*हिंदुत्व के ध्रुव तारा- कर्मयोगी पूज्य श्री गुरु जी*
” है दिग दिगंत में गूंज रहा माधव महान, माधव महान | “
( वायरलेस न्यूज़ नेटवर्क)
(लेखक इंजी . राजेंद्र पाण्डेय वरिष्ठ स्तंभ कार एवं पत्रकार हैं )*
परंपूज्यनीय श्री गुरु जी देश की महान विभूतियां में से एक हैं जिन्होंने भारत की एकता और अखंडता, हिंदू धर्म के महत्ता और श्रेष्ठता तथा हिंदुस्तान की एकात्मता और समरसता को चिरस्थाई बनाए रखने के लिए अपना तन और मन ही नहीं संपूर्ण जीवन समर्पित किया है | संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार जी क़े कल्पना को साकार रूप देने वाले पूज्य श्री गुरु जी का जन्म तत्कालीन मध्य प्रांत की राजधानी नागपुर में 19 फरवरी 1906 सोमवर विजय एकादशी को प्रातः 4:34 पर मां श्रीं बाल कृष क़े घर हुआ था माधव ( श्रीं कृष्ण )की भाति ही माधव (श्रीं गुरूजी ) वह अपने माता-पिता के आठवीं संतान थे | माता श्रीमती लक्ष्मी बाई (ताई ) सामान्य ममतामई धार्मिक ग्रहणी थी | पिताश्री सदाशिव राय (भाऊ ) पहले डाक – तार बिभाग मे रहे फिर वही हाई स्कूल में शिक्षक हो गए माधव बाल कल से ही कुशाग्र बुद्धि के थे भाषण कला का विकास बाल काल से ही हो गया था | छठी कक्षा में प्रादेशिक छात्र सम्मलेन क़े भाषण प्रतियोगिता मे प्रथम स्थान प्राप्त किया था | श्री गुरु जी 1924 में इंटर की परीक्षा उत्तीर्ण की अंग्रेजी विषय में प्रथम पारितोषिक खंडवा विद्यालय में एक बार अध्यापक महोदय गणित पढ़ा रहे थे एक प्रश्न ऐसा था जिसका ठीक-ठीक उत्तर स्वयं अध्यापक को बहुत प्रयास करने पर सही हल नहीं निकल रहा था अंत में गुरु जी को बुलाया गया और वह आते ही प्रश्न का ठीक-ठीक निकाल दिया | नागपुर का हिस्ताब कॉलेज ईसाई मिसनारियों का था सभी विद्यार्थियों को अनिवार्य रूप से बाईबील पढ़नी पड़ती थी गुरुजी बाइबल विषय पर भी अच्छी पकड़ बना लिए थे | एक दिन बाइबल का कोई अंश कक्षा में पढ़ाया जा रहा था गुरुजी शांत बैठे देख रहे थे एकाएक गुरुजी उठ खड़े हुए और उन्होंने अध्यापक महोदय से नम्रता पूर्वक कहा कि आप इस अंश को ठीक नहीं पढ़ा रहे हैं बाइबल में इस प्रकार नहीं है अध्यापक महोदय बाइबल की अधिकृत पुस्तक मगाये और देखा तो गुरु जी का कहना ठीक था | वर्ष 1926 में गुरुजी बीएससी प्रथम श्रेणी मे उत्तीर्ण की वर्ष 1928 में गुरु जी ने एमएससी प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की वर्ष 1931 से 1933 तक मैं प्राणशास्त्र की काशी हिंदू विश्वविद्यालय में प्राण शास्त्र के प्राध्यापक हो गए वर्ष 1935 में गुरुजी अधिवक्ता बने परंतु कचहरी कोर्ट पहुंचने के स्थान पर 1936 में सर्गाची स्थित रामकृष्ण आश्रम पहुंच गए वही 13 जनवरी 1937 में स्वामी विवेकानंद जी के जन्मदिवस पर श्री गुरु जी पूज्य स्वामी अखंडानंद जी से दीक्षा लेकर उनका शिष्यत्व ग्रहण किए | स्वामी अखंडानंद जी ने उन्हें अपने व्यक्तिगत मोक्ष के स्थान पर नागपुर जाकर हिंदू समाज के मोक्ष के लिए साधना रत होने के लिए प्रेरित किया | आध्यात्मिक गुरु की श्रद्धा से वह कम गुरु की शरण में पहुंच गए | गुरुदेव ने आदेश दिया था कि बड़े हुए केशव दाढ़ी को कभी मत कटवाना यह अच्छे लगते हैं| 21 जून 1940 को डॉ. हेडगेवार जी की मृत्यु के बाद 3 जुलाई 1940 को पूज्य श्री गुरु जी को सरसंघचालक घोषित किया गया | गुरुजी हिंदी अंग्रेजी संस्कृत और मराठी धारा प्रवाह बोलने वाले प्रखर वक्ता थे पूज्य श्री गुरुजी सरसंघचालक बनने के बाद विविध क्षेत्रों में भारतीय मजदूर संघ, विद्यार्थी परिषद, भारतीय जनसंघ, विश्व हिंदू परिषद, आदि बहुमुखी सेवाएं इस महामानव कर्मयोगी की छात्राछाया मे स्वर्ण अक्षरों में अंकित है | पूज्य श्री गुरु जी से लेखक की पहली भेंट रीवा सीत शिविर में 2 वर्ष पूर्व सिरमौर के गुरु गोविंद सिंह शाखा के मुख्य शिक्षक के नाते सरस्वती शिशु मंदिर जेल मार्ग वर्ष 1970 में हुई थी और फिर 1972 में जब जबलपुर प्रथम वर्ष के लिए सतना विद्या मंदिर से गया था | परिचय प्रारंभ हुआ जब परिचय देने के लिए खड़ा हुआ तो देखते ही श्री गुरु जी बोले, तुम्हें तो इसके पहले देखा है यह सुनकर मुझे भारी अचरज हुआ और सारे शरीर में एक करंट सी झनझनाहट सी अनुभव हुई 2 वर्ष बाद सतना से सैकड़ो मिल दूर 3 बजे अपराह्न राघव तम्मकार के साथ मुझे गुरुजी मंच व्यवस्था मे बौद्धिक के समय देखे थे जब मैं एक नया था | स्मरण रहने लयिक कोई विशेष बात मेरे साथ भी नहीं थी | फिर भी मुझे पहचान सकते हैं कैसी अनहोनी बात है बोले तुम्हें रीवा सीत शिविर में देखा है जी, तुम्हारा नाम राजेंद्र पांडे है जी तुम्हारे साथ मंच की व्यवस्था में राघव तंबकार भी था | वश : वश : ( बैठ जाओ) उसी शिक्षा वर्ग में कमलाकर जी की अनुशंसा पर मा. रोशन लाल सक्सेना जी के कहने पर मेरा बौद्धिक भी हुआ था पूज्य श्री गुरु जी के बारे में जितना भी लिखा जाए उतना कम होगा क्योंकि श्री गुरु जी का व्यक्तित्व “हरि अनंत हरि कथा अनंता की तरह है ” श्री गुरु जी जीवन क़े अंत तक कैसे रहें यह समझने के लिए केवल एक वाक्य ही काफी है अटल जी ने संसद में गुरु जी को श्रद्धांजलि देते हुए कहा यहां ” श्री गुरु जी कभी रुके नहीं कभी थाक़े नहीं कभी झुके नही ” उसे महान युगपुरुष को कोटिश : नमन पूज्य गुरु जी को दिव्यता पूर्ण व्यक्तित्व को हमारा कोटि कोटि प्रणाम |
*दो हमें आशीष माधव अश्रु की नयनाँजलि |*
*पुष्प लेकर भावना की दे रहे श्रद्धांजलि ||*
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