रायगढ़ ( वायरलेस न्यूज़) शहर के मध्य सतीगुड़ी चौक पर स्थित है यह मंदिर
भैया भरत के साथ शिवलिंग व मां दुर्गा की प्रतिमा है स्थापित
कला संस्कृति एवं साहित्य की अनमोल भीनी सुरभियों से सराबोर रायगढ़ नगरी में वैसे तो कई प्रसिद्ध तथा सिद्ध देवालय स्थित हैं। जिसके स्नेह छांव तले श्रद्धालु जन अपने मन्नतों को पूरा कर आज भी धार्मिक आस्थाओं के परिणाम स्वरूप आराध्य कार्य में लीन देखे जा सकते हैं। घने आबादी में बसे रायगढ़ का केंद्र बिंदु सतीगुड़ी चौक से आरंभ होता है। नगर के दानवीर सेठ किरोड़ीमल के हाथों रायगढ़ रूपी वाटिका का निर्माण किया गया, जहां कालांतर में यह पल्लवित होकर उद्योग नगरी का दर्जा पाने को सतत संघर्षरत है।

कब और किसने कराया निर्माण
विक्रम संवत 2021 में नगर सेठ किरोड़ीमल ने सत्तीगुड़ी चौक पर श्री भरतकूप मंदिर का निर्माण कराया। श्वेत पाषाण संगमरमर युक्त नयनाभिराम इस श्री भरतकूप मंदिर के मध्य स्थित शिवलिंग के समीप माता पार्वती, गणेश जी, कार्तिकेश्वर जी के साथ नंदी गौ शोभायमान हैं,

तो वहीं पूजन कक्ष में ही राम भक्त हनुमान, दशरथ पुत्र भरत के संग माता दुर्गा की प्रतिमा भी मंदिर की गरिमा में चार चांद लगाए हुए हैं। लाल ध्वजा लहराते गुंबज के तले स्थित मंदिर के 3 पट हैं। वहीं मंदिर के चारों ओर दीवारें चौपाइयों से अलंकृत है। मंदिर परिसर में चार ऊंची मीनार प्रतिहारी की भांति सजग मुद्रा में स्थित श्री भरतकूप से आत्मीयता बनाए हुए हैं।

क्या है विशेषता भरत कूप की?
श्री भरतकूप की विशेषता यह है कि, यहां के जल में 27 कुंओं का जल मिश्रित है।

अतएव 27 कुंओं के जल को अपने अंदर समाहित करने वाले श्री भरतकूप के जल का उपयोग लोग उस विशेष पूजा में करते हैं जैसा कि, जो पिता अपने नवजात बच्चे को उसकी पैदाइश के दिनों में इसलिए नहीं देख पाता क्योंकि, नवजात शिशु की पैदाइश पंचक व ग्रह नक्षत्र से प्रभावित जो रहती है। अतएव 27 कुंओं का जल प्राप्ति हेतु नियम अनुसार उक्त पिता वैकल्पिक नीति के माध्यम से श्री भरतकूप का जल लेकर विधिवत पूजा पाठ उपरांत अपने नवजात शिशु का चेहरा देख पाता है। तो वहीं छोटे-बड़े पूजा, हवन, आदि शुभ कार्यों में भी भरतकूप के जल को विशेष दर्जा दिया जाता है।


57 साल हो गए मंदिर के निर्माण को
भरत कूप मंदिर के वर्तमान पुजारी पं. कमल किशोर शर्मा ने बताया कि इस मंदिर को 57 साल हो गए हैं। करीब 45 साल तक मंदिर में पूजा-पाठ की पूरी जिम्मेदारी पं. बैजनाथ शर्मा ने सम्हाली। उनके निधन के बाद उनके छोटे पुत्र कमल शर्मा मंदिर में पूजा-अर्चना कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि हर वर्ष दोनों शिवरात्रि में मंदिर को विशेष रूप से सजाया जाता है। शिवरात्रि पर्व के दौरान नगर व आसपास के हजारों श्रद्धालु यहां आकर भगवान शिव के समक्ष नतमस्तक होकर पुण्य लाभ कमाते हैं। शिवरात्रि पर्व में दिनभर भजन कीर्तन का कार्यक्रम चलता है, व मंदिर के दर्शन हेतु श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। यहां हनुमान जयंती भी धूमधाम से मनाई जाती है। मंदिर में मां दुर्गा की भी प्रतिमा है, इसलिए दोनों नवरात्रि पर्व पर भी यहां विधि-विधान से पूजा-अर्चना व अन्य अनुष्ठान होते हैं। आसपास के श्रद्धालु यहां सुबह-शाम पूजा-अर्चना करने आते हैं।