अमरकंटक में घटते जंगलों का साया
अवैध कटाई से मौसम में बदलाव, पर्यावरणविदों ने जताई चिंता
अमरकंटक ।(धनंजय तिवारी वायरलेस न्यूज) मां नर्मदा के उद्गम स्थल और प्रमुख धार्मिक-पर्यटन नगरी अमरकंटक में लगातार हो रही अवैध वन कटाई ने पर्यावरण संकट को जन्म दे दिया है। कभी घने और सघन जंगलों से आच्छादित यह क्षेत्र आज लकड़ी माफिया और अनियंत्रित शहरीकरण की मार झेल रहा है। परिणामस्वरूप यहाँ का मौसम, वर्षा चक्र और वन्यजीवों का अस्तित्व गहरी चिंता का विषय बन गया है।
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जैवमंडल पर गहरा असर
अमरकंटक का वनक्षेत्र “अचानकमार-अमरकंटक संरक्षित जैवमंडल” का हिस्सा है, जो औषधीय पौधों और जैव विविधता के लिए विश्व प्रसिद्ध है। यही जंगल नर्मदा सहित अनेक नदियों का उद्गम स्थल हैं, जो करोड़ों लोगों के जीवन से जुड़ी हैं। किंतु जंगलों की अंधाधुंध कटाई से यहाँ का पारिस्थितिक संतुलन डगमगाने लगा है
“जंगल केवल हरियाली नहीं, बल्कि जीवन का श्वास हैं। यदि यही नष्ट हो गए, तो आने वाली पीढ़ियों को इसका गंभीर खामियाजा भुगतना पड़ेगा।”
— स्थानीय पर्यावरणविद
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बदलते मौसम के संकेत
बढ़ता तापमान – स्थानीय निवासियों का कहना है कि अब पहले जैसी कड़ाके की ठंड नहीं पड़ती। गर्मियों में पारा तेजी से बढ़ रहा है, जिससे लोग एसी और कूलर पर निर्भर होने लगे हैं।
कम होती वर्षा – घटते वन घनत्व ने वर्षा चक्र को प्रभावित किया है। वार्षिक औसत वर्षा में गिरावट आने से भूमिगत जल स्तर लगातार नीचे जा रहा है। दिसंबर से जून के बीच पानी की समस्या विकराल रूप ले लेती है।
वन्यजीवों का पलायन – जंगल सिमटने से बाघ, भालू और चीतल जैसे वन्यजीव अपने प्राकृतिक आवास छोड़ने को मजबूर हैं। मानव बस्तियों में बढ़ती दखलंदाजी से इनका दिखना अब दुर्लभ हो गया है।
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स्थानीय समुदाय की पीड़ा
ग्रामीणों और जनजातीय समुदाय का कहना है कि जंगल ही उनका जीवन है। यही उन्हें ईंधन, चारा, जल और आजीविका प्रदान करते हैं। पेड़ों की अंधाधुंध कटाई ने न केवल जल संकट को गहरा किया है, बल्कि लोगों की पारंपरिक जीवनशैली को भी प्रभावित किया है।
“वन कटे तो नर्मदा सूखेगी, और नर्मदा सूखी तो जीवन ठहर जाएगा।”
— ग्रामीणों की चिंता
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समाधान की राह
विशेषज्ञों का मानना है कि यदि अवैध कटाई पर तत्काल अंकुश नहीं लगाया गया और वृहद स्तर पर पुनर्वनीकरण नहीं किया गया, तो अमरकंटक का भविष्य संकट में पड़ सकता है। सरकार और समाज दोनों को मिलकर इस पवित्र नगरी के वन और जल संसाधनों की रक्षा करनी होगी।
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