बिलासपुर (अमित मिश्रा संपादक वायरलेस न्यूज़ 9 जूलाई 23) छत्तीसगढ़ के वनांचल में हुई पहली बारिश और उमस के कारण साल वृक्षों के नीचे उगने वाले “बोड़ा तथा मशरूम” बस्तर से बिलासपुर के बाज़ारों में आने की हल्की धमक सुनाई दे रही है। ग्रामीण अंचलों में जंगल में जाकर आदिवासी ग्रामीण जन ‘मशरूम’ तथा ‘बोड़ा’ एकत्र
करने में जुट गए हैं, ‘बोड़ा’ की पहली खेप छत्तीसगढ़ के बाज़ार में आना प्रारंभ हो गया हैं। दाम पूछो मत छत्तीसगढ़ में सामान्यतः 200 ग्राम वाली ‘सोली बोड़ा’ का दाम 400 रु के आसपास चल रहा है। इस लिहाज से बाज़ार की सबसे महंगी सब्जी ‘बोड़ा’ का रेट 2000 रु प्रतिकिलो तक बिक रहा है।
बेलगहना के राकेश पांडे का कहना है कि बेलगहना वनांचल में निवासरत लोग बोड़ा का स्वाद न जाना तो क्या खाया अक्सर ये सवांद बाज़ार में सुनाई दे जाता है।
‘बोड़ा’ के स्वाद के सौकीन बताते है कि इसके इतने अधिक दाम देने की वजह है, इसकी पैदावार खेत बाड़ी में नही की जा सकती, ‘बोड़ा’ कुदरत की नेमत हैं । दो चार दिनों की बारिश के बाद जब चटक धूप होती है तब ‘बोड़ा’ की खुदाई साल के पेड़ों के नीचे की जाती हैं। शुरुआत दौर का ‘बोड़ा’ नरम छिलके और लज़ीज़ गुदे की वजह से काफी महंगा होता है पूरे सीजन में बोड़ा की दर 400 रु. किलो से नीचे नही जाती।हांलाकि अभी बिलासपुर के बाजार में बोड़ा 600 रु. किलो की दर पर बिक रहा है। ‘बोड़ा’ के बारे में जगदलपुर के वरिष्ठ पत्रकार अरुण पाढ़ी का कहना है कि मौसमी ब्यापार का अनुमान लगाने वाले बताते हैं कि अकेले बस्तर के बाजार में ही लोग 5 से 7 लाख रु का ‘बोड़ा’ चट कर जाते हैं।
बताते हैं कि ‘बोड़ा’ उत्पादन के लिए साल वनों का होना जरूरी है। इस लिहाज से बस्तर , कांकेर, कोंडागांव, राजनांदगांव, कवर्धा, गौरेला-पेंड्रा-मरवाही, कोरबा, अम्बिकापुर जशपुर, रायगढ़ और बिलासपुर के बेलगहना, कोटा के साल जंगलों से अबाध तरीके से बाजारों में पहुँचना प्रारम्भ हो गया है। वहीं पत्रकार अरुण पाढ़ी ने बताया कि इससे ठीक उलट सागौन वनों वाले दक्षिण बस्तर में इसकी पैदावार वहां की शून्य है।
उच्च गुणवत्ता वाले प्रोटीन और खनिज तत्व सहित औषधि लाभ देने वाले ‘बोड़ा’ के जायके के दीवाने शाकाहारी -मांसाहारी दोनों होते है। कोई खेड़ा भाजी के साथ कि रेसिपी पसंद करता है तो कोई चिकन के साथ। बेचने वाले बताते है जंगल में मिलने वाले दूसरे मशरूमों के खाने में विषले होने का खतरा रहता है, पर ‘बोड़ा’ की दोनों किस्मे , ‘जात बोड़ा’ और ‘राखड़ी बोड़ा’ बेहिचक खाई जा सकती है।
बस्तर के मांचकोट ,तिरिया इलाके से बड़ी मात्रा में बोड़ा लेकर ग्रामीण खासी आय अर्जित कर रहे है। पैली, सोली ,टोकने, बोरे जहां कहीं ‘बोड़ा’ लिए ग्रामीण नजर आते हैं। कोचिए इन पर बाज की तरह झपट पड़ते हैं। प्रकृति के अलावा अन्य किसी तरीके से बोड़ा का उत्पादन असंभव होने से इसके बेहतर दाम मिल जाते हैं।
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