के विशाल रेलवे नेटवर्क में वन्यजीव तस्करी को रोकने में अहम भूमिका निभाता है।
ऑपरेशन WILEP (Wildlife Protection Initiative) – रेलवे सुरक्षा बल द्वारा वन्यजीव तस्करी रोकने के लिए यह राष्ट्रव्यापी अभियान शुरू किया गया है। इसके तहत रेलवे स्टेशनों, पार्सल कार्यालयों और ट्रेन मार्गों पर343832 जी का प्रकृतिक आवास खंडित हो जाता है, जिससे उनकी आवाजाही बाधित होती है। इससे भूख, शिकार और मानव-वन्यजीव संघर्ष का खतरा बढ़ जाता है। विशेष रूप से बाघ, हाथी और तेंदुए जैसी प्रजातियां प्रभावित होती हैं क्योंकि उनके बड़े निवास क्षेत्र छोटे और पृथक हो जाते हैं, जिससे उनकी आबादी अलग-थलग पड़ जाती है और आनुवंशिक विविधता घटती है।

ध्वनि और प्रकाश प्रदूषण —
रेलवे परिचालन के दौरान उत्पन्न शोर और कृत्रिम रोशनी वन्यजीवों के व्यवहार को प्रभावित करती हैं। तेज ट्रेन आवाज़ और कंपन प्राकृतिक संचार, भोजन की खोज और प्रजनन को बाधित कर तनाव और विस्थापन का कारण बनते हैं। निशाचर जानवर जैसे उल्लू और चमगादड़ विशेष रूप से प्रभावित होते हैं क्योंकि गुजरती ट्रेनों की तेज रोशनी उनके शिकार और नेविगेशन क्षमताओं में हस्तक्षेप करती है

भारतीय रेलवे के माध्यम से वन्यजीवों की तस्करी –भारतीय रेलवे का व्यापक नेटवर्क अनजाने में अवैध वन्यजीव व्यापार का एक प्रमुख माध्यम बन गया है। तस्कर इस नेटवर्क का उपयोग लुप्तप्राय जानवरों, पशु खाल, हाथी दांत, दुर्लभ पक्षियों और अन्य प्रतिबंधित वन्यजीव उत्पादों को परिवहन के लिए करते हैं। बिना जांचे बुक किए गए माल, विशाल खुले नेटवर्क और अपर्याप्त निगरानी जैसी चुनौतियां इसे वन्यजीव तस्करी के लिए संवेदनशील बनाती हैं। वन्यजीव तस्करी न केवल जैव विविधता को खतरे में डालती है, बल्कि संगठित अपराध को भी बढ़ावा देती है और पारिस्थितिक संतुलन को बाधित करती है।तस्करी के तरीके —
तस्कर विभिन्न तरीकों से भारतीय रेलवे के माध्यम से वन्यजीवों और उनके उत्पादों की तस्करी करते हैं:सामान में छुपाकर -तस्कर अक्सर जानवरों या उनके अंगों को विशेष रूप से तैयार किए गए कंटेनरों या छिपे हुए कम्पार्टमेंट में रखकर ले जाते हैं।

पार्सल और कार्गो के रूप में — वन्यजीव उत्पादों को अक्सर पार्सल या माल के रूप में भेजा जाता है, और गलत लेबलिंग द्वारा संदेह से बचा जाता है।

रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार — कुछ मामलों में, तस्कर अवैध तरीकों का उपयोग करके संबंधित व्यक्तियों को प्रभावित करते हैं ताकि ऐसी अवैध वस्तुओं का निर्बाध परिवहन सुनिश्चित किया जा सके।