भाषा भावों की अभिव्यक्ति है, विचारों का परिधान है, अव्यक्त भाषा से ही प्राणवान होकर व्यक्त होता है । धर्म , संस्कृति, इतिहास, साहित्य सभी भाषा से ही आकार लेते हैं। प्रत्येक की अपनी भिंन्न भाषा होती है जिससे उपयोगिता के आधार पर इसका विकास होता है । भाषा रूपी इस सांस्कृतिक विरासत को नजर अंदाज करने से यह निरंतर ह्रास होती जा रही है ।
भाषा संस्कृत शब्दावली की “भाष” धातु से बनी है जिसका अर्थ बोलना या कहना है।
इस संबंध में महान दार्शनिक प्लेटो का कहना है कि विचारों की आत्मा का मुख्य अध्यापक संकेत यही जब तक होकर शब्दों द्वारा प्रकट होता है तो इसे भाषा की संज्ञा दी जाती है भाषा पर संकेत का एक माध्यम है भाषा की उत्पत्ति का सिद्धांत 20वीं सदी में बर्नार्ड जोहंसवर्ग और हमफ्री जैसे विद्वानों द्वारा प्रतिपादित किया गया है महाद्वीप, देश, धर्म, काल आकृति, परिवार के प्रभाव के आधार पर इसका वर्गीकरण किया गया जिसमें श्लिष्ठ अश्लिष्ठ एवं प्रतिष्ठित के आधार पर भाषा का स्वरूप दर्शाया गया है।
“संस्कृत” देव भाषा के रूप में जानी जाती हैं यह प्राचीनतम भाषा है और मान्यता के अनुसार सारी भाषाओं की उत्पत्ति इसी से हुई है। अपनी मातृभाषा हिंदी है यह विश्व की तीसरे नंबर की भाषा एक अनुमान के अनुसार लगभग 70 करोड लोग इसका उपयोग करते हैं
यह अपने देश की लोकप्रिय भाषा हिंदी आंध्र प्रदेश केरल और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में भी करोड़ों लोग इसका प्रयोग करते हैं
वैसे भाषा के दृष्टिकोण से सर्वाधिक जैव विविधता अपने ही देश में है जहां करीब 600 भाषाएं हैं जिसमें 15 तो राजकीय भाषा के रूप में प्रयुक्त होती है।
विश्व की सबसे बड़ी भाषा चीनी है सारे संसार में 60% चीनी अंग्रेजी 25% रुसी 18 प्रतिशत 12% जर्मन 10% जापानी 10% फ्रांसीसी 8% लोगों द्वारा बोली जाती है चीनी को मदारींन भाषा भी कहा जाता है। व्यापार की दृष्टि से अंग्रेजी भाषा आती है ।
एक लोकोक्ति है कि –
कोस कोस में पानी बदले,
चार कोस पर वाणी बदले।
विविधता ही भाषा की शोभा है। यह भौगोलिक परिवेश तथा मानव की जनसंख्या के घनत्व पर निर्भर करती है ।
लोकमान्य तिलक कथन है कि भाषा की समृद्धि स्वतंत्रता का बीज है। भाषा राष्ट्र की एक सांस्कृतिक विरासत होती है । राष्ट्रीय समाज के दृढ़ता एकता व सांस्कृतिक समृद्धि का परिचायक वहां के प्रचलित भाषाएं होती हैं।
भाषा की स्थिति का वर्तमान दौर बड़ा ही निराशाजनक है आज विश्व की कई भाषा अवसान के समीप पहुंच चुके हैं प्राय मूल भाषाओं को नई पीढ़ी उपेक्षित कर देती है । नई पीढ़ी प्रचलित भाषा का उपयोग करती हैं जिससे मूल भाषा पतन की ओर अग्रसर हो रहे हैं ।
यदि ऐसी स्थिति रही तो आगामी शब्दावली तक कुछ सौ तक की भाषाएं शेष रह जाएंगी । वैचारिक भिन्नता आज की परिप्रेक्ष में भाषा के पतन का प्रमुख हेतु बनकर उभर रही है। बाहरी दबाव किसी भाषा के पतन द्वार तक पहुंचने में कोई कसर नहीं छोड़ रही है ।
ब्रिटिश शासकों ने भाषा को सर्वाधिक तबाह किया है । भारत के सैकड़ों वर्ष के शासन के दौरान भारतीय भाषाओं को दबाकर बलात अंग्रेजी को स्थापित किया। भाषाई विविधता तथा पूर्वाग्रह मान्यता के कारण विश्व के अनेक देशों में खून की नदियां बही।
भाषा संस्कृति का वाहक है उसका अंग है
कविवर रविंद्र ने भाषा के स्वरूप को आकर्षक ढंग से सजाया है
हे समुद्र !तेरी क्या भाषा है..।
शाश्वत प्रश्न ही भाषा है
हे आकाश !
तेरे उत्तर की क्या भाषा है ..
शाश्वत मौन ही भाषा है…।
भाषा प्राणों का संचार करती है। यह हिम्मत साहस और दृढ़ता का परिचायक है । भाषा मनुष्य के अस्तित्व का एक जटिल उत्पाद है।
भाषा किसे राष्ट्रीय समाज के सामाजिक सांस्कृतिक तथा साहित्यिक तत्वों का प्रतिनिधित्व करती है
लेखक कवि अपनी अभिव्यक्ति को इसी के द्वारा पाठक तक पहुंचाने में सफल हो पाते हैं ।
भाषा में वह शक्ति का व क्षमता निहित होती है जिससे मूर्छित राष्ट्र को जीवंत और जागृत किया जा सकता है।
वर्तमान के अश्लील और विषाक्त वातावरण के परिष्कार के लिए भाषा की पवित्रता तथा विचारों की उत्कृष्टता की एक मात्र निदान पर भाषाओं के विकास में ही राष्ट्र के विभिन्न संस्कृति का विकास सन्निहित है । विविध भाषाओं को समुचित सम्मान देकर विश्व शांति और सद्भावना की ओर कदम बढ़ाना वर्तमान की मांग है तभी 21वीं सदी में विश्व भाषा के आंचल में सभी भाषाएं अपना विकास कर सकेंगी।
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