मसीहा की तलाश ? सुली पर लटकते जिसे देखा होगा, वक्त आएगा, वही शख्स मसीहा होगा
जीवन एक अनवरत यात्रा है, जहाँ हर कदम पर खून, नमक, और कानून की गिरफ्त से मुक्ति की चाह होती है। लेकिन क्या यह संभव है? नहीं, क्योंकि इस सफर में ऐसी घटनाएँ घटित होती हैं, जो हमारे नियंत्रण से परे हैं। फिर भी, हम बदल सकते हैं—नहीं घटनाओं को, बल्कि उन्हें देखने का अपना नजरिया।
जीवन पाँच स्तंभों पर टिका है, और आर्थिक स्तंभ इनमें से एक महत्वपूर्ण आधार है। लेकिन इसकी खोज में क्या-क्या नहीं करना पड़ता? झूठ और फरेब से भरी इस दुनिया में, हमारी सोच ही हमें अच्छे-बुरे का बोध कराती है। कोई चीज स्वयं में न अच्छी है, न बुरी—हमारा दृष्टिकोण ही उसे रंग देता है। परिस्थितियाँ, समय, और स्थान हमारे नजरिए को खुशी या दुख में बदल सकते हैं। फिर भी, यह सत्य है कि बिना दुख के सुख की कल्पना अधूरी है।
इसी सत्य को नेल्सन मंडेला ने जिया। 27 वर्षों की जेल यात्रा में भी उन्होंने न हिम्मत हारी, न समझौता किया। ऐनी फ्रैंक, एक 14 वर्षीय बालिका, ने कॉन्सेंट्रेशन कैंप की चारदीवारी में भी उम्मीद की किरण देखी। उसने लिखा, “जो खुशी बाकी है, उसी को गले लगाओ।” विक्टर फ्रैंकल ने भी यही सिखाया—जीवन सीधी रेखा नहीं, वक्र पथ है। शनि की वक्र दृष्टि, यानी हमारे नियंत्रण से बाहर की परिस्थितियाँ, हमेशा मौजूद रहती हैं। इनका स्वभाव हम बदल नहीं सकते, लेकिन अपनी प्रतिक्रिया को नियंत्रित कर सकते हैं।
यही संदेश है अल्कोहलिक्स एनॉनिमस की शांति प्रार्थना का:
हे ईश्वर, मुझे शांति दे,
कि मैं उन चीजों को स्वीकार करूँ जिन्हें बदल नहीं सकता,
उन चीजों को बदलने का साहस दे जिन्हें बदल सकता हूँ,
और इनमें अंतर जानने की बुद्धि दे।
जीवन को समझने के लिए इतिहास के पन्ने पलटने होंगे। ये पन्ने महज घटनाएँ नहीं, बल्कि लाइटहाउस हैं, जो अंधेरे में मार्ग दिखाते हैं। समुद्री यात्रा अनिश्चितताओं से भरी होती है, लेकिन लाइटहाउस की रोशनी मंजिल की गारंटी देती है। हम जो चाहते हैं, वह अक्सर हमारे नियंत्रण से बाहर होता है। हम दूसरों को अपना विरोधी मानते हैं, यह सोचकर कि उनके उत्थान में हमारा पतन है। लेकिन क्या यह सच है? क्या जीवन झूले की तरह नहीं हो सकता, जहाँ एक का ऊपर जाना दूसरे के लिए भी लाभकारी हो? यह सिनर्जी, यह “हमारा” का भाव, उबंटु की ओर इशारा करता है। बौद्ध धर्म का मध्यम मार्ग भी यही सिखाता है।
मनोवैज्ञानिक एडलर का कहना है कि सभी समस्याएँ रिश्तों की समस्याएँ हैं। यदि इस धरती पर रिश्ते खत्म हो जाएँ, तो शायद समस्याएँ भी खत्म हो जाएँ। लेकिन क्या ऐसी जिंदगी संभव है? नहीं। फिर भी, इन रिश्तों और परिस्थितियों के बीच एक मसीहा जन्म लेता है। वह कोई और नहीं—आप, मैं, या कोई भी हो सकता है, जो इस दुनिया की चुनौतियों में उम्मीद और बदलाव की मशाल जलाए रखता है। इस जहॉ में, उसी मसीहा की तलाश है ?
और अंत में –
जीवन है सफर, सफर है संघर्ष,
संघर्ष है बंधन, बंधन है मुक्ति,
मुक्ति है आजादी, आजादी है जीवन,
और जीवन ही है सफर।
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