रायपुर ( वायरलेस न्यूज़) नंदनवन रायपुर: आठ साल से चार तेंदुए और एक लकड़बग्घा कालापानी में — न तो धूप देखी, न मिट्टी सूंघी

कल्पना कीजिए — आठ साल तक सूरज की रौशनी न देखना, मिट्टी की खुशबू न सूंघ पाना, घास पर कभी न चलना, और हर सांस के साथ सीमेंट की नीरस दीवारों में दम घुटना। यह कोई जेल में बंद खूंखार अपराधियों की कहानी नहीं है, बल्कि हमारे देश के उन्हीं वन्य जीवों की कहानी है जिन्हें बचाने की कसमें हम अक्सर दोहराते हैं जिसकी जवाबदारी वन विभाग ने ली है।
देश में वन्य जीवों पर अत्याचार का अपने किस्म का यह पहला मामला उजागर हुआ है, जिसमे अत्याचार के लिए पहले से ही देश में कुख्यात छत्तीसगढ़ वन विभाग की नई कारगुजारी उजागर हुई है। जिसने चार तेंदुए और एक लकड़बग्घा को पुराने नंदन वन, अटारी रायपुर में दस नंबर नाम की ऐसी जगह पर कैद कर रखा है जहा परिंदा भी पर नहीं मार सके। आठ साल से इन्हें 10×10 के छोटे-छोटे सेल में रखा गया है जहां सूरज की किरण भी नहीं आती ।इतने सालों में इन वन्य जीवों ने मिट्टी की सुगंध भी नहीं सूंघी, पीठ पर धूप की किरण भी नहीं पड़ी, शायद आसमान का रंग भी भूल गए हों। आठ साल से ये सीमेंट फ्लोर में रह रहे हैं। जानवरों के पास न चलने की जगह है, न उछलने की आज़ादी। दस नंबर का यह इलाका प्रतिबन्धि है सिर्फ अधिकारी, कभी कभार डॉक्टर और खाना पहुचाने वाले दो लोगों को ही जाने की अनुमति है। यहाँ तक की नंदनवन के कर्मचारियों को भी नहीं मालूम कि यहाँ तेंदुए हैं। इन तेन्दुओं और लकड़ग्घे की हालत बहुत दयनीय है। मामला उजागर होने के बाद अब अधिकारी कह रहे है कि जंगल सफारी में बाड़ा नहीं था इसलिए इन्हें शिफ्ट नहीं किया गया, इन्हें जल्द ही जंगल सफारी नया रायपुर के रेस्क्यू सेंटर में ले जायेंगे वहां इनके लिए बाड़ा बनवाना चालू कर दिया है।
शर्मिंदगी से बचने” के लिए उन्हें छुपा दिया गया
2016 में अटारी स्थित नंदन वन से सभी मांसाहारी जानवरों को नया रायपुर के जंगल सफारी में शिफ्ट किया गया परन्तु इन पाचों को यही छोड़ दिया गया। जानकारों के अनुसार कारण यह बताया जा रहा है कि पाचों बीमार और अपंग थे। चिड़ियाघर प्रबंधन उन्हें नए चिड़ियाघर के बचाव केंद्र में या प्रदर्शित नहीं चाहता था, क्योंकि एक तेंदुआ ग्लूकोमा से पीड़ित है, दो अन्य को पैर की बड़ी समस्या है, और एक अंधा है। लकड़बग्घा भी शारीरिक रूप से विकलांग है, जिसके केवल तीन पैर हैं। एक तेंदुए के नाखून अनियंत्रित रूप से बढ़ते रहते हैं, जिसके लिए पशु चिकित्सक को कभी-कभी उन्हें काटने की आवश्यकता होती है, फिर भी कोई नियमित स्वास्थ्य जांच नहीं की जाती है, इन जानवरों का कोई दैनिक रिकॉर्ड (या डायरी) नहीं रखा जाता है। जंगल सफारी मैनेजमेंट इन्हें जंगल सफारी में स्तान्तरित करके शर्मिंदगी नहीं महसूस करना चाहता था इसलिए नया रायपुर में विश्व स्तरीय, एशिया के सबसे बड़े सफारी-कम-चिड़ियाघर के लिए अयोग्य माना। तब ही निर्णय ले किया गया था कि इन्हें मरने के लिए पुराने नंदन वन में छोड दिया जाए।

दया मृत्यु इससे बेहतर होती” — नितिन सिंघवी

रायपुर के वन्य जीव प्रेमी नितिन सिंघवी ने कहा कि यह निंदनीय बयान है कि इन दुर्भाग्यपूर्ण वन्य प्राणियों के लिए बाड़ा नहीं बन पाया था। जंगल सफारी प्रबंधन ने हाल ही में करोडों का प्रशासनिक भवन जंगल सफारी में बनवाया है। भवन बनवाना तो याद रहा परन्तु ये जानवर याद नहीं आये, इससे बड़ी शर्म और अत्याचार की और क्या बात हो सकती है? उन्होंने जब पत्र लिखा तो बाड़ा निर्माण चालू किया गया। उन्होंने कहा कि आठ सालों से इतने बड़े अत्याचार करने से तो बहुत अच्छा होता कि इन्हें 2016 में वन विभाग इन मूक प्राणियों को दया मृत्यु दे देता। उच्च स्तारिय मेडिकल जांच में इस वन्यप्राणियों की ऐसी ऐसी गंभीर बीमारियां उजागर होंगी जिसे सुन आप दंग रह जायेंगे।

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Amit Mishra - Editor in Chief
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