छत्तीसगढ़ (अमित मिश्रा वायरलेस न्यूज़)

“क्या हार में क्या जीत में,किंचित नहीं भयभीत मैं ।संघर्ष पथ पर जो मिले,यह भी सही वह भी सही।।
पता है !ब्रम्हांड में अरबों तरह के प्रजाति के जीव जंतु रहते हैं ,परन्तु हमें भय सिर्फ एक वायरस से लग रहा है,जबकि सिर्फ वायरस को ही देखें तो सैकड़ों प्रकार के होंगें ? हम यहाँ कोरोना वायरस की बात नहीं कर रहे हैं बल्कि उसे तो हमने सब मिल कर पछाड़ा है, लेकिन यहाँ हम उस वायरस की बात कर रहे हैं जिसे पछाड़ पाना असंभव प्रतीत होता है उसका नाम है ‘स्वार्थ’ इस खेल में सत्तालोलुप पार्टियां पारंगत हो चली है जिसका अब तक कोई वैक्सीन तैयार नही हो सका है ! जो इसे रोकना चाहते हैं वह भी अंततः उस खेल में शामिल हो जाते हैं ? यदि हम अपना स्वार्थ भूलकर थोड़ा सा समय निरीह जीवों-प्रकृति के बारे में सोंचेंगे तो हमें उनके लिए दयाभाव जागृत होगा और हम उनके संरक्षण के लिए छोटा मोटा प्रयास कर के भी प्रकृति को बहुत कुछ दे सकतें हैं ! मगर यहाँ वो नहीं, जिस डगाल को आप काट ना चाहते हैं उस डगाल के आगे बैठकर न काटो अन्यथा आप स्वयं गिर जावोगे इसलिए काटो मगर डगाल के पीछे बैठकर तो वो आपके काम आएगा ।
हम बात कर रहे हैं उस खेल के बारे में जो हसदेव अरण्य क्षेत्र के जंगल जैव विविधताओं से भरपूर इसे मध्य भारत देश का फेफड़ा कहा जाता है, इन्हीं जंगलों से मध्य भारत को अथाह ऑक्सीजन मिलता है ये वन एवं पर्यावरण के हिसाब से बहुत महत्वपूर्ण है इसी क्षेत्र में 23 कोल ब्लॉक है जहाँ प्रचूर मात्रा में कोयला धरती के खोख में दबा हुआ है जिस पर निगाहें बड़े बड़े उद्योगपतियो को है।
यह क्षेत्र इन्ही में से एक परसा कोल ब्लॉक है जिसपर सबकी निगाहें लगी हुई है जो हाथियों का विचरण क्षेत्र है ऐसा माना जाता है कि यह क्षेत्र पिछले 150 सौ सालों से हाथियों रहवास माना जाता है। इन्ही क्षेत्रों में कुछ वर्षों से बड़े पैमाने पर आद्योगिक बसाहट किए जा रहे है परिणामस्वरूप मानव और हाथियों के बीच द्वंद बढ़ गए है जिसके चलते जनहानि उठानी पड़ रही है लेकिन कुम्भकरणी नींद में सोई सत्ता के मठाधिशों पर जूं तक नहीं रेग रहा है ,और आनन फानन में जितने जल्दी हो सके एक सिरे से अडानी जैसे उद्योगपति को कोल उत्खनन का परमिशन दे दिया गया है और बिना देर किए रात दिन एक करते हुए अबतक 400 वृक्ष काटे जा चुके है 2711 हेक्टेयर कोयला खनन परियोजना में 2388 हेक्टेयर क्षेत्रफल में कोयला उत्खनन के लिए 30 मई 2012 को माइनिग लीज प्रदान की गई थी। जो दो चरणों में आबंटित की गई है । जिसका विरोध सत्ता से बाहर रहते भूपेश बघेल के द्वारा जोरशोर से विरोध किया जाता रहा है और भूपेश बघेल ने ट्विटर पर लिखा था कि “अडानी का महाघोटाला छत्तीसगढ़ और राजस्थान की भाजपा सरकार की मिलीभगत और मोदी सरकार के संरक्षण में हसदेव क्षेत्र के जलग्रहण क्षेत्र में जंगल काटकर अडानी को अरबों का लाभ ,जांजगीर और कोरबा जिले में भविष्य में होगी पानी की कमी जिससे आने वाले समय मे आदिवासी और हाथियों के बीच संघर्ष में वृद्धि होगी”*

वहीं दूसरी टिवीटर पर 22 जुलाई 16 को लिखा था कि “प्रदेश में 77%आबादी खेती किसानी से जुड़ी हुई है ,और वही सबसे ज्यादा परेशान है तो फिर रमन सरकार किसकी सरकार है अंबानी और अडानी की ?”

वहीं 27 मार्च 18 को भूपेश बघेल ने तीसरा टिविटर पर लिखा था कि ” जिस तरह से अडानी को छत्तीसगढ़ की कोयला खदाने दी गई है ,जल्द ही अडानी SECL से बड़े कोयला कारोबारी हो जाएंगे ?” कोल स्कैम 2.0 -।

और छत्तीसगढ़ में 3 साल से ऊपर सत्ता पर काबिज हो गए है अचानक ऐसा क्या हो गया कि पिछली सारी बातें भूल आनन फानन में राजस्थान के मुख्यमंत्री छत्तीसगढ़ आते है मामला का पटकथा ही बदल जाती है और स्वयं ग्रीन सिग्नल दे अडानी को सहयोग में उतर जाते है और तत्काल अडानी कम्पनी रात दिन एक करके काम में लग जाते है और 400 वृक्ष काल के गाल में समा देते है , भी अडानी 841 हेक्टेयर में कोल ब्लॉक पर उत्तखनन का कार्य किया जाना है और 700 परिवार को विस्थापित करके कुल 4 लाख पेड़ों की बलि देना प्रस्तावित है, प्रथम चरण में 2 लाख पेड़ काटे जाएंगे, ये आखिर कैसा साथ है कुछ समझ से परे है। मुखिया के इशारे पर एक दिन में ही जंन सुनवाई पूरी कर ली जाती है, साथ ही 12 अप्रैल 21को अतिंम वन स्वीकृति राज्य सरकार दे देती है ?
*नो गो क्षेत्र के बाद भी खनन की स्वीकृति *
यह क्षेत्र भारत सरकार के श्रेणी 1 के कई प्रमुख वन्य प्राणियों के रहवास के लिए उपयुक्त है बल्कि इनकी बड़ी संख्या में उपस्थित भी है। इसी के कारण एनजीटी ने पर्यावरणीय संवेदनशील क्षेत्र मानते हुए केंद्रीय वन पर्यावरण मंत्रालय के द्वारा “नो गो क्षेत्र घोषित करते हुए वन स्वीकृति का आदेश निरस्त किया था।
एनजीटी ने (FAC) समिति का गठन कर ने सिरे से जांच करने को कहा और कब जांच आनन फानन में पूरी कर ली जाती है।
*विशेषज्ञ अध्ययन हासिए पर..
एनजीटी के आदेश के तारतम्य में वर्ष 2019 के बाद राज्य सरकार ने देश के दो प्रमुख संस्थान ICFRE और WII के संयुक्त दल से अध्ययन कराया गया और उन्होंने अपनी रिपोर्ट में लिखा था कि यदि उत्तखनन की अनुमति दी जाती है तो गम्भीर परिणाम भुगतने होंगे। उत्तखनन मुक्त रखने नोट में लिखा ।*केंद्र और राज्य ने मिलकर अडानी को उत्तखनन की अनुमति दी-*
दोनों सरकारें अडानी से प्रभावित होकर आनन फानन में नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए सारी रुकावटे रातोरात समाप्त कर ली गई और अडानी की कम्पनी रात में पेड़ काटना प्रारम्भ कर दिया और विरोध दरकिनार कर दिया गया कोई सुनवाई नहीं !
*आदिवासियों का प्रतिनिधि मंडल भी राहुल से मिला था-*
गत वर्ष सरगुजा के आदिवासी रायपुर तक विरोध स्वरूप 300 कि. मी. की पदयात्रा की थी साथ ही राहुल गांधी से भी प्रतिनिधि मंडल मिला था राहुल ने उन्हें आस्वस्थ किया था कि उनके संघर्ष में वे उनके साथ है
तो अब चुप क्यों हो गए वह कौन सा डील हो गया कि राजस्थान और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री को आपस मे मिला दिया और विरोध भी बंद और यकायक स्वीकृति भी ?
*न्यायालय में मामला लंबित फिर भी…
न्यायालय में मामला लम्बित फिर भी परियोजना का कार्य द्रुत गति से जारी है , सुप्रीम कोर्ट ने 28 अप्रैल 2014 को स्टे जारी किया था और बहुत ही साफ साफ लिखा था कि एनजीटी के आदेश के तारतम्य में निर्धारित शर्तों के अधीन किये जाए।जबकि एनजीटी ने कोई अध्ययन 2018 तक नही कराया और अडानी की कम्पनी 10 से 15 मिलयन मेट्रिक टन उत्खनन जारी रहा। इधर कल ही छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट की डबल बेंच ने परसा कोल ब्लॉक के लिए रातोरात पेड़ों की कटाई को लेकर तीखी टिपण्णी की है और राज्य सरकार को नोटिस जारी कर ते हुए तलब की है, जिसकी अगली सुनवाई 4 मई को होगी।
*कोयला शेष की मनगढ़ंत खेल मीडिया में प्रचारित किया गया..
23 दिसम्बर 21 को केंद्रीय वन -पर्यावरण मंत्रालय की वन सलाहकार समिति के द्वारा लिया गया निर्णय पर स्पष्ट रूप से खनन कम्पनी के उस प्रचार का असर नजर आता है जो पिछले एक वर्ष में मीडिया के जरिए तैयार किया गया, ‘राजस्थान में कोयले का संकट …सिर्फ चंद दिनों का कोयला शेष … जैसी मनगढ़ंत खबरे देश ब्यापी बढ़ चढ़कर प्रसारित की गई। दरअसल किसी भी खनन परियोजना की स्वीकृति के आधार में माइनिंग प्लान एक सबसे महत्वपूर्ण दस्तावेज होता हैं। इसी आधार पर एक कृत्रिम समस्या पैदा करते हुए वे अपनी रणनीति में कामयाब हो गए ?
पर्यावरण प्रेमी सड़कों पर निकलें ..
बिलासपुर में कुछ नए पर्यावरण प्रेमी चेहरे सामने आए और केंडल मार्च निकाल नारेबाजी की इसी परक परसा गांव की जनता भी विरोध में मार्च निकल रहे है, लेकिन अफसोस हैं कि तथाकथित स्थापित पर्यावरण प्रेमी जो बीच बीच में मीडिया में शोर मचाने के खेल में अभ्यस्थ है कभी पेड़ मत काटो और पेड़ से शरीर को चिपककर फ़ोटो खिंचवा लेते है , वे भी इस महत्वपूर्ण पूरे मामले से नदारद है !
फोटो सहयोग -कोरबा से पुष्पेंद्र श्रीवास
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