*न्यायपालिका में भी ‘पॉवर पॉलिटिक्स’ की दस्तक!*
*भाजपा जिलाध्यक्ष के करीबी की पत्नी को मिली नियुक्ति*
*वित्त मंत्री ओपी चौधरी के नाम का असर, अधिवक्ताओं में रोष*
📌 *बाईपास कर दी गई प्रक्रिया, संघ के पैनल को नजरअंदाज कर दी गई नियुक्ति*

घरघोड़ा न्यायालय में विशेष लोक अभियोजक (POCSO) के पद पर की गई अधिवक्ता अर्चना मिश्रा की नियुक्ति ने जिले में न्यायिक स्वतंत्रता और चयन प्रक्रिया की पारदर्शिता को लेकर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। तहसील अधिवक्ता संघ, घरघोड़ा के अनुसार, इस पद के लिए विधिवत रूप से 5 योग्य अधिवक्ताओं का पैनल प्रशासन को भेजा गया था, जिसमें अर्चना मिश्रा का नाम कहीं नहीं था। सबसे हैरान करने वाली बात यह रही कि उन्होंने पद के लिए आवेदन भी नहीं किया, न ही उन्हें संघ की ओर से कोई अनुशंसा प्राप्त थी। बावजूद इसके, नियमों और स्थापित प्रक्रिया को पूरी तरह दरकिनार करते हुए उनकी सीधी नियुक्ति की गई। अधिवक्ता संघ ने इसे स्थानीय न्यायिक प्रणाली में सत्ता पक्ष के दबाव से की गई सीधी दखल करार दिया है और इसे लोकतांत्रिक चयन प्रक्रिया की खुली अवहेलना बताया है।

*जिलाध्यक्ष के कारोबारी सहयोगी की पत्नी और सत्ता की सीधी घुसपैठ*

यह नियुक्ति कोई साधारण प्रशासनिक गलती नहीं, बल्कि सत्ता से जुड़े गहरे रिश्तों और प्रभाव की एक मिसाल बनकर सामने आई है। अर्चना मिश्रा, प्रेम मिश्रा की पत्नी हैं — जो भाजपा जिलाध्यक्ष अरुण धर दीवान के न केवल करीबी राजनीतिक सहयोगी हैं, बल्कि व्यावसायिक साझेदार भी माने जाते हैं। वहीं अधिवक्ता संघ के अनुसार, इस नियुक्ति में प्रदेश के वित्त मंत्री और रायगढ़ विधायक ओपी चौधरी के नाम और राजनीतिक रसूख का भी प्रयोग किया गया, ताकि इस नियुक्ति को अमल में लाया जा सके। जिले में पहले से ही कार्यपालिका में सत्ता पक्ष के हस्तक्षेप की चर्चाएं आम रही हैं, और अब न्यायपालिका जैसे संवेदनशील संस्थान में भी ‘पावर प्रोजेक्शन’ की यह शैली सामने आने लगी है। यह स्थिति शासन की साख को कमज़ोर करने के साथ-साथ जनविश्वास को भी गहरा आघात पहुँचा रही है।

*भाजपा की साख पर चोट, न्यायिक अर्हता भी सवालों में*

इस पूरे घटनाक्रम ने भाजपा शासन की सुशासन वाली छवि को झकझोर कर रख दिया है। एक ओर पार्टी पारदर्शिता और कानून की समानता की बात करती है, वहीं दूसरी ओर न्यायिक नियुक्तियाँ भी अब नेटवर्क और प्रभाव के आधार पर तय होती दिख रही हैं। सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि अधिवक्ता संघ द्वारा जारी आपत्ति पत्र के अनुसार, अर्चना मिश्रा के विरुद्ध स्वयं न्यायालय में मामला लंबित है, जबकि विशेष लोक अभियोजक बनाए जाने के लिए यह अनिवार्य शर्त होती है कि व्यक्ति के विरुद्ध कोई लंबित आपराधिक/गैर आपराधिक मामला लंबित न हो। ऐसे में नियुक्ति न केवल नैतिक बल्कि कानूनी रूप से भी गंभीर सवालों में फंसती नजर आ रही है। अधिवक्ता संघ ने तत्काल नियुक्ति निरस्त कर, प्रक्रिया के अनुरूप नामित अधिवक्ताओं में से चयन करने की मांग की है। रायगढ़ जैसे राजनीतिक रूप से संवेदनशील ज़िले में इस तरह की नियुक्तियाँ न केवल न्याय व्यवस्था को प्रभावित कर रही हैं, बल्कि वित्त मंत्री ओपी चौधरी और समूचे भाजपा शासन की छवि पर एक स्थायी धब्बा छोड़ती जा रही हैं।