हम बदलेगे, युग बदलेगा ?

आ, चल के तुझे मैं लेके चलूँ एक गगन के तले,
जहाँ ग़म भी ना हो, आँसू भी ना हो, बस प्यार ही प्यार पले,

यकीनन ऐसी स्थिति यूटोपिया (आदर्श लोक) वाली होगी, जहॉ गम और ऑसू दोनो की अनुपलब्धता हो, बस प्यार ही प्यार हो, गम एवं आसू जीवन के समस्या के अलग-अलग उत्पाद है।

वास्तव में जिसके पास कुछ समस्या न हो, वह वस्तुतः इंसान नही हो सकता।
समस्याओ से दो चार करना ही जीवित रहने की पहचान है।

समस्या हमारे चक्रिय क्रम में हमारे जीवन मे घुमता ही रहता है। या तो हम तत्कालीन समय में समस्या झेल रहे होते है, या समस्या हमसे दूर जा चुका होता है, या समस्या आने वाला होता है।

यही जीवन की यथार्थता है। वास्तव में मनोवैज्ञानिक एडलर के सिद्धांत के ऊपर विश्वास किया जावे तो समस्या के मूल मे आपसी संबंध ही है। वास्तव में सभी समस्याएं आपसी संबंधो की समस्या है। वास्तव मे हमारी चार प्रमुख समस्याए है, जो हमें लक्ष्य से दूर ले जाते है।
1. हम आधा सूनते है।
2. हम एक तिहाई समझते है।
3. शून्य चिंतन करते है।
4. दोगुनी तीव्रता से प्रतिक्रिया देते है।

आप भी अपने जीवन में घटित हो रहे समस्याओं के आधार पर इसका आंकलन कर सकते है। मसलन आज बीबी से झगड़ा हो गया या उसके साथ संबंध ठीक नही है, तो यह समस्या यही तक नही रूकती, इसका परिणाम आपके काम, स्वास्थ्य एवं अन्य क्रियाओ पर परिलक्षित होता है।

आज के जीवन के सम्पूर्ण क्रियाकलापो के पीछे हमारी आपसी संबंध ही जिम्मेदार है। इसीलिये स्टीफन आर कोवी ने “द सेवन हेबिट्स ऑफ हाइली इफेेक्टिव पीपुल“ मे इस बात पर जोर दिया है कि “First to be understand, then to be understood” (फर्स्ट टू बी अंडरस्टेण्ड, देन टू बी अंडरस्टूड) पहले आप दूसरो को समझे, तब वह आपको समझने की अपेक्षा रख सकते है।

आप जब भी जीवन में इस बात पर लागू करेगें, तब आप महसूस करेगें, जब भी दूसरे को समझने का प्रयास करते है, दूसरा भी आपके प्रति एक सकारात्मक भाव रखेगा।

सिलकान वेली में एक फुटबाल खिलाड़ी बिल केम्पबेल बहुत सारे सिलिकान वेली के बहुत सारे कम्पनी बहु राष्ट्रीय कम्पनी जैसे गूगल, एप्पल आदि का कोच रहे है। भला वह फुटबाल खिलाड़ी इन कम्पनी के बड़े बड़े अधिकारीयो को भला क्या मोटिवेट, सीख या मार्गदर्शन दे सकता है। जबकि तकनीकी तौर पर वे न तो कम्पनी के सेल्स, प्रोडक्ट के बारे में अवगत थे। लेकिन वह भी सफल मार्गदर्शन, महज इस आधार पर कि वह कम्पनी के employer एवं employee के बीच के संबंधो को सुदृढ़ बनाने और लक्ष्योन्मुखी बना कर कम्पनी को ऊंचाई दिलाने मे आपसी संबंध को बखूबी से बनाने के माध्यम से सिलिकान वेली के बहुत सारे कम्पनी को मार्गदर्शन देते है।

वास्तव में हमारी आपसी संबंध में महती भूमिका स्वयं के बारे मे नही जानना। जब तक हम स्वयं को नही जानेगे तो दूसरे को कैसे जान पायेगे। इसीलिये ग्रीक मे आदर्श वाक्य है नो टू यूवर सेल्फ (स्वयं को जाने) और यही काम मानव (आदमी) नही कर पा रहा है।
इसी संबंध में एक छोटे से रूपक के माध्यम से समझने का प्रयास करते है।

एक तकरीबन 5-6 साल का बालक, जिसे बाहरी दुनिया का कुछ ज्ञान नही था। वह महज प्राथमिक स्टैण्डड का छात्र था। वह अपने पिता से क्रिक्रेट के बेट के लिये बार-बार जिद करता है, बाप क्रिक्रेट मैच देखने में मगन था, वह बच्चे से बार-बार बहाना बनाता है, कि आज नही कल बेट (बल्ला) ला देगे, बाद मे ला देगे। लेकिन यह तो जग जाहिर है कि बालहठ, राजहठ और त्रियाहठ के सामने कोई भी चीज टीकता नही। अन्ततः वह टालने के लिये एक पेपर मे छपे विश्व के नक्शे को काट-छाट बिखरा कर कहता है कि यदि वह इसे विश्व के नक्शे को फिर से व्यवस्थित कर लेगा, वह उसके लिये अभी बेट (बल्ला) ला देगा, क्योकि उसे मालूम था वह तो अभी वह स्कूल के बहुत ही प्रांरभिक स्तर का विद्यार्थी है भला उसे विश्व मानचित्र से क्या लेना देना और जानकारी भी नही होगा। न वह विश्व के देशो में भेद को यथास्थिति जैसे विश्व का नक्शा है वैसा जोड़ पायेगा।

बच्चे ने मानचित्र को उठाया और 10 मिनट बाद वैसा ही विश्व मानचित्र जोडकर पिता के पास लेकर आया। पिता को बहुत ही आश्चर्य हुआ कि वह छोटा सा लड़का कैसे विश्व मानचित्र को बिलकुल सही तरीके से व्यवस्थित करके ले आया, उसने लड़के से पूछा वह इस दुष्कर काम को कैसे कर पाया।

लड़के ने जवाब दिया बहुत ही सिम्पल तरीके से उसने बताया कि उसे तो विश्व मानचित्र जानकारी नही है और कौन सा देश कहा है, यह भी नही मालूम है।
वह तो उस पेपर के पीछे एक आदमी का फूल पेज चित्र बना हुआ था, उसे बच्चे ने बस उस आदमी के चित्र को पूरी तरह से व्यवस्थित किया और इसका परिणाम दूसरे तरफ का विश्व का मानचित्र भी सही हो गया।

कहने का तात्पर्य है हम सब पहले आपने आपको व्यवस्थित कर ले, जमा ले, संयोजित कर ले, तो दुनिया स्वतः ही ठीक हो जायेगी। इसी को गायत्री परिवार वाले कहते है, हम बदलेगे, युग बदलेगा।

एक छोटी सी घटना को हरेक आदमी को सोचना चाहिये कि समस्या बाहर नही होती। समस्या हमारे अंदर होती है। इसे ठीक कर लिये तो बाहरी समस्या स्वतः ही ठीक हो जावेगी।

जो अपने चारो ओर देखता है, वह जानकार है, जो अपने भीतर देखता है वह ज्ञानी है। हमे भी बाहर की दुनिया न देखकर अंदर की दुनिया को देखना चाहिये और अव्यवस्था होने पर व्यवस्थित करना चाहिये।

और अन्त में –

बचपन में भरी दुपहरी में नाप आते थे पूरा मोहल्ला,
डिग्रीया समझ में आयी पॉव जलने लगे है।