(अमरकंटक से मनोज द्विवेदी की खास रपट वायरलेस न्यूज़ के लिए)
अमरकंटक / मप्र की पवित्र नगरी अमरकंटक में पिछले 2 वर्षों के लॉकडाउन में हजारों पेड़ काट दिए गए हैं। किसी को आश्रम के लिए, किसी को विद्यालय के लिए जमीन चाहिए, किसी को खेती के लिए, किसी को घर बनाने के लिए , किसी को लकड़ी चाहिए । अमरकंटक तो किसी को चाहिए ही नहीं । अमरकंटक में लोग बिना किसी सरोकार, बे वजह हरे – भरे पेड़ काटे जा रहे हैं । यहां के पर्यावरण को बेतहाशा क्षति पहुंचाई जा रही है । लोग अपना घर जंगल में बना लेते हैं, जंगली जानवरों से बचाओ के लिए कोई करेंट लगाता है तो कोई पेड़ ही काट रहा है । अमरकंटक के प्राकृतिक वातावरण से प्रभावित होकर लोग यहां आ तो जाते हैं, घर भी बना लेते हैं, इतने पर भी लोगों का जी नही भरता, फिर बाड़ी चाहिए, इसके बाद उन्हें पूरा गांव चाहिए । इसके बाद शुरू हो जाता अमरकंटक के प्राकृतिक वातावरण को क्षति पहुंचाने का कार्यक्रम । इस प्रकार अतिक्रमण करने, पेड़ काटने की आज़ादी यहां प्रशासन की लचीली व्यवस्था के कारण ही होता है । अमरकंटक में तीन विभाग नगर पालिका, वन विभाग, राजस्व विभाग इन तीनों को एक साथ मिलकर काम करने की आवश्यकता है । क्योंकि अभी तक की अमरकंटक की दुर्दशा का कारण ही इन तीन विभाग का मिलजुलकर काम न करना रहा है । एक विभाग अपनी जिम्मेदारी से पल्ला इसलिए झाड़ लेता है क्योंकि वह तो उनकी जमीन है हमारी नही है । प्रशासन को अमरकंटक निर्माण के विषय में गहन चिन्तन की आवश्यकता है । इसके पश्चात् एक कड़ी न्याय व्यवस्था की रूपरेखा तैयार करनी होगी। जल, जंगल, जमीन बचाने के लिए एक निष्पक्ष समिति बनानी होगी । जो अमरकंटक के पर्यावरण को क्षति पहुंचाने वाले लोगों के खिलाफ आवाज उठा सके । तभी अमरकंटक में मां नर्मदा के उद्गम के जल स्रोत, अमरकंटक के पेड़, जमीन बच सकेंगें । नहीं तो अमरकंटक का सर्वनाश निश्चित है ।
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