मैं आजाद हूँ?
(15 अगस्त विषेष)

तेरी मिट्टी में मिलजावा
गुल बनके मैं खिल जावां
तेरी नदियों में बह जावां
तेरे फसलों में लहरावां
इतनी सी है दिल की आरजू
(मनोज मंुतशिर)

भारतीय इतिहास में आधुनिक काल को दो हिस्सों में बॉटा जा सकता है एक 15 अगस्त 1947 (जब भारत आजाद हुआ और अखण्ड भारत मे से

पाकिस्तान अलग हुआ) के पूर्व की स्थिति और दूसरी इसके बाद का काल जिस समय हम अभी की पीढ़ी पैदा हुये है। पहले काल में हम सब भारतीय थे, चाहे वह किसी भी जाति, धर्म, सम्प्रदाय के क्यों न हो, इन दौरान हमारा लक्ष्य एक मात्र था, कि भारत को

अंग्रेजो की 200 वर्ष की दास्तां से मुक्ति, भारत की आजादी। ऐसा नही है, कि उस दौरान अन्य सामूहिक या व्यक्तिगत लक्ष्य नही रहे है। लेकिन भारत की आजादी का मूल लक्ष्य था, उसके अधीन बाकी लक्ष्य गौण थे, लेकिन जैसे ही कि हम आजाद हुए हमारी लक्ष्य, व्यतिगत लक्ष्य चाहे वह सम्प्रदाय, जाति या धर्म या आर्थिक व्यवस्था के तौर पर बनाये गये, हावी होने लगे, परिणाम भी आज स्पष्ट है कि हम पहले हिन्दु, मुसलमां, सिक्ख या ईसाई पहले हो गये है और भारतीय बाद में, परिणाम भी स्पष्ट दिखाई पड़ता है। इसका खामियाना पूरे इंसानियत या मानवीय मूल्य को झेलना पड रहा है।
इकबाल द्वारा लिखी गई गीत “सारे जहॉ से अच्छा हिन्दुस्तान हमारा” में हिन्दुस्तान तो आज भी विद्यमान है लेकिन इसके पीछे छुपे हुये दास्तां, उद्देश्य, अपने लक्ष्य से विमुख क्यों हो गये है?
आजादी महज एक अल्फाज नही और ना खुली हवा में सॉस लेना। आजादी मानवीय मूल्य का सर्वोच्च कीमत है। इसका आंकलन हम नही कर सकते है, खासकर वह पीढ़ी जो इस दंश को न झेली हो। देश हो समाज या व्यक्ति गुलामी मानवीय मूल्य के सबसे बडी काली दाग है। एक ऐसा दाग जिसको धोने के लिए दुनिया में आज तक कोई रसायन का निर्माण नही हुआ। ये दाग दमा बिमारी की तरह होती है जो दम (जिंदगी) के साथ समाप्त होती है।
नेल्सन मंडेला 27 वर्ष तक जेल मे रहे। भगत सिंह साथियों सहित फॉसी चढ़े, महात्मा गॉंधी सहित कई भारतीय नेता जेल में रहे। भारत वर्ष में भी स्वतंत्रता के बाद पैदा हुए लोगों को आजादी के लिए कितनी किमत चुकानी पडी है, शायद नही मालूम। ईमानदारी से कहूं तो भी इतने अध्ययन के पश्चात भी आजादी कितनी बडी उपलब्धि है, इसका अहसास मुझे भी नही है, कारण स्पष्ट है कि हमारी पीढ़ी आजादी के बाद पैदा हुई है।
आजादी की गुंजन मात्र से पुरानी पीढ़ी रोमांचित हो जाती है, क्योंकि उन्होंने उस पल को भोगा और जीया है, और जो अनुभव किया है। वे इसकी बखान बखूबी से कर सकते है।
द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान नाजी जुल्म से हम रूबरू होते है तब कुछ अंश तक आजादी का महत्व और गुलामी या दास्ता के प्रमाण से अवगत होते है। जर्मन कॉन्सन्ट्रेशन कैम्प (नाजी प्रताड़ना शिविर) में विक्टर फ्रॅकल कैद थे। आसचविट्झ में जब वह कैद में थे, उन्होंने जाना, कि आप लोगों से हर चीज छीन सकते हो, लेकिन किसी भी परिस्थिति को किस नजरिये से देखना है, और उसका किस भावना से सामना करना है। यह आजादी आप किसी से कभी भी नही छीन सकतें, और यही चीज उनके समस्त परिवार के मृत्यु, दोस्तो के कैम्प में मृत्यु के पश्चात भी वह एक मात्र जीवित व्यक्ति बाकी सभी लोग यातना से मारे जा चुके थे। बाद में वे लोगो थैरेपी के प्रणेता बने। इस घटनाओं का उल्लेख विक्टर फ्रॅकल ने आपनी पुस्तक “मेन्स सर्च फार मीनिंग” में किया है। इसी प्रकार के यातना का उल्लेख 14 वर्षीय अबोध बालिका एनी फ्रेक ने अपनी पुस्तक “द डायरी ऑफ ए यंग गर्ल” में किया है। एनी ने कहा है कि “जो शेष खुशिया और बाकी है इसी के संबंध में सोचे और खुश होवे।” गुलामी, आजादी और छोटी सी आशा के प्रति नजरिया ने महज इन्हे ही प्रेरित नही किया अपितु मानव समाज का यह एक जीवन दर्शन बन चुका है।
भारतीय परिपेक्ष्य में भारत वर्ष का निर्माण अखण्ड भारत के हिस्से से पाकिस्तान के उद्भव के साथ हुआ जो अंग्रेजों से गुलामी से मुक्ति के उपहार के तौर में प्राप्त हुआ, लेकिन दो देशो के बीच खीची गई लाईन ने जो स्थायी रूप से दर्द दिया है, उसका परिणाम बदस्तूर जारी है। इसका भुगतान आज भी हमारी सेना और सामान्य नागरिक के अलावा बॉडर के इस पार और उस पार बसने वाले एक ही परिवार के लोगों को पता है, कि मानवीय मूल्य या मानवता के ऊपर महज खीची गई लाईन कितनी भारी है और यह जख्म दिन प्रतिदिन गाढ़ी होकर समरसता को, भाईचारा को और अखण्डता को किस शक्ल में तारतार कर रही है।
खैर इसके बावजूद हरेक चीज को प्राप्त करने के लिए हमें उसका मूल्य चुकाना पड़ता है शायद आजादी के तौर पर जाति, भौगोलिक सीमाओ, बेगुनाहओं, नागरिक, सैनिक के मौत के तौर पर स्थायी जख्म जो मिली है। इसके सहारे ही जीना है, पडोसी तो बदला नही जा सकता बावजूद इसके मिली आजादी को जाया नही करना है। शायद यही वक्त की मांग है, और इसी आजादी को महफूज रखना हमारे व्यक्तिगत दायित्व। भारतीय नागरिक होने के नाते सर्वप्रथम हम पहले भारतीय बने उसे पश्चात ही हमारी दूसरी पहचान बने, तभी आजादी का महत्व है और यदि हम ऐसा कर लेते है तो आर्थिक, सामाजिक, साम्प्रदायित्व आदि र्मोचे पर भी आजाद हो सकते है वर्ना ……………….?