*सामाजिक समानता के अमर अग्रदूत थे बाबा साहेब*

*सामाजिक और आर्थिक ग़ुलामी से मुक्ति का एक मात्र रास्ता है शिक्षा*

*करोड़ों दबे कुचले वंचित लोगों के मन में शिक्षा की ज्योत बाबा साहेब ने जलाई*

*बाबा साहब के मूल मंत्र “शिक्षित बनो, संगठित रहो, संघर्ष करो” के नारा से आगे बढ़ रहा है वंचित समाज*

*देश में सामाजिक क्रांति की नींव बाबा साहेब ने रखी – भगवानू*

रायपुर, छत्तीसगढ़, (वायरलेस न्यूज दिनांक 06/12/2025) । आज का दिन भारतीय इतिहास और समाज के लिए एक गंभीर चिंतन, श्रद्धा और संकल्प का दिन है। आज ही के दिन, 6 दिसंबर 1956 को, भारतीय संविधान के शिल्पी, समाज के महान मार्गदर्शक और दलितों-शोषितों के मसीहा डॉ. भीमराव आंबेडकर ने इस दुनिया को विदा कहा था। उनका “महापरिनिर्वाण दिवस” केवल एक स्मरण दिवस नहीं, बल्कि उनके विचारों, संघर्ष और सपनों को आत्मसात करने का अवसर है।

डॉ. आंबेडकर का जीवन स्वयं एक चलता-फिरता संविधान था। जिस समाज ने उन्हें जन्म दिया, उसी समाज ने उन्हें अछूत और हेय समझा लेकिन उन्होंने इस क्रूर व्यवस्था को अपनी प्रतिभा, अदम्य इच्छाशक्ति और अथक परिश्रम से चकनाचूर कर दिया। उन्होंने कोलंबिया विश्वविद्यालय और लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स जैसे शिखर संस्थानों से शिक्षा प्राप्त किया केवल अपने लिए नहीं, बल्कि करोड़ों दबे-कुचले लोगों के मन में शिक्षा की ज्योत जलाने के लिए।

“शिक्षित बनो, संगठित रहो, संघर्ष करो” – यह उनका मंत्र था। उनका मानना था कि सामाजिक और आर्थिक गुलामी से मुक्ति का एकमात्र रास्ता शिक्षा है। उन्होंने ताउम्र उन लोगों की वकालत की जिनकी आवाज दबा दी गई थी, जिनके साथ पशुओं से भी बदतर व्यवहार किया जाता था।

उनकी सबसे बड़ी देन है – भारत का संविधान। यह केवल एक कानूनी दस्तावेज नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व का महाग्रंथ है। इसने भारत को एक लोकतांत्रिक गणराज्य बनाया, जहां हर नागरिक को बिना किसी भेदभाव के गरिमा और अवसर का अधिकार दिया गया। ‘एक व्यक्ति, एक मूल्य, एक वोट’ का सिद्धांत लाकर उन्होंने सामाजिक क्रांति की नींव रखी।

आज जब हम बाबासाहेब के महापरिनिर्वाण दिवस पर उन्हें याद करते हैं, तो हमारे सामने कुछ गंभीर प्रश्न हैं:

· क्या हम उस समतामूलक समाज की ओर बढ़ रहे हैं, जिसका उन्होंने सपना देखा था?

· क्या शिक्षा और अवसर सभी के लिए समान रूप से सुलभ हैं?

· क्या हम सामाजिक भेदभाव और घृणा की दीवारें तोड़ पा रहे हैं?

बाबासाहेब का संदेश स्पष्ट था: मानवता सर्वोपरि है। जाति, धर्म या लिंग के नाम पर किसी के साथ भेदभाव पाप है। आज का दिन हमें यह संकल्प लेने का है कि हम उनके विचारों को जीवन में उतारेंगे। हम ऐसे भारत का निर्माण करेंगे जो सही मायने में समावेशी, न्यायपूर्ण और समरस हो, जहां हर व्यक्ति को सम्मान और अवसर मिले।

बाबासाहेब अमर हैं। उनका विचार अमर है। उनका संघर्ष अमर है। आइए, उनके इस पावन महापरिनिर्वाण दिवस पर हम उनके बताए मार्ग पर चलने का प्रण लें।

“मैं किसी समुदाय की प्रगति को उसकी महिलाओं ने जो प्रगति की है उससे आंकता हूं।” – डॉ. बी. आर. आंबेडकर

Author Profile

Amit Mishra - Editor in Chief
Amit Mishra - Editor in Chief
Latest entries