परंपरा, आधुनिकता और स्त्री द्वंद्व पर लेखिका के अपने विचार
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के स्त्री के परिधान को लेकर एक बयान पर काफी बवाल मचा हुआ है खासकर फटी जींस पहनी एक एनजीओ चलाने वाली स्त्री पर उनकी टिप्पणी। उन्होंने तो फटी जींस ही कहा है, मेरे व्यक्तिगत विचार से तो चीथड़ों में लिपटी हुई आधुनिकाएं ज्यादा उपयुक्त शब्द है। हालिया खबर यह है कि उत्तराखंड के मुख्यमंत्री ने अपने बयान पर माफी मांग ली है और कहा है किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना उनका मकसद कतई नहीं था। चलिए किस्सा खत्म हुआ क्योंकि यही उनका उद्देश्य था जो पूरा हो गया, सवाल यह है कि हमारे सांस्कृतिक मूल्यों की धज्जियां उड़ाने वाली और स्वतंत्रता के नाम पर अमर्यादित बयानबाजी करने वाली स्त्रियां मुझे स्त्री विमर्श पर संवेदित होने वाली महिलाएं कभी नहीं लगती। जया बच्चन जी का ही उदाहरण लें तो उन्हीं के पार्टी प्रमुख ने कभी बलात्कार जैसे जघन्य अपराध पर कहा था कि लड़कों से गलतियां हो जाती हैं। ऐसे बेशर्म वक्तव्य पर जया जी की मुखरता कहां लुप्त हो गई थी। हमारे अपने प्रदेश की महिला आयोग की अध्यक्षा का यह कहना कि उत्तराखंड के सीएम का बयान एक घटिया और कुंठित बयान है अध्यक्षा ने तो स्त्री के घुटनों पर फटी जींस और पुरुषों के घुटनों तक पैंट की आपसी तुलना तक कर डाली, बेहद हास्यास्पद और असंगत लगी यह तुलना जो उनके मानसिक प्रदूषण को दर्शाती है। खुद उनके अपने प्रदेश में स्त्री का क्या स्थिति है यह बेहतर जानती हैं।
स्त्री हमारे समाज में हमेशा से पूज्यनीय रही और रहेगी। यह और बात है कि चंद दकियानूस लोग उसके चरित्र का आकलन पहनावे या ओढ़ावे से करते हैं। पहनने की आजादी अगर स्त्री को है तो उस पर टीका टिप्पणी भी अभिव्यक्ति की आजादी के अंदर ही आएगी। यदि मुख्यमंत्री जी ने ऐसी टिप्पणी की भी तो वह हिंदू संस्कृति और उसके सांस्कृतिक परिवेश को लेकर की होगी जिस पर तमाम स्त्री वर्ग से प्रतिक्रियाएं उठनी शुरू हो गईं। ऐसी ९० फीसदी महिलाएं खुद अपने परिवार में परंपरागत परिधानों को त्याग कर फटी जींस (चीथड़ों) पहनकर विवाह मंडप में बैठेगी या विवाह संपन्न करेगी उस दिन यह स्त्री स्वातंत्र्य का नायब नमूना पेश करेगी लेकिन नहीं शायद ऐसा कभी ऐसा संभव ही नहीं हो पाएगा क्योंकि फैशन के तौर पर ऐसे चीथड़े पहनने वाली स्त्रियां आधुनिकता का प्रतीक मानती हैं लेकिन मानसिक तौर पर वह कतई आधुनिक नहीं होती। चंद अंगुलियों पर गिनती की जाने वाली युवतियों को छोड़ दें तो तमाम स्त्रियों के भीतर एक ऐसी स्त्री हमेशा से मौजूद होती है जो अपनी परंपराओं की मर्यादा को जानती है उसके सौंदर्य पक्ष को ताकतवर होकर अनुशाषित ढंग से संवारती भी है उसे पता है कि फटी जींस पहनकर जीवन के लंबे कालखंड की पारी नहीं खेली जा सकती।
अंत में एक सवाल : क्या ऐसे मंहगे चीथड़े पहनकर अपना वैभव प्रदर्शन करना उन गरीबों के साथ एक भोंडा मजाक नहीं है जिनके नसीब में ही चीथड़े पहनना लिखा है।
आशा त्रिपाठी
asha.kmt@gmail.com
Author Profile

Latest entries
Uncategorized2025.10.15रोड मोबाइल मेडिकल वैन (RMMV) के माध्यम से शहडोल उपमंडलीय चिकित्सालय क्षेत्र में चिकित्सा सेवाओं की शुरुआत*
बिलासपुर2025.10.15रीजन के 5969 उपभोक्ताओं ने पीएम सूर्यघर योजना में अपना रजिस्ट्रेशन कराया 628 उपभोक्ताओं को मिला सब्सिडी का लाभ बिजली के बिल से जीरो बिजली बिल की ओर अग्रसर
छत्तीसगढ़2025.10.14क्वालिटी कॉन्सेप्ट्स के चैप्टर कन्वेंशन में जिंदल स्टील की टीम ने जीता गोल्ड अवार्ड
Uncategorized2025.10.14स्पर्श खंडेलवाल बने स्टेट लेवल ओपन चेस टूर्नामेंट के चैंपियन- जीती ट्रॉफी और 31 हजार रु.,दुर्ग के वी विराट अय्यर बने उपविजेता, तीसरे स्थान पर रहे बिलासपुर के संकल्प कश्यप