रायगढ़ (अनिल आहूजा वायरलेस न्यूज़ रायगढ) राजघराने के वर्तमान राजा विशाल बहादुर सिंह का सोमवार रात रायपुर एम्स हॉस्पिटल में निधन हो गया, उक्ताशय की जानकारी उनके चाचा देवेंद्र बहादुर ने दी ।

42 वर्षीय राजा विशाल बहादुर बेहद मिलनसार और सरल व्यक्ति थे। इनके पिता राजा ललित सिंह के ज्येष्ठ पुत्र विजय बहादुर और माता सरोज कुमारी थी। कुछ दिन पूर्व एक सड़क दुर्घटना में राजा साहब को मस्तिष्क में चोट लग गई थी, जिसके कारण उनका रायपुर में किसी अस्पताल में इलाज करवा रहे थे। कल रात उनका दुःखद निधन हो गया।उनका पार्थिव शरीर देर शाम रायगढ़ राजमहल पहुंचेगी, सम्भवतः कल अंतिम संस्कार कार्यक्रम सम्प्पन किए जाएंगे।
विशाल बहादुर के दो जुड़वां बच्चे है वह अभी हाल ही में पैदा हुए थे ,इनकी धर्मपत्नी ओडिशा पाल लोढ़ा (देवगढ़) के राजपरिवार से है।
रायगढ रियासत ब्रिटिशराज के समय भारत की एक रियासत (प्रिंसली स्टेट) था। यह गोंड राजवंश के राजाओं द्वारा शासित थी। इसकी स्थापना १६२५ में हुई थी। १९११ में अंग्रेजों ने इसे रियास्त के रूप में मान्यता दी। भारत सरकार में शामिल होने वाला सबसे पहला रियासत रायगढ़ रियासत था ।जिनको उस समय के वर्तमान राजा ललित सिंह थे ।राजा ललित सिंह जी बहुत बड़े दानी थे । राजा ललित सिंह ने रायगढ़ के विकास के लिए बहूत ज़मीन अपने प्रजा को दिए और विकास करवाया ।वो महाराजा चक्रधर सिंह के पुत्र थे ।महाराजा चक्रधर सिंह संगीत और कला में बहुत काम किये ।जिसके कारण रायगढ़ रियासत को पहचान मिली ।रायगढ़ में आज भी चक्रधर समारोह पूरे 10 दिन हर्षउल्लाष के साथ मनाया जाता है । गोंड राजा चक्रधर सिंह पोर्ते का जन्म 19 अगस्त, 1905 को रायगढ़ रियासत में हुआ था । नन्हें महाराज के नाम से सुपरिचित, आपको संगीत विरासत में मिला । उन दिनों रायगढ़ रियासत में देश के प्रख्यात संगीतज्ञों का नियमित आना-जाना होता था । पारखी संगीतज्ञों के सान्निध्य में शास्त्रीय संगीत के प्रति आपकी अभिरुचि जागी । राजकुमार कॉलेज, रायपुर में अध्ययन के दौरान आपके बड़े भाई के देहावसान के बाद रायगढ़ रियासत का भार आकस्मिक रुप से आपके कंधों पर आ गया । 1924 में राज्याभिषेक के बाद अपनी परोपकारी नीति एवं मृदुभाषिता से रायगढ़ रियासत में शीघ्र अत्यन्त लोकप्रिय हो गए । कला-पारखी के साथ विभिन्न भाषाओं में भी आपकी अच्छी पकड़ थी । कत्थक के लिए आपको खास तौर पर जाना गया .और आपने रायगढ़ कत्थक घराना की नींव रखी.
छत्तीसगढ़ के पूर्वी छोर पर उड़ीसा राज्य की सीमा से लगा जनजाति बाहुल्य जिला मुख्यालय रायगढ़ स्थित है। दक्षिण पूर्वी रेल लाइन पर बिलासपुर संभागीय मुख्यालय से 133 कि. मी. और राजधानी रायपुर से 253 कि. मी. की दूरी पर स्थित यह नगर उड़ीसा और बिहार प्रदेश की सीमा से लगा हुआ है। यहां का प्राकृतिक सौंदर्य, नदी-नाले, पर्वत श्रृंखला और पुरातात्विक सम्पदाएं पर्यटकों के लिए आकर्षण के केंद्र हैं। रायगढ़ जिले का निर्माण 01 जनवरी 1947 को ईस्टर्न स्टेट्स एजेन्सी के पूर्व पांच रियासतों क्रमश: रायगढ़, सारंगढ़, जशपुर, उदयपुर और सक्ती को मिलाकर किया गया था। बाद में सक्ती रियासत को बिलासपुर जिले में सम्मिलित किया गया। केलो, ईब और मांड इस जिले की प्रमुख नदियां है। इन पहाड़ियों में प्रागैतिहासिक काल के भित्ति चित्र सुरक्षित हैं। आजादी और सत्ता हस्तांतरण के बाद बहुत सी रियासतें इतिहास के पन्नों में कैद होकर गुमनामी के अंधेरे में खो गये। लेकिन रायगढ़ रियासत के गोंड महाराजा चक्रधरसिंह पोर्ते का नाम भारतीय संगीत कला और साहित्य के क्षेत्र में असाधारण योगदान के लिए हमेशा याद किया जाता रहेगा। राजसी ऐश्वर्य, भोग विलास और झूठी प्रतिष्ठा की लालसा से दूर उन्होंने अपना जीवन संगीत, नृत्यकला और साहित्य को समर्पित कर दिया। इसके लिए उन्हें कोर्ट ऑफ वार्ड्स के अधीन रहना पड़ा। लेकिन 20 वीं सदी के पूर्वार्द्ध में रायगढ़ दरबार की ख्याति पूरे भारत में फैल गयी। यहां के निष्णात् कलाकार अखिल भारतीय संगीत प्रतियोगिताओं में उत्कृष्ट प्रदर्शन कर पुरस्कृत होते रहे। इससे पूरे देश में गोंड महाराजा चक्रधर सिंह की ख्याति फैल गयी।
ऐतिहासिक दृष्टि से देखा जाये तो अनेक राजघरानों के उत्थान और पतन का प्रभाव कला, संगीत और कलाकार के जीवन में दृष्टिगोचर होता है। संपूर्ण संगीत जगत जिस पर गौरव कर सके ऐसे महान कलाकार, संगीत प्रेमी, गुणग्राही राजाओं से छत्तीसगढ़ की धरती समृद्ध है लेकिन रायगढ़ के गोंड महाराजा चक्रधर सिंह ने जयपुर, बनारस और लखनऊ कत्थक घराना की तर्ज में रायगढ़ कत्थक घरानाबनाकर कत्थक नृत्य की एक नई शैली विकसित कर संगीत सम्राट
की उपाधि से विभूषित होकर रायगढ़ रियासत व छत्तीसगढ़ को गौरवान्वित किये। संगीतानुरागी और कला पारखी तो वे थे ही, एक अच्छे तबला वादक और सितार वादक व विलक्षण तांडव नृत्य में भी निपुण थे। उन्होंने संगीत और साहित्य की दुर्लभ पुस्तकें लिखीं हैं।
इन्होने कला और संगीत से संबंधित विश्व का सबसे विशाल 37 किलो वजनी साहित्य लिखा है.इन्हें संगीत सम्राट नहीं विश्व संगीत सम्राट की उपाधि प्राप्त है। इंगलैंड मेँ इनके नाम पर फिल्म बन चुकी है पर भारत के फिल्मकारों को इनका इतिहास तक मालूम नहीं इनके पुर्वज महाराजा भूपदेव को 19वीँ सदी मेँ अंग्रेजो ने”वीर बहादुर”के उपाधि से नवाजा है।इन्होने अपने नाम पर एक गाँव भूपदेवपुर भी बसाया जो रायगढ-कोरबा मार्ग पर स्थित है। गोंड महाराजा चक्रधर को ताल तोय निधि के लिए नोबेल पुरस्कार मिलना तय था उनका यह विशाल ग्रंथ अंग्रेजों के संग्रहालय में था पर षडयंत्र के तहत व ब्रिटिशयों की राजनीतिक मंशा के चलते उन्हे नोबेल पुरुष्कार नही दिया गया. 7 अक्टूबर 1947 को रायगढ़ में आपका देहावसान हुआ । छत्तीसगढ़ शासन ने उनकी स्मृति में कला एवं संगीत के लिए राजा चक्रधर सम्मान स्थापित किया है ।
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