छत्तीसगढ़ में मानसून के आगमन से पूर्व दिखा “चातक” पक्षी
(अमित मिश्रा संपादक वायरलेस न्यूज)
हमारा चिर परिचित पक्षी जो आम जनमानस से अधिक भारतीय साहित्य में लोकप्रिय रहा है और जिसे कालिदास ने “मेघदूतम” में स्थान देकर सदा के लिए अमर कर दिया. श्रृंगार रस के कवियों का प्रिय पक्षी होने का इसका प्रमुख कारण है- इसकी पियु-पियु की मधुर ध्वनि, जो कवियों की कल्पना में विरहरत नायिका द्वारा अपने प्रियतम को पुकारने का प्रतीक बन गई।
“छत्तीसगढ़” में 13 जून से मानसून दस्तक दे रहा है, उसी के साथ ‘चातक’ पक्षी मुझे आज ही सुबह जब मॉर्निंग वॉक में बिलासपुर शहर से लगे मंगला में बड़े-बड़े वृक्षों से कुछ अजीब सी आवाज सुनाई दी जैसे सिपाही बुलबुल समूह में कलरव कर रही हो. हालांकि यह भी समझ में आ रहा था की आवाज में कुछ भिन्नता है. तुरंत दिमाग में इसकी छवि उभरी और जैसे ही बाहर निकल कर देखा, सामने पेड़ पर चातक महोदय आवाज लगा रहे थे
फिर रुककर देखने का प्रयास किया और अच्छे से दर्शन भी कर लिया मानसून”. कुछ दिनों से न्यूज़ पेपरों में मानसून के आगमन की खबरें पढ़कर उस खबर को ज्यादा महत्व नहीं दिया और शायद यह बात मौसम विभाग को नागवार गुजरी और उसने तुरंत ही मानसून विशेषज्ञ अग्रदूत को भेज कर इस समाचार के सही होने की पुष्टि की।
यह अपने आप को पत्तियों की ओट में छुपाया था इसलिए आवाज सुनने से पूर्व लगा कि शायद कोयल है लेकिन आवाज सुनते ही सब कुछ स्पष्ट हो गया. अत्यंत सुखद अनुभूति हुई, लेकिन पत्तियों में छिपे होने के कारण कोई भी फोटो साझा करने योग्य नहीं थी।
पर्याप्त अवलोकन का अवसर भी दिया साथ ही पियु-पियु की मधुर ध्वनि भी सुनाई, तभी अचानक एक महालत ने आकर चातक को भगा दिया और अवलोकन की सुखद अनुभूति का यही समापन हो गया. खैर, मन में एक संतुष्टि का भाव था।
पक्षियों की दुनिया खूबसूरती के साथ ही रहस्य भी समेटे हुए हैं और चातक इस बात को पूरी तरीके से सही साबित करता है. मानसून का बिल्कुल सटीक अनुमान लगा पाना कैसे संभव होता है, यह पक्षी वैज्ञानिकों के लिए भी हैरत की ही बात है. चातक भारत के दृष्टिकोण से स्थानीय के साथ ही प्रवासी भी है ,ये अक्सर अफ्रीका महाद्वीप से मानसून के आगमन के पहले ही भारत पहुंचते है। इसकी एक प्रजाति मानसून के समय में दक्षिण भारत से उत्तर भारत आती है और यहीं पर प्रजनन करती है. कुकू परिवार का यह पक्षी भी कोयल और पपीहे की तरह ही नीड परजीवी होता है और दूसरे पक्षियों के घोसले में अंडे देता है। अंडे देने के लिए बैबलर परिवार के पक्षियों के घोंसले को प्राथमिकता देता है. मानसून के समाप्त होते ही यह अपने नई पीढ़ी के साथ वापस अफ्रीका महाद्वीप और दक्षिण भारत निकल जाते है।
पक्षी वैज्ञानिकों के अनुसार “चातक” अफ्रीका से भारत आती है. ताज्जुब होता है कि प्रजनन के लिए यह पक्षी इतनी दूर प्रवास करते हैं. वैज्ञानिक तथ्यों से परे एक सामान्य पक्षी प्रेमी के तौर पर यह लगता है कि अवश्य इसके पूर्वजों का कभी उस स्थान से विशेष सम्बन्ध रहा होगा जो इन्हें एक विशेष स्थान पर प्रजनन के लिए आने हेतु प्रेरित करता है। हालाँकि पक्षी, आहार की प्रचुरता और प्रजनन के लिए सुरक्षित स्थान की उपलब्धता के कारण ही प्रवास करते हैं।
भारतीय साहित्य में पक्षियों का वर्णन प्राय: कल्पनापूर्ण, अतिरंजित तो है ही, कवियों की कल्पना ने चातक और पपीहे में अन्तर भी नहीं रखा है। चातक के बारे में साहित्य में वर्णन है कि यह मात्र स्वाति नक्षत्र होने पर वर्षा जल का ही पान करता है जबकि पक्षी वैज्ञानिकों के अनुसार मात्र वर्षा जल ही पीने की बात चातक के संदर्भ में सत्य नहीं है. संभवत यह धारणा आदिकाल से इसलिए बनी है क्योंकि चातक केवल मानसून प्रारंभ होने पर ही दिखाई देता है. संभवत मानसून के समय ही इस पक्षी की सक्रियता ने ऐसी धारणाओं को जन्म दिया है क्योंकि स्वाति नक्षत्र का उदय जिस समय होता है, उस समय मानसून समाप्ति पर होता है और यह पक्षी उत्तर भारत से अपना प्रवास समाप्त करके वापसी के लिए तैयार होता है.
चातक भी भारतीय साहित्य का अभिन्न अंग रहा है और हिंदी और संस्कृत दोनों भाषा के साहित्यकारों का यह प्रिय रहा है. कुछ प्रसंग निम्नवत हैं-
रे रे चातक सावधान मनसा मित्र क्षणं श्रूयताम्
अम्बोदा बहवो वसन्ति गगने सर्वेऽपि नैतादृशाः
केचिद् वृष्टिभिरार्द्रयन्ति धरणीं गर्जन्ति केचिद् वृथा
यं यं पश्यसि तस्य तस्य पुरतो मा ब्रुहि दीनं वचः!
- (भर्तृहरि नीतिशतकम)
भावार्थ- हे मित्र चातक! सावधान होकर एक क्षण के लिये मेरी बात सुनो। नभ में बहुत से बादल होते हैं किन्तु सभी समान नहीं होते हैं। कोई वर्षा से पृथ्वी को आर्द्र कर देता है, कोई व्यर्थ ही गरजता है। अतः जिस-जिस को देखते हो, उन सभी के सामने दीन वचन मत बोलो अर्थात सभी बोलने वाले अथवा वचन देने वालों से अपेक्षा न रखो।
हिंदी भाषा में चातक का वर्णन जितना तुलसीदास जी ने किया है उतना शायद ही किसी अन्य कवि ने किया हो.
चातक रटत तृषा अति ओही। जिमि सुख लहइ न संकर द्रोही॥
भावार्थ- पपीहा रट लगाए है, उसको बड़ी प्यास है, जैसे श्री शंकर जी का द्रोही सुख नहीं पाता (सुख के लिए चीखता रहता है)
नहिं जांचत नहिं संग्रही शीश नाइ नहिं लेइ।
ऐसे मानी मांगनेहि को वारिद बिनु देइ।। (दोहावली-तुलसीदास)
भावार्थ- न मांगता है, न संग्रह करता है, सिर झुकाकर लेता भी नहीं, ऐसे स्वाभिमानी याचक (चातक) को बादलों के अतिरिक्त और कौन दे सकता है।
तुलसीदास कृत “दोहावली” में तो दोहा संख्या 277 से 312 तक केवल चातक को ही संदर्भित है-
एक भरोसो एक बल एक आस बिस्वास।
एक राम घन स्याम हित चातक तुलसीदास।277।
जौं घन बरषै समय सिर जौं भरि जनम उदास।
तुलसी या चित चातकहि तऊ तिहारी आस।278।
चातक तुलसी के मतें स्वातिहुँ पिऐ न पानि।
प्रेम तृषा बाढ़ति भली घटें घटैगी आनि।279।
रटत रटत रसना लटी तृषा सूखि गे अंग ।
तुलसी चातक प्रेम को नित नूतन रूचि रंग।280।
चढ़त न चातक चित कबहुँ प्रिय पयोद के दोष ।
तुलसी प्रेम प्योधि की ताते नाम न जोख।281।
बरसि परूष पाहन पयद पंख करौ टुक टूक।
तुलसी परी न चाहिऐ चतुर चातकहि चूक।।282।
उपल बरसि गरजत तरजि डारत कुलिस कठोर।
चितव कि चातक मेघ तजि कबहुँ दूसरी ओर।283।
पबि पाहन दामिनी गरज झरि झकोर खरि खीझि।
रोष न प्रीतम दोष लखि तुलसी रागहि रीझि।284।
मान राखिबो माँगिबो पिय सों नित नव नेहु।
तुलसी तीनिउ तब फबैं जौं चातक मन लेहु।285।
तुलसी चातक की फबै मान राखिबो प्रेम।
बक्र बुंद लखि स्वातिहू निदरि निबाहत नेम।286।
तुलसी चातक माँगनेा एक उक घन दानि।
देत जो भू भाजन भरत लेत जो घूंटक पानि।287।
तीनि लोक तिहुँ काल जस चातक ही के माथ।
तुसी जासु न दीनता सुनी दूसरे नाथ।288।
प्रीति पपीहा पयद की प्रगट नई पहिचानि।
जाचक जगत कनाउड़ेा कियो कनौड़ा दानि।289।
नहिं जाचक नहिं संग्रही सीस नाइ नहिं लेइ।
ऐसे मानी मागनेहि को बारिद बिन देइ।290।
साधन साँसति सब सहत सबहि सुखद फल लाहु।
तुलसी चातक जलद की रिझि बूझि बुध काहु।292।
चातक जीवल दायकहि जीवन समयँ सुरीति।
तुलसी अलख न लखि परै चातक प्रीति प्रतीति।293।
जीव चराचर जहँ लगे हैं सब को हित मेह ।
तुलसी चातक मन बस्यो घन सों सहत सनेह।294।
वहीं पर रहीम दास जी ने भी चातक के विषय में लिखा है –
मुकता कर करपूर कर, चातक जीवन जोय।
एतो बड़ो रहीम जल, ब्याल बदन विष होय॥
पक्षियों के संरक्षण के लिए आहार, आवास और सुरक्षा – तीन महत्वपूर्ण बिंदु होते हैं. किंतु कुक्कू परिवार के नीड परजीवी सदस्यों के संरक्षण के लिए उन पक्षियों का संरक्षण भी आवश्यक है जिनके घोसले में यह पक्षी अंडे देते हैं. स्पष्ट है कि अत्यधिक मानवीय हस्तक्षेप उनकी खाद्य श्रंखला या प्रजनन श्रंखला को कब बाधित कर उनकी संपूर्ण प्रजाति को खतरे में डाल दे, कोई अनुमान नहीं लगा सकता. ऐसे में इन सभी पक्षियों के संरक्षण के लिए व्यापक जन-जागरूकता आवश्यक है.
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